तुम पृथ्वी के नमक हो

यीशु का अपने प्राथमिक शिष्यों को उपदेश

विनोबा ने गीता, भागवत, धम्मपद, जपुजी, कुरआन आदि अनेक धर्मग्रंथों के नवनीत लिखे हैं। इसके पीछे उनका मन्तव्य दिलों को जोड़ने का रहा है। ख्रिस्त धर्म सार इसी योजना की अगली कड़ी है. इसमें विनोबा ने न्यू टेस्टामेंट का सार सर्वस्व लिखा है। पिछले अंक में हम पहली कड़ी पढ़ चुके हैं, प्रस्तुत है यह दूसरी कड़ी।

प्राथमिक शिष्य
उस समय से यीशु ने प्रचार करना और यह कहना प्रारंभ किया कि पश्चात्ताप करो, क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है। उसने गलील के समुद्र के किनारे घूमते हुए दो भाइयों अर्थात शमौन को, जो पतरस कहलाता है और उसके भाई अन्द्रियास को समुद्र में जाल डालते देखा; क्योंकि वे मछुआरे थे और उनसे कहा : मेरे पीछे चले आओ, तो मैं तुम्हें मनुष्यों को पकड़ने वाले बनाऊंगा। वे तुरंत जालों को छोड़कर उसके पीछे हो लिये। फिर वहां से आगे बढ़कर उसने और दो भाइयों अर्थात जब्दी के पुत्र याकूब और उसके भाई यूहन्ना को अपने पिता जब्दी के साथ नाव पर अपने जालों को सुधारते देखा और उन्हें भी बुलाया। वे तुरंत नाव और अपने पिता को छोड़कर उसके पीछे हो लिये और मनुष्यों की भारी भीड़ उसके पीछे हो ली।
(मत्ती 4.17-22, 25)


धन्याष्टक
वह उस भीड़ को देखकर पहाड़ पर चढ़ गया और जब वह वहां स्थिर हो गया तो उसके शिष्य उसके पास आये और वह अपना मुंह खोलकर उन्हें उपदेश देने लगा : धन्य हैं वे, जो मन के दीन हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है। धन्य हैं वे, जो शोक करते हैं, क्योंकि वे शांति पायेंगे। धन्य हैं वे, जो नम्र हैं, क्योंकि वे पृथ्वी के अधिकारी होंगे। धन्य हैं वे, जो सद्धर्म के भूखे और प्यासे हैं, क्योंकि वे तृप्त किये जायेंगे। धन्य हैं वे, जो दयावान हैं, क्योंकि उन पर दया की जायेगी। धन्य हैं वे, जिनके हृदय शुद्ध हैं, क्योंकि वे ईश्वर का दर्शन पायेंगे। धन्य हैं वे, जो शांति स्थापित कराने वाले हैं, क्योंकि वे ईश्वर के पुत्र कहलायेंगे। धन्य हैं वे, जिन्हें सद्धर्म पालन के लिए अत्याचार सहने पड़ते हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है। धन्य हो तुम। जब लोग मेरे कारण तुम्हारी निन्दा करें, सतायें और झूठ बोलकर तुम्हारे विरोध में सब प्रकार की बुरी बातें कहें, तब आनंदित और उल्लसित हो जाओ, क्योंकि तुम्हें स्वर्ग में उत्तम फल मिलेगा, इसलिए कि तुमसे पहले के संदेष्टाओं को उन्होंने इसी तरह सताया था। (मत्ती 5.1-12)

धरती का नमक
तुम पृथ्वी के नमक हो, पर यदि नमक का सलोनापन नष्ट हो जाय, तो फिर वह किस वस्तु से नमकीन किया जायेगा? फिर वह किसी काम का नहीं, सिवा इसके कि बाहर फेंका जाय और मनुष्यों के पैरों तले रौंदा जाय। तुम जगत का प्रकाश हो; जो नगर पहाड़ पर बसा हुआ है, वह छिप नहीं सकता और लोग दिया जलाकर किसी चीज के नीचे नहीं, परंतु दीवट पर रखते हैं; तब उससे घर के सब लोगों को प्रकाश पहुंचता है। उसी प्रकार तुम्हारा प्रकाश मनुष्यों के सम्मुख फैले, जिससे कि वे तुम्हारे सत्कर्मों को देखकर तुम्हारे परमपिता की बड़ाई करें। (मत्ती 5.13-16)

परिपूर्ति करने के लिए
यह न समझो कि मैं प्राचीन शास्त्रों और ईश्वरीय नियमों का उच्छेद करने आया हूं। मैं ईश्वरीय नियमों का उच्छेद करने नहीं, अपितु परिपूर्ति करने आया हूं, क्योंकि मैं तुमसे सच कहता हूं कि जब तक आकाश और पृथ्वी का अस्तित्व है, तब तक घास के एक तिनके के लिए भी यह संभव नहीं कि वह ईश्वरीय नियमों का पालन न करे। इसलिए जो कोई ईश्वरीय नियमों का रत्ती भर भी उल्लंघन करेगा और वैसा ही लोगों को सिखायेगा, वह स्वर्ग के राज्य में अत्यन्त क्षुद्र माना जायेगा, परंतु जो कोई उनका पालन करेगा और उन्हें सिखायेगा, वही स्वर्ग के राज्य में महान कहलायेगा, क्योंकि मैं तुमसे कहता हूं कि यदि तुम्हारा सद्धर्म कर्मकांडी शास्त्रियों और फरीसियों के सद्धर्म से श्रेष्ठ न होगा तो तुम स्वर्ग के राज्य में कभी प्रवेश करने न पाओगे। (मत्ती 5.17-20)

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