यदि कृषि योग्य भूमि का दायरा निरन्तर इसी प्रकार घटता रहा तो भारत की एक अरब चालीस करोड़ आबादी को एक दिन भुखमरी का शिकार बनना पड़ेगा और तब दुनिया में कोई ऐसा देश नहीं है, जो भारत जैसे विशाल देश को खाद्यान्न के संकट से उबारने में समर्थ हो […]

भारत के मनीषियों को मालूम था कि लोकतंत्र के वर्तमान संस्करण के कारण खतरे पैदा हो सकते हैं, इसलिए सत्ता की राजनीति में न पड़कर उन्होंने देश में सामाजिक आन्दोलन खड़ा किया और अपने प्रयासों से ग्रामस्वराज्य की बुनियाद खड़ी की थी। भारतीय लोकतंत्र एक निर्णायक दौर से गुजर रहा […]

देश में इतिहास को अपने मुताबिक बदलने की कवायदें जारी हैं. इतिहास बहुत निर्मम मूल्यांकनकर्ता है. किसी भी तथ्य को ऐतिहासिक तथ्य के रूप में स्वीकृति तब तक प्रदान नहीं की जाती, जब तक उक्त घटना या प्रकरण की पुष्टि सूचना के किसी अन्य स्त्रोत से नहीं कर ली जाती. […]

सांप्रदायिक सद्भाव और सौहार्द्र को लिखना और जीना दो अलग अलग पहलू हैं, ऐसा होना नहीं चाहिए पर ऐसा ही है। ऐसा साहित्य पूरी दुनिया में रचा जा रहा है, जिसके सहारे हम कई बार इंसानियत को महसूस करते हैं और उसे जी पाने का अभ्यास करते हैं। इंसानियत वह […]

एनसीईआरटी के पाठ्यक्रम में इतिहास की किताबों से मुगल साम्राज्य से संबंधित पाठों को हटा दिया गया है। महात्मा गांधी और गोडसे से जुड़ी कई बातों को हटाया गया है, जिसमें हत्या के बाद आरएसएस पर बैन वाली बात भी शामिल है। इसके अलावा हिंदी की किताब से महाकवि निराला […]

पाठक का पत्र सर्वोदय जगत के 16-31 मार्च अंक-15 में प्रकाशित, सेवाग्राम में आयोजित सर्वोदय सम्मेलन की रिपोर्ट सम्पूर्ण और बेहतरीन आई है। वक्ताओं के विचारों की कड़ियाँ, देश और व्यक्ति के वर्तमान की झलकियाँ प्रस्तुत करती हैं, जो हमें देखने और सोचने के लिए जगत-जीवन का परिपूर्ण चित्र उपस्थित […]

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