ब्रह्मविद्या, मंदिर के कण-कण में अपनी उपस्थिति का आभास कराती है। मजदूरी के क्षेत्र में ब्रह्मविद्या के अनूठे प्रयोग के लिए स्थापित यह आश्रम अपनी इसी आध्यात्मिक सुगंध के लिए जाना जाता है।
ब्रह्मविद्या मंदिर जमीन से जितनी ऊंचाई पर स्थित है, उससे कहीं ज्यादा अध्यात्म की गहराई में समाहित है। विनोबा जी चिंतनशील पुरुष थे। इसलिए उनके सारे प्रयोग आहार, आरोग्य, निद्रा, खेती, सफाई, कताई, बुनाई आदि के चलते थे। बाबा चरखा, चूल्हा, चक्की को आराध्य देवता मानते थे। झाड़ू, कुदाल और हंसिया अहिंसा के औजार हैं, जबकि तलवार,बम आदि हिंसा के हथियार हैं। ब्रह्मविद्या मंदिर में ज्ञान, कर्म और भक्ति, तीनों का समन्वय है, इसीलिए यह स्वर्ग है। बाबा के जीवन में अध्यात्म के जो आयाम देखे गए, वे सब ब्रह्मविद्या मंदिर में आज भी देखे जा सकते हैं। यहां का जीवन उन्हीं आध्यात्मिक ऊंचाइयों पर आधारित है।
ब्रह्मविद्या, मंदिर के कण-कण में अपनी उपस्थिति का आभास कराती है। मजदूरी के क्षेत्र में ब्रह्मविद्या के अनूठे प्रयोग के लिए स्थापित यह आश्रम अपनी इसी आध्यात्मिक सुगंध के लिए जाना जाता है। आश्रम के द्वार से ही सादगी, सरलता, ऋजुता, सहजता और समानता के दर्शन होते हैं। सबके लिए खुला है मंदिर है ये हमारा/ आओ कोई भी पंथी/ आओ कोई भी धर्मी/ देशी-विदेशियों का मंदिर है ये हमारा। ये पंक्तियां भी यहां पूर्ण रूप से चरितार्थ होती हैं। बाबा विनोबा ने श्रम की महत्ता को जीवन में बहुत महत्व दिया है, उनके गीता-प्रवचन में भी इसकी झलक मिलती है। ब्रह्मविद्या मंदिर का सारा अर्थशास्त्र ही श्रम से जुड़ा है।
‘बिनु श्रम खावे, चोर कहावे’ यह तो यहां की सिखावन ही है। यहां की तपस्वी बहनें तो 90 के पार पहुंचने पर भी इस संकल्प का निर्वाह प्रतिदिन पूरे मनोयोग से करती हैं। बाबा ने ‘शुचिता से आत्मदर्शन’ कहा तो यहां का इतना बड़ा परिसर भी स्वयं में अति स्वच्छ दिखता है। यह समाज को बहुत बड़ा संदेश देता है। आरोग्य भी यहां की कसौटी है, ऐसे बहुत कम अवसर आते हैं, जब यहां की देवतुल्य बहनें बीमार पड़ती हों। स्वाबलंबन की तो प्रतिमूर्ति है ब्रह्मविद्या मंदिर। सब्जी, दूध, फल, अन्न, वस्त्र, ईंधन अर्थात गैस आदि सभी में पूर्ण स्वाबलंबी। ब्रह्मविद्या मंदिर स्वयं में तो दबाव मुक्त है ही, अच्छी बात यह है कि आश्रम किसी प्रकार का कोई दबाव समाज पर भी नहीं बनाता है, उदाहरण के लिए यहां गांधी, विनोबा की पुस्तकों का सुंदर बिक्री केंद्र है।
आगंतुक, विजिटर्स जो भी आते हैं, कोई पुस्तक खरीदे तो ठीक कुछ न खरीदे तो ठीक। किसी पर किसी प्रकार का कोई दबाव नहीं होता। मैत्री पत्रिका के लिए सूचित तो सबको किया जाता है, ग्राहक बनने के लिए किसी पर किसी प्रकार का दबाव कभी नहीं डाला जाता है। सम्पूर्ण दिवस का जीवन यहां अति सहजता से चलता है। हम सब के लिए ब्रह्मविद्या मंदिर किसी तीर्थ से कम नहीं है। उसी भाव से सारे देश के लोग यहां निरंतर आते रहते हैं।
-रमेश भइया