अपनी ही आंखों पर लोगों को विश्वास नहीं हो रहा था। लोग देख रहे थे कि दो लाख रुपए के ईनाम वाले बागी, मोहर सिंह, जिनका नाम सुनकर कोई व्यक्ति या समूह नहीं, पूरे इलाके की नींद उड़ जाती थी, वह अपने साथियों के साथ दिन के उजाले में जयप्रकाश […]
मानवाधिकारों से जुड़ी समस्त अवधारणाएं, घोषणाएं और व्यवस्थाएं, जिनमें साइरस से लेकर महात्मा गाँधी या गत बीसवीं शताब्दी में ही अमरीकी अश्वेतों के नागरिक अधिकारों के लिए संघर्षकर्ता मार्टिन लूथर किंग जूनियर तक के व्यक्तिगत विचार, संयुक्त राष्ट्र संघ से लेकर अन्य अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं की घोषणाएं और विश्व के राष्ट्रों […]
हिन्दू चेतना का विकास रामकृष्ण परमहंस, विवेकानन्द, अरविन्द, गांधी एवं विनोबा जैसों के माध्यम से हो रहा था, जो सर्वसमावेशी था और पूंजीवादी साम्राज्यवाद की सभ्यता का निषेध करने वाला था। इसी प्रकार मौलाना आजाद, अशफाकउल्ला जैसों का इस्लाम भी पूंजीवादी साम्राज्यवाद का विरोधी था। राष्ट्र की चेतना सभी प्रकार […]
भारत सरकार की ग्रामीण पेयजल योजना और यूपी जल निगम द्वारा लागू योजनाओं के प्रति आम लोग उदासीन हैं और अपने अपने घरों में आरओ लगवाना चाहते हैं, लेकिन ग्रामीण यह नहीं जानते क आरओ समस्या का कोई समाधान नहीं, बल्कि यह स्वंय ही एक बड़ी समस्या है. भारत सरकार […]
यह उनकी कहानी है, जिन्होंने प्रेम के शस्त्र से अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ने का अभ्यास किया। यह उनकी कहानी है, जिन्होंने मानवीय दृष्टि से स्वयं अपना ही मूल्यांकन करना सीखा। यह उन नीग्रो नेताओं की कहानी है, जिनके सिद्धांत और विश्वास अलग-अलग थे, पर जो न्याय एवं वास्तविक अधिकारों […]
जनसंघ के राज्य सभा सदस्य के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी ने जवाहर लाल नेहरू का मई 1964 में निधन होने के बाद उन्हें जिन शब्दों में श्र्द्धांजलि दी, वह आज भी प्रासंगिक है। – सं. आज एक सपना खत्म हो गया है, एक गीत खामोश हो गया है, एक […]
दोनों का स्वभाव अलग था। जवाहर नर्म, शांतचित्त, ओपन माइंड और सुभाष जरा गर्म, लेकिन जहीन, वाद विवाद पसन्द करने वाले। मगर समानताएँ भी थीं। दोनों बड़े परिवारों से थे, दोनों अंग्रेजीदां, दोनों कैम्ब्रिज में पढ़े, दोनों ने अच्छे कैरियर ऑप्शन त्यागकर आंदोलन ज्वाइन किया था। दोनों दुनिया में चल […]
गांधी और नेहरू का यह राष्ट्रवाद टैगोर की वैश्विक दृष्टि का अनुपूरक था, प्रतिपक्षी नहीं। पर राष्ट्रवाद का एक दूसरा रूप भी है, जिसमें अपनी लकीर बड़ी दिखाने के लिए दूसरों की लकीर छोटी करनी पड़ती है, भले ही लाक्षणिक रीति से ही सही, इसमें मैजिनी और हिटलर के ‘नेशनलिज्म’ […]
“मैं आपका प्रधानमंत्री हूँ, पर इसका मतलब ये कभी नहीं है कि मैं आपका राजा या शासक हूँ। वास्तव में मैं आपका एक सेवक हूँ और जब आप मुझे मेरे कर्तव्य में असफल होते देखते हैं, तो यह आपका कर्तव्य होगा कि आप मेरा कान पकड़ें और मुझे कुर्सी से […]
हिन्दुस्तान वह सब कुछ है, जिसे उन्होंने समझ रखा है, लेकिन वह इससे भी बहुत ज्यादा है। हिन्दुस्तान के नदी और पहाड़, जंगल और खेत, जो हमें अन्न देते हैं, ये सभी हमें अजीज हैं, लेकिन आखिरकार जिनकी गिनती है, वे हैं हिन्दुस्तान के लोग, उनके और मेरे जैसे लोग, […]