भूदान डायरी; विनोबा विचार प्रवाह : एक दूसरे को देते रहने से सारी सृष्टि सुंदर चलती है।

बाबा का मांगने का ढंग अद्भुत ही था. वे गरीबों के लिए भूमिदान मांगते थे, लेकिन बताते थे कि इसमें बचत श्रीमानों की भी होती है। मैं श्रीमानों के घर ठहरकर उनके घर ही आग लगाता हूं। यही उनके घर होने वाला उज्ज्वल यज्ञ है। इस यज्ञ से कोई आग नहीं लगती.

बाबा की यह अद्भुत शिक्षा थी कि धन की तीन ही गतियां होती हैं- दान,भोग या नाश। पैसे संपत्ति के सदुपयोग के तीन ही मार्ग बताए गए हैं. या तो आप खा लीजिए,भोग लीजिए या फिर दान दीजिए। अगर यह तीनों नहीं किया, तो धन का नाश ही हो जायेगा। भूदान की दृष्टि से बाबा समझाते थे कि जितना खा सकते हो, उतना जरूर खाओ, पेटभर के खाओ, लेकिन पेटी भरकर रखने की कोशिश मत करना, क्योंकि बाकी का अगर रख लोगे, तो बाबा के हक का क्या होगा? या कम्युनिस्ट भाइयों के हक का क्या होगा? इसलिए तय आपको करना है। पैसे या संपत्ति के लिए अभी कोई चौथा प्रकार नहीं बना, क्योंकि भर्तहरि का वाक्य है, ‘दानम भोगो नाश: गतयो भवंति वित्तस्य! यानी पहला खा लो, दूसरा जितना दान दे सकते हो, वह बाबा को दे दो. इसके बाद भी यदि बचाकर रखा, तो डाका या फिर नाश अवश्यम्भावी है..

बाबा बताते थे कि मेरी मां बचपन में कहती थी कि यदि कोई मांगने आए, तो जरा भी विचार नहीं करना, उसे दे ही देना। मां कहती थी जो देते हैं, वे देव बनते हैं और जो रख लेते हैं, वे राक्षस बनते हैं। अर्थात देने वाले देव और रखने वाले राक्षस हुए। संतों का भी तो यही कहना है कि देते जाओ तो मिलता जायेगा. मेघ बारिश देता है, तो समुद्र से उसको फिर वापस मिल जाता है। समुद्र मेघ को देता है और मेघ समुद्र को। एक दूसरे को देते रहने से सारी सृष्टि सुंदर चलती है। बाबा का मांगने का ढंग अद्भुत ही था. वे गरीबों के लिए भूमिदान मांगते थे, लेकिन बताते थे कि इसमें बचत श्रीमानों की भी होती है। मैं श्रीमानों के घर ठहरकर उनके घर ही आग लगाता हूं। यही उनके घर होने वाला उज्ज्वल यज्ञ है। इस यज्ञ से कोई आग नहीं लगती. दान के बारे में बाबा बड़ा ही स्पष्ट कहते थे कि दान देकर कोई उपकार नहीं कर रहा है, क्योंकि हमारे शास्त्रों में ‘दानम संविभाग:’ यानी दान द्वारा समाज में समान विभाजन करने की बात कही गई है। समाज में जितने भी लड़के-बच्चे हैं, उनकी व्यवस्था समाज ही करे। जिस तरह आप अपनी जमीन का हिस्सा अपने बच्चों को देते हैं, वैसे ही गरीबों का हिस्सा भी हमको देना चाहिए।

        मां कहती थी जो देते हैं, वे देव बनते हैं और जो रख लेते हैं, वे राक्षस बनते हैं। अर्थात देने वाले देव और रखने वाले राक्षस हुए। संतों का भी तो यही कहना है कि देते जाओ तो मिलता जायेगा. मेघ बारिश देता है, तो समुद्र से उसको फिर वापस मिल जाता है। समुद्र मेघ को देता है और मेघ समुद्र को। एक दूसरे को देते रहने से सारी सृष्टि सुंदर चलती है। 

बाबा बहुत सुंदर ढंग से समझाते थे कि हवा, पानी और सूरज की रोशनी के समान ही जमीन भी भगवान की देन है। अतः उस पर सबका अधिकार है। बाबा की इस बात में स्वच्छ, शुद्ध, निर्मल प्रमेय है । यह एक जीवित सत्य है। इसका आकलन मनुष्य को जब तक नहीं होगा, तब तक वह और किसी भी उपाय से सच्चे अर्थ में सुखी नहीं होगा।

Co Editor Sarvodaya Jagat

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