जिस भगवान ने गीता में कहा था कि अर्जुन, वे सब मर चुके हैं, तू सिर्फ निमित्त मात्र बन, वही आज बेजमीनों के पास जमीन पहुंचाने और जमीन वालों को प्रेरणा देने के लिए मुझे भी निमित्त मात्र बनाना चाहता है।
बलिदान का मतलब है बलिराजा का दिया हुआ दान, यानी बलवानों का दान, दुर्बलों का नहीं। बलिराजा चक्रवर्ती सम्राट थे, उनसे भी तीन कदम भूमि मांगी गई थी। वामन की तरह मेरा पहला कदम है, अपनी भूमि का छठा हिस्सा जमीन दान दीजिए , दूसरा कदम है सालंक्रत कन्यादान, यानी जमीन के साथ और साधन भी दान में दें, तीसरा कदम ये कि गरीबों की सेवा करते-करते खुद गरीब बन जाओ। ‘शिवो भूत्वा शिवम् यजेत’ यह पुराना ही काम है, लेकिन युग के आधार पर काम का रूप भी बदलता है। बाबा यात्रा के दिनों में समाज को इस रूप में देखते थे कि यह जो काला बाजार पैसे को परमेश्वर मानकर चल रहा है, उसकी निन्दा इसलिए नहीं करता हूं क्योंकि बाबा जानते हैं कि लोगों के दिल पाक हैं। यह तो एक बिगड़ी हुई हवा है, जिसने लोगों के दिलों को भी बिगाड़ दिया है। यह सब उसी कृत्रिम समाज रचना का परिणाम है, जिसमें पैसे को महत्ता मिली हुई है, यहां तक कि सरकार भी डॉलर हासिल करने में अपनी रक्षा समझती है। इस तरह गलत समाज रचना और गलत आर्थिक रचना के कारण लोगों से अनिच्छापूर्वक पाप हो रहा है।
आम जनता का दिल शुद्ध है और बाबा उसका साक्षी है। बाबा ने एक दिन की घटना बताई कि मुझे तो अंधों ने भी जमीन दान दी, इनके अंदर यह प्रेरणा कहां से आई? एक छोटे से गांव में प्रार्थना में बाबा ने अपने विचार समझाये। वहां से चार मील दूर से रामचरण नाम का एक अंधा व्यक्ति आया, जिसने बाबा को राम के चरणों का दर्शन कराया, अर्थात वह रात में 11 बजे आया और दान देकर चला गया। उस अंधे व्यक्ति को क्या दर्शन हुआ था, जिससे वह दान देने आ सका? इसका सीधा इशारा है कि परमेश्वर जिस काम को चाहता है, उसे वह खुद प्रेरणा देता है। बाबा जैसे कमजोर व्यक्ति के जरिए वह काम ले रहा है। यह काम होकर रहेगा।
गलत समाज रचना और गलत आर्थिक रचना के कारण लोगों से अनिच्छापूर्वक पाप हो रहा है।
बाबा ने एक सभा में कहा कि आप लोग कितनी जमीन देते हो, इसकी मुझे फिक्र नहीं। जिस भगवान ने गीता में कहा था कि अर्जुन, वे सब मर चुके हैं, तू सिर्फ निमित्तमात्र बन, वही आज बेजमीनों के पास जमीन पहुंचाने और जमीन वालों को प्रेरणा देने के लिए मुझे भी निमित्त मात्र बनाना चाहता है। केवल जमीन पहुंचाना हमारा ध्येय नहीं, हमारा उद्देश्य है कि जमीन यज्ञरूप हस्तांतरण करके पहुंचे। हर किसी को विचार करने का अधिकार होना चाहिए। केवल मेरा विचार लोगों तक पहुंचे, बाकी विचार बंद हो जाएं, ऐसा मैं बिल्कुल नहीं चाहता हूं। कम्युनिस्ट अपने विचार जनता के सामने रखें। मैं अपना विचार रक्खूंगा। दूसरे लोग भी अपना-अपना विचार रखेंगे। फिर जनता को जो विचार पसंद आएगा, उसे वह स्वीकार कर लेगी। विचारों में से चुनाव करने का अधिकार जनता को होना ही चाहिए। -रमेश भइया