बाबा ने सभी से कहा कि आपने बहुत शौर्य दिखाया, अब अक्ल भी दिखानी चाहिए। यह काम मानव को करना ही न पड़े, यह अक्ल अब सूझनी चाहिए। सबको मिलकर इसका उपाय ढूंढना चाहिए कि मेहतर को भी यह काम न करना पड़े, तभी भंगीमुक्ति का कार्य हो सकेगा।
बाबा ने इंदौर में स्वच्छ इंदौर सप्ताह मनाया और शहर के अलग-अलग हिस्से में शौर्य-कार्य यानी पाखाना सफाई का कार्य किया। बाबा कहते थे कि वहां मैला, मूत्र, पानी अर्थात सत्व, रज, तम तीनों थे। बहनें जैसे हाथ से साफ करती हैं, वैसे ही बाबा ने हाथ से सफाई की। बाबा के हाथ में दस्ताने होते थे, लेकिन हाथ धोने के बाद भी महक आती थी। पैरों में स्लिपर जूता होता था, उसे बाबा ने निकाल दिया, क्योंकि उसका नाम ही स्लिपर है, अर्थात फिसलने वाला वह तो स्लिप ही होगा। स्लिपर पहन के पखाना सफाई करना एक प्रकार का नाटक ही तो होगा।
बाबा ने सभी से कहा कि आपने बहुत शौर्य दिखाया, अब अक्ल भी दिखानी चाहिए। यह काम मानव को करना ही न पड़े, यह अक्ल अब सूझनी चाहिए। सबको मिलकर इसका उपाय ढूंढना चाहिए कि मेहतर को भी यह काम न करना पड़े, तभी भंगीमुक्ति का कार्य हो सकेगा। बाबा ने आवाहन किया कि जैसे बहनें और भाई अपने घर में सफाई करते हैं, उसी प्रकार का ख्याल रखकर वे शहर की सफाई का ध्यान रखें। अपना मोहल्ला साफ करने का जिम्मा वे ही लोग उठाएं। इस कार्य में अगर मेहतर और मेहतरानी साथ में आएं तो उनकी इज्जत करें। बाबा चाहता है कि उनका यह धंधा मिटे। उन लोगों को काम के लिए अच्छे औजार देने चाहिए, लेकिन जब तक उनका धंधा चालू है, तब तक उनके साथ सज्जन लोग भी आने चाहिए।
बाबा कहते थे कि मैला, मूत्र, पानी अर्थात सत्व, रज, तम।
सिर्फ तनख्वाह बढ़ा देने से इज्जत नहीं बढ़ती है। उनके जीवन में प्रतिष्ठा आनी चाहिए, यह ख्याल रखकर आपको उनके साथ काम करना चाहिए। उनकी प्रतिष्ठा बढ़ने का अर्थ होगा मानव की प्रतिष्ठा बढ़ेगी। इन परिवारों के बच्चों को दूसरा काम देंगे, तो दस-पांच साल में यह धंधा धीरे-धीरे मिट जायेगा। – रमेश भइया