हमारे आध्यात्मिक साहित्य में कर्म योग, ज्ञान योग, ध्यान योग, आदि शब्द मिलते हैं।
यहां नया ही शब्द मिला है_ मनोधी _ योग:।
उसका एक अर्थ है मन और बुद्धि का योग मन और बुद्धि एक होना बड़ी बात है। अक्सर देखा जाता है , मन एक बात कहता है, बुद्धि दूसरी। पश्चिम के मानस शास्त्र में उसे हायर एंड लोअर माइंड कहते हैं । अगर मन और बुद्धि की टक्कर है, तो सुनना चाहिए बुद्धि का, मन का नहीं ऐसा सामान्यता कहा जाएगा लेकिन साधक के लिए तो यह प्राथमिक सूचना हुई। इंद्रिय, मन ,बुद्धि ,तीन उपकरण हैं । इनमें से इंद्रियों को मन में समेट लें तो दो ही रहते हैं ,मन और बुद्धि।
लेकिन मन और बुद्धि का भेद ही मिट जाए और मन बुद्धि में लीन हो जाए, बुद्धि जिसको अच्छा समझती है, वही मन को अच्छा लगे, इंद्रियों को भी वही भाये। तो आनंद ही आनंद है ।
गीता कहती है, समत्वम योग उच्यते। ज्ञानेश्वर महाराज ने उसका भाष्य किया है _ अर्जुना समत्व चित्तांचे । तेंचि सार जा योगांचे। जेव मन आणि बुद्धिचें। ऐक्य आधी।। समत्व किसको कहेंगे ? सामान्यतया फल मिले न मिले चित्तकी समता न डिगे। तो समत्व कहेंगे। परंतु यहां मन और बुद्धि की एकता को समत्व कहा ।
मनोधी योग; का दूसरा अर्थ है ,मन और बुद्धि को ईश्वर के साथ जोड़ना। दोनों ईश्वर में लीन हो जाएं। सारांश 1_ मन और बुद्धि के संघर्ष में बुद्धि को प्रमाण माने। 2 _ दोनों एक हो जाए , ऐसा प्रयत्न करें । 3_ दोनों का ईश्वर में योग हो, दोनों ईश्वर में लीन करें।