यह हो ही नहीं सकता कि आपके घर में आग लगे और आप बुझाने भी न जाएं। बाबा का ध्येय तो सर्वोदय है। इसीलिए विश्वास भी है कि सभी लोग इसमें सहयोग करेंगे।
कंजूस चोरों का बाप होता है। वही चोरों और डाकुओं को पैदा करता है। आज जो लोग हजारों एकड़ जमीन रखते हैं, वही कम्युनिस्टों को पैदा करते हैं। समझना यह है कि संग्रह की वृत्ति पाप है। कत्ल से मसला हल नहीं हो सकता। कानून से भी थोड़ा काम चल सकता है। कानून बाबा की तरह गरीबों से जमीन नहीं ले सकता। हृदय परिवर्तन जहां भी होता है, वहां सर्वस्व त्याग करने वाले फकीर निकलते हैं। बाबा का मानना था कि अब परिस्थिति ऐसी बन गई है, जहां जमीन न दान देने में खतरा है। यह हो ही नहीं सकता कि आपके घर में आग लगे और आप बुझाने भी न जाएं। बाबा का ध्येय तो सर्वोदय है। इसीलिए विश्वास भी है कि सभी लोग इसमें सहयोग करेंगे। यह काम पूरा होने वाला है, क्योंकि यह कालपुरुष की मांग है।
कानून से भी थोड़ा काम चल सकता है। कानून बाबा की तरह गरीबों से जमीन नहीं ले सकता। हृदय परिवर्तन जहां भी होता है, वहां सर्वस्व त्याग करने वाले फकीर निकलते हैं।
शास्त्रों में कहा गया है ‘ह्विया देयम, भिया देयम’ कोई शर्म से भी देना चाहे, तो भी कोई हर्ज नहीं। लोक लज्जा से दान देना भी समझदारी का ही काम माना जायेगा। यह है ह्विया देयम, और अगर कोई भय से देता है तो इसका अर्थ यह नहीं कि अगर नहीं देगा तो कत्ल कर देंगे। लेकिन किसी से यह कहने पर कि तुम्हारे बिस्तर पर सर्प पड़ा है, जल्दी भागो, उसे जो भय दिखता है, वह जरूरी है। अगर कोई डर से बुरा काम नहीं करता तो ठीक ही है। बुरा काम करने से बुरा फल मिलता है, इसलिए बुरा काम न करो, तो यह डर धार्मिक है। बुराई का फल बुरा ही होता है, यह कहना डराना नहीं, यह तो कर्म विपाक या कर्म परिणाम कहा जायेगा। आज की जरूरत बताते हुए बाबा कहते थे कि समाज को समझना चाहिए कि जमाने को न पहचानते हुए उदार दिल से दान नहीं दोगे, तो खतरा है. यह डराना नहीं, बल्कि समाज को विचार समझाना है। -रमेश भइया