जिस हत्यारी विचारधारा ने तीन गोलियां मारकर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जर्जर काया का अंत किया, वही विचारधारा आज बापू की वैचारिक विरासत को मिटाने के काम में लगी हुई है। आजादी की 75वीं और भारत छोड़ो आंदोलन की 80वीं वर्षगांठ मना रहा भारत, वह भारत नहीं रह गया है, जिसके लिए बापू जीये और मरे। तुषार गांधी कहते हैं कि हमारे राष्ट्र निर्माताओं ने जिस भारत का सपना देखा था, उसे बचाये रखने के लिए आज ‘नफरतों! भारत छोड़ो’ का नया नारा उठाने का समय आ गया है। यह हम सबकी साझा जिम्मेदारी है, जो खुद को बापू की विचारधारा का उत्तराधिकारी मानते हैं।
जिस विचारधारा ने बापू के हत्यारे नाथूराम गोडसे को पोषित किया, उसने बापू की हत्या को सही ठहराने के लिए झूठ का एक संगठित अभियान भी चलाया। सात दशकों से उन्होंने इस अभियान को इतनी सफलतापूर्वक अंजाम दिया है कि आबादी का अधिकांश हिस्सा अब उनके झूठ पर यकीन करने लगा है। यह अभियान, झूठ को तब तक दोहराने की गोएबेलियन रणनीति का प्रतीक है, जब तक कि उसे सच न मान लिया जाये। नफरत और हिंसा की जहरीली विचारधारा का सूत्रधार संघ परिवार, जो बापू की हत्या का संरक्षक था, अब यह चिल्ला रहा है कि उसके पास पूरी ताकत है, वे एक तरफ उनकी पूजा करने का नाटक करते हैं और दूसरी तरफ आधिकारिक तौर पर इस तरह के अभियान का संरक्षण करते हैं। अब वे इसे अगले स्तर पर ले जा रहे हैं, हत्या के बारे में ही संदेह फैला रहे हैं। कुछ समय पहले मुंबई उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर कर महात्मा गांधी की हत्या की जांच फिर से शुरू करने की मांग की गई थी। हाईकोर्ट ने याचिका को स्वीकार करने से ही इनकार कर दिया और तुरंत खारिज कर दिया। याचिकाकर्ता सावरकर का स्वयंभू भक्त है और अभिनव भारत संस्था से संबंधित है. याचिका में कपूर आयोग की 1969 की रिपोर्ट के निष्कर्षों को अमान्य करने और महात्मा गांधी की हत्या की नए सिरे से जांच का आदेश देने का अनुरोध किया गया था। कपूर आयोग ने अपनी जांच में बापू की हत्या और आरएसएस के बीच की कड़ियों की स्थापना की थी और हत्या की साजिश में सावरकर की संलिप्तता के सबूत भी दिखाए थे। कपूर आयोग की रिपोर्ट का अस्तित्व संघ परिवार के लिए चिंता का कारण रहा है, मुंबई हाई कोर्ट में खारिज की गई और सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुनी गई याचिकाएं समकालीन इतिहास को बदनाम करने और इसे बदलने की रणनीति के अहम कदम हैं।
2014 में मौजूदा सरकार के सत्ता में आने के तुरंत बाद पीएमओ के आदेश से 14 हजार से अधिक ऐतिहासिक महत्व के दस्तावेजों को नष्ट करने के लिए एक बड़ी कवायद की गई, उनमें से कई राष्ट्रीय अभिलेखागार में थे। इन दस्तावेजों को जला दिया गया। इस बात का कोई रिकॉर्ड नहीं है कि किन दस्तावेजों को नष्ट किया गया और उन्हें कैसे बेकार समझा गया। यही काम एनडीए-1 के शासन काल में भी किया गया था। हम कभी नहीं जान पाएंगे कि क्या यह इतिहास को पवित्र करने का प्रयास था, क्या यह असुविधाजनक सत्य को मिटाने का प्रयास था या क्या यह इतिहास को फिर से लिखने के उनके अभियान का हिस्सा था। लेकिन तथ्य यह है कि बिना उचित प्रक्रिया अपनाये 14000 दस्तावेजों को बेकार कहकर नष्ट कर दिया गया, उनमें निहित जानकारी हमेशा के लिए खो गई। असत्य के प्रवर्तक और संघ परिवार के प्रचारक सुब्रमण्यम स्वामी ने बापू की हत्या के बारे में झूठ फैलाने और सच्चाई पर मिट्टी डालने का बीड़ा उठाया है।
अदृश्य आदमी
सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुनी गई याचिका में आरोप लगाया गया है कि ‘30 जनवरी 1948 की शाम को बिड़ला हाउस में एक दूसरा बंदूकधारी भी मौजूद था, उसी के द्वारा चलाई गयी चौथी गोली बापू को लगी और उनकी मृत्यु हो गई। नाथूराम गोडसे ने बापू को नहीं मारा।’ उस शाम, बिरला हाउस में एक हजार से अधिक लोग मौजूद थे, फिर भी दूसरे बंदूकधारी ने बापू पर रहस्यमय तरीके से गोली चलाई, किसी का ध्यान नहीं गया और वह भाग भी गया, जैसे कि उसने हैरी पॉटर का अदृश्य हो जाने वाला लबादा लपेट रखा हो!
यह रहस्यमय बंदूकधारी, उस आरएसएस और उसके कैडर द्वारा बापू की हत्या को सही ठहराने के लिए चलाई गई गल्प का हिस्सा है, जो अब दुर्भाग्य से भारत पर शासन कर रहा है। अपनी भयावह योजनाओं को आगे बढ़ाते हुए अब वे बापू की हत्या के स्मारक गांधी स्मृति से 30 जनवरी की वास्तविक घटनाओं के साक्ष्य भी धीरे-धीरे मिटा रहे हैं, ताकि भविष्य में वे बापू की हत्या की झूठी काल्पनिक कहानी सामने रख सकें।
काल्पनिक गोली
याचिका में याचिकाकर्ता ने चश्मदीद गवाह के रूप में मनुबेन के हवाले से लिखा है कि बापू के शरीर को जब नहलाया जा रहा था, तो उन्होंने पाया कि एक गोली शॉल की सिलवटों में उलझी हुई थी। याचिकाकर्ता का दावा है कि यही चौथी गोली थी। गांधी की हत्या की जांच में तीन गोलियां चलने की पुष्टि हुई है. तीनों गोलियां बापू की छाती पर लगी थीं. उनकी पीठ पर दो घाव थे, जहां से होकर दो गोलियां उनके कमजोर शरीर से बाहर निकलीं। एक गोली बापू से लगभग दस फीट दूर फूलों की क्यारियों में पुलिस को मिली. दूसरी गोली जो बापू के शरीर में रह गई थी, वह राजघाट पर चिता से पिघले हुए सीसे की एक गांठ के रूप में बरामद हुई, जब अंतिम संस्कार के बाद राख को इकट्ठा किया जा रहा था और तीसरी गोली वह थी, जो उनके शॉल की तह से उनको नहलाते समय बरामद की गई थी। चौथी गोली कभी नहीं मिली, क्योंकि वह मौजूद ही नहीं थी।
जगाओ न बापू को नींद आ गयी है
गांधी की हत्या के बारे में झूठ बोलने वालों के लिए ये असुविधाजनक तथ्य हैं। अब उन्हें लगता है कि उनके पास इतिहास को फिर से लिखने की क्षमता है, इसलिए वे सच्चाई को किसी ऐसी चीज से बदलने की कोशिश कर रहे हैं, जो उनके लिए बेहतर हो। उन्होंने इतिहास के तथ्यों का सफलतापूर्वक मिथकीकरण किया है, अब वे समकालीन इतिहास को भी बदनाम करेंगे और इसे अपने लिए सुविधाजनक कहानियों के साथ बदल देंगे। धिक्कार है!
जिस विचारधारा ने बापू की हत्या करवा दी, वह केवल मोहनदास गांधी की हत्या से संतुष्ट नहीं है, वे उनकी विचारधारा और विरासत को भी मिटाना और उसे भ्रष्ट करना चाहते हैं। उनकी विचारधारा को भ्रष्ट करने और नीचा दिखाने तथा उनके हत्यारे की प्रशंसा करने के लिए एक व्यवस्थित और आधिकारिक रूप से संरक्षित अभियान शुरू किया गया है। कभी-कभी वे हत्या के हथियार की प्रतिकृतियों की पूजा करते हैं, कभी-कभी उनके हत्यारे को उनके चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा जनता के साथ-साथ संसद के सदनों में भी सम्मानित किया जाता है। उनके स्मारकों को फिर से तैयार करने का प्रयास किया जा रहा है, ताकि लोग वास्तविक इतिहास और विचारधारा को न देख सकें।
आजादी के तुरंत बाद महासभा, संघ और तत्कालीन राजाओं की मंडली द्वारा भारत की लोकतांत्रिक सरकार को उखाड़ फेंकने और हिंदू वर्चस्ववादी राष्ट्र बनाने के लिए एक भयावह साजिश रची गई थी। बापू की हत्या को उस सरकार को उखाड़ फेंकने का संकेत माना गया। उन्होंने आदमी की हत्या तो कर दी, लेकिन उसकी विरासत और अधिक शक्तिशाली हो गई और राष्ट्र बच गया। राष्ट्रपिता की शहादत ने लगभग पांच दशक तक नफरत की ताकतों को दूर रखा, लेकिन वे भूमिगत रूप से मजबूत होते रहे और उनके झूठ के अभियान ने उन्हें भारतीयों की एक-दो पीढ़ियों को झूठ और नफरत भरी उस विचारधारा पर विश्वास करने में मदद की। 80 के दशक में हिंदू वर्चस्ववादी ताकतों का उदय हुआ और 90 के दशक में उन्होंने अपनी शक्ति को मजबूत किया, वे अब भारतीय मुख्यधारा की आवाज बन गए हैं और धर्मनिरपेक्ष, उदार और सहिष्णु ताकतों को सफलतापूर्वक पीछे छोड़ रहे हैं। भारतीय समाज के रक्त प्रवाह में लगातार नफरत का जहर डालने के बाद, वे भारत को कट्टर बनाने में अब सफल होते दिख रहे हैं।
1992 के बाद वे मुख्यधारा बन गए और राष्ट्र तथा इसके संविधान के संस्थापक गांधी की विरासत पर अपना अंतिम हमला किया। न्यू इंडिया, हिंदू राष्ट्र बनाने का उनका एजेंडा अब उनकी उम्मीद से भी ज्यादा सफल है। राष्ट्र विभाजित हो गया है, उसकी आत्मा को जहर दिया गया है, खून की प्यासी भीड़ को शातिर तरीके से कट्टरपंथी बना दिया गया है। 2014 में कट्टरता भारत का आधिकारिक चेहरा बन गई, अब वे गांधी को सार्वजनिक मानस से पूरी तरह से मिटाने के अभियान पर हैं। पहला कदम राष्ट्रीय अभिलेखागार से हजारों ऐतिहासिक दस्तावेजों का विनाश था, उन्होंने भारत के इतिहास को फिर से लिखना शुरू कर दिया है। एनडीए-1 के दौरान गांधी के लिखित शब्दों पर पहला हमला तब हुआ, जब प्रकाशन विभाग ने महात्मा गांधी के 100 खंडों के संग्रह को ‘पुनर्प्रकाशित’ किया, सौभाग्य से उनकी शरारत पर ध्यान दिया गया और एक मजबूत विरोध के बाद एक समिति ने संस्करणों के दोषपूर्ण सेट को नष्ट करने का फैसला किया और एक के बाद एक व्यापक और श्रमसाध्य प्रयास से एकत्रित कार्यों को ठीक किया गया, जाँचा गया और पुनर्प्रकाशित किया गया, गांधी के शब्दों को बचाया गया। लेकिन गांधी की विरासत को मिटाने और राष्ट्र के चरित्र को बदलने के उनके प्रयास का यह अंत नहीं था। देश पर अपनी मर्जी थोपने के लिए उन्हें राष्ट्र के लोगों में नफरत का जहर भरना पड़ा, यह उनके लिए आसान था, नफरत उनका पंथ, उनकी विचारधारा थी। नफरत का एक नरक तैयार किया जा रहा था, जिसमें राष्ट्र की आत्मा को जला दिया जाना था। इस काम में वे शानदार ढंग से सफल हुए हैं।
अब जो कुछ किया जाना बाकी है, वह भारत के चरित्र, सरदार, नेताजी, नेहरू, अम्बेडकर, भगत सिंह और गांधी की विरासत को सम्पूर्ण रूप से बदलना है। मोदी ने अपनी दूसरी पारी में एक ‘नए’ भारत के जन्म की प्रक्रिया को स्टेरॉयड पर रखा है। नई पारी के पहले महीनों में संविधान की भावना और भारत की आत्मा पर हमले तेज हो गए हैं, सरकार के संरक्षण में नफरत का अभियान तेज हो गया है। लोकतंत्र के स्तंभ कमजोर हो गए हैं या उनसे समझौता कर लिया गया है। भारत का सांप्रदायीकरण किया जा रहा है, कट्टरपंथी बनाया जा रहा है और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को अप्रभावी और जोड़-तोड़ करने योग्य बनाने के उद्देश्य से जनता को विभाजित किया जा रहा है। क्रूर भीड़ के शासन को प्रोत्साहन और संरक्षण दिया जा रहा है। फासीवाद राष्ट्र पर नियंत्रण कर रहा है। निरंकुशता लोकतंत्र का गला घोंट रही है। गांधी और हमारे संस्थापकों के सपनों का भारत मर चुका है। बड़ी संख्या में लोगों ने नफरत और असहिष्णुता की विचारधारा को अपना लिया है और सरकार उन्हें संरक्षण देती दिख रही है। वरिष्ठ मंत्री खुले तौर पर कहते हैं कि उन्हें जनता की राय की परवाह नहीं है, उनके लिए केवल सत्ता मायने रखती है।
आज देश भारत छोड़ो आंदोलन की 80वीं वर्षगांठ मना रहा है। अंग्रेजों! भारत छोड़ो और करो या मरो के मंत्र ने देशवासियों के मन में आजादी की ज्वाला भर दी थी। देश के निर्माताओं ने जिस भारत का सपना देखा था, उसे बचाने के लिए नफरत भारत छोड़ो का नारा उठाने का समय आ गया है। 75 साल का भारत, अब वह भारत नहीं रहा, जिसके लिए बापू जिए और मरे। भारत को तबाह होने से बचाने का समय आ गया है। यह उन सभी की जिम्मेदारी और कर्तव्य है, जो अभी भी बापू की विचारधारा में विश्वास करते हैं।
-तुषार गांधी