कुछ दशकों में जल स्रोतों पर हुए अवैध कब्जे के कारण प्रायः इनका अस्तित्व ही संकट में है. तालाब और उसके आसपास की भूमि पर अवैध अतिक्रमण और निर्माण के चलते मानसून काल में भी अधिकांश तालाब पूरे भर नही पाते. पहले जब ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों के घर कच्चे और मिट्टी के होते थे तो तालाबों में जमा होने वाली सिल्ट मकान बनाने अथवा लिपाई पुताई के लिए उपयोग में ली जाती थी, किन्तु अब प्रायः मकान पक्के हो गये हैं तो सिल्ट तालाब की तलहटी में जमा होकर उसकी गहराई को लगातार कम करता जाता है. विगत कुछ वर्षों में मनरेगा के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में तालाबों की मिट्टी निकाल कर किनारे रिटेनिंग वाल बना दिए जाने का चलन शुरू हुआ है. इससे वर्षा का पूरा जल तालाब तक नहीं पहुंच पाता है, क्योंकि वर्षा जल को एकत्रित करने हेतु लगाई गई पाइप का व्यास पर्याप्त नहीं होता है.
पर्यावरण के मुद्दे पर व्यापक अर्थ में जब भी बात होगी, भूगर्भ जल के गिरते स्तर की चिंता स्वाभाविक है. अनियमित जलवायु और जल के अंधाधुंध दोहन के चलते भूगर्भ जल स्तर में वर्ष दर वर्ष कमी होती जा रही है. इसका एक बड़ा कारण तालाबों, पोखरों और अन्य जलस्रोतों का धीरे धीरे समाप्त होते जाना है. इन जल स्रोतों के मृतप्राय होने के कारण वर्षा जल का अवशोषण कम हो गया. प्रायः तालाब और उसके आसपास की भूमि पर अवैध अतिक्रमण और निर्माण के चलते मानसून काल में भी अधिकांश तालाब पूरे भर नही पाते. पहले जब ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों के घर कच्चे और मिट्टी के होते थे तो तालाबों में जमा होने वाली सिल्ट मकान बनाने अथवा लिपाई पुताई के लिए उपयोग में ली जाती थी, किन्तु अब प्रायः मकान पक्के हो गये हैं तो सिल्ट तालाब की तलहटी में जमा होकर उसकी गहराई को लगातार कम करता जाता है. विगत कुछ वर्षों में मनरेगा के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में तालाबों की मिट्टी निकाल कर किनारे रिटेनिंग वाल बना दिए जाने का चलन शुरू हुआ. इससे वर्षा का पूरा जल तालाब तक नहीं पहुंच पाता है, क्योंकि वर्षा जल को एकत्रित करने हेतु लगाई गई पाइप का व्यास पर्याप्त नहीं होता है. वहीं शहरी क्षेत्र के तालाबों की तलहटी में पॉलीथीन, थर्मोकोल, प्लास्टिक, पाउच सैशे के रैपर आदि जमा होते जाने से उसकी जल अवशोषित करने की क्षमता न्यूनतम हो गयी है. इस कारण अब ये तालाब वर्ष भर के लिए जल का संग्रह नहीं कर पाते हैं. जलकुम्भी भी तालाबों की मौत का एक बड़ा कारक है. इसे पूरी तरह नियंत्रित किये जाने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक सशक्त अभियान की जरूरत है.
विगत कुछ दशकों में जल स्रोतों पर हुए अवैध कब्जे के कारण प्रायः इनका अस्तित्व ही संकट में है. इस आलोक में यह संदर्भ देना व्यवहारिक होगा कि भारत में ग्रामीण और शहरी क्षेत्र के तालाबों पर अवैध कब्जे या पट्टे को हटाते हुए उसे सन 1952 (1359 फसली) के राजस्व रिकार्ड में अंकित क्षेत्रफल के अनुसार अतिक्रमण मुक्त करा कर पुनर्जीवित करने के लिए विभिन्न न्यायालयों और शासन की तरफ से अनेक आदेश और निर्देश जारी किये जाते रहे हैं.
माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा हिंच लाल तिवारी बनाम कमला देवी मामले में (अपील सिविल- 4787 / 2001) दिनांक 25 जुलाई 2001 को इस सम्बन्ध में आदेश निर्गत किये हैं. दुर्भाग्य से ये सभी आदेश संबंधित जिलाधिकारियों और उप जिलाधिकारियों के कार्यालयों की फाइलों में पड़े रह गये. माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद में ‘सपोर्ट इण्डिया वेलफेयर सोसाइटी’ बनाम उत्तर प्रदेश सरकार दाखिल जनहित याचिका-1474/2019 में दिनांक 16 सितम्बर 2019 को दिए गये निर्देश के अनुसार सभी जिलों के जिलाधिकारियों से कहा गया है कि वे अपने जिले में अपर जिलाधिकारी (वित्त एवं राजस्व) की अध्यक्षता में एक समिति बनाकर सभी तालाबों और पोखरों की स्थिति की रिपोर्ट तैयार करें और उन्हें सभी प्रकार से कब्जा, अतिक्रमण, पट्टा मुक्त कराते हुए सन 1952 के राजस्व अभिलेखों में वर्णित रकबे के अनुसार स्थापित करें तथा इसकी रिपोर्ट प्रत्येक 6 महीने पर मुख्य सचिव को भेजें. किन्तु दुर्भाग्य से यह आदेश भी पत्रावलियों से बाहर नहीं निकल सका, जबकि उक्त आदेश बहुत ही व्यापक और पूर्व के सभी निर्देशों को सम्मिलित करते हुए दिया गया था. आज के परिदृश्य में समाज के जागरूक लोगों और पर्यावरण के प्रति सचेत लोगों के लिए यह एक बड़ा अवसर है, जब लगातार दबाव बनाकर उक्त आदेश का अधिकतम संभव अनुपालन कराने की कोशिश की जा सकती है. उक्त जलस्रोतों के पुनर्जीवन से वर्षा के जल का अधिकतम संरक्षण हो पायेगा और भूगर्भ जल स्तर में वृद्धि होगी.
आर्थिक मंदी और कोरोना आपदा के चलते आये आर्थिक संकट के दौर में इन तालाबों और पोखरों का महत्व और बढ़ जाता है, मृतप्राय तालाबों को पुनर्जीवित करके हमें इसे आजीविका के साधन के रूप में विकसित करने के भी प्रयोग करने होंगे. मत्स्यपालन, झींगा पालन, बतख पालन, मोती सीप पालन आदि के साथ कमलगट्टा, सिंघाड़ा, मखाना आदि की खेती के अवसर तलाशना भी कुछ ग्रामीण परिवारों की आजीविका के लिए बेहतर विल्कप हो सकता है.
भूगर्भ जल संकट के दृष्टिगत समाज और सरकार दोनों की जिम्मेदारी बनती है कि हम अपने जलस्रोतों को पुनर्जीवित करें और कोशिश करें कि शत प्रतिशत वर्षा जल का संग्रह हो. जब वर्षा जल प्रचुर मात्रा में धरती में अवशोषित होकर सुरक्षित हो जाएगा तो वर्षा सत्र के बाद यही जल वापस आकर हमारे जलस्रोतों को सनीर बनाये रखेगा और हमारी धरती मां के आंचल को हमेशा हरा भरा रखने में सहायक होगा.
-वल्लभाचार्य पाण्डेय
(लेखक सामाजिक कार्यकर्ता हैं।)