इंटरनेट के जानकारों के लिए पासपोर्ट और ड्राइविंग लाइसेंस बनवाना वास्तव में सरल हो गया है, लेकिन यह उन लोगों के लिए इतना आसान नहीं है जो नेट और कंप्यूटर के जानकार नहीं हैं।
इंटरनेट के माध्यम से स्वचालन और इलेक्ट्रॉनिक प्रसंस्करण सर्वव्यापी होता जा रहा है। ई-बैंकिंग और ई-कॉमर्स ने समाज में व्यापक स्वीकृति प्राप्त की है, खासकर पिछले दो वर्षों के दौरान, जब महामारी और लॉकडाउन के कारण लोगों का बाहर निकलना प्रतिबंधित था। कई लोग, खासकर युवा शेयरों में व्यापार कर रहे हैं और नेट के माध्यम से निवेश कर रहे हैं। क्रिप्टो ट्रेडिंग पूरी तरह से नेट पर आधारित है, यहां तक कि युवा भी जो इंटरनेट के इतने अच्छे जानकार नहीं हैं, वे भी इसमें शामिल हैं। आधार संख्या के माध्यम से किसी की पहचान आज नेट के माध्यम से ही होती है। आयकर रिटर्न इलेक्ट्रॉनिक रूप से दाखिल किया जाने लगा है। सरकार बड़े पैमाने पर डिजिटलाइजेशन को बढ़ावा दे रही है। भारतीय व्यवसाय, ऑटोमेशन और डिजिटलीकरण की ओर बढ़ रहे हैं, लेकिन सवाल है कि क्या समाज इसके लिए तैयार है?
पासपोर्ट और ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने तथा यातायात नियमों के उल्लंघन के लिए जुर्माना आदि देने का काम अब नेट के माध्यम से संभव है। कुछ लोगों का मानना है कि इससे भ्रष्टाचार कम हुआ है। सैद्धांतिक रूप से बिचौलियों की व्यवस्था विस्थापित हो गयी है, यह सब सुनने में बहुत अच्छा लगता है, लेकिन क्या इसने औसत नागरिक के जीवन को सरल बना दिया है? कई शिक्षित भारतीय भी अभी स्वचालन व्यवस्था से डरते हैं, क्योंकि वे इसका सामना करने में असमर्थ हैं। इसके कारण अज्ञात हैं, लेकिन वे गलती करने से डरते हैं।
मैं विज्ञान का छात्र रहा हूं और पहली बार 1970 के दशक के मध्य में कंप्यूटर का इस्तेमाल किया था। उस समय के सबसे बड़े कंप्यूटर आईबीएम-370 के उपयोग के लिए पहले से समय बुक करना पड़ता था। लेकिन अब डेस्कटॉप और छोटे मोबाइल फोन पर बेहतर कंप्यूटिंग क्षमता उपलब्ध है। व्यक्ति अपना कार्य तुरन्त कर सकता है। 1986 में मैंने एक डेस्क टॉप का उपयोग करना शुरू किया, जो तब दो ड्राइव के साथ पांच और चौथाई इंच डिस्क का उपयोग करने में सक्षम था। इसलिए, मैं कंप्यूटर और इंटरनेट के उपयोग से काफी परिचित हूं और इसका उपयोग करने से नहीं डरता। फिर भी, मेरा जीवन पहले से जटिल हो गया है, क्योंकि बहुत समय बर्बाद हो जाता है, क्योंकि अक्सर सिस्टम खराब तरीके से डिज़ाइन किए जाते हैं और उपयोगकर्ता के अनुकूल नहीं होते हैं। दक्षता का मतलब यह होना चाहिए कि लोगों का समय और श्रम बचे।
मेरा हाल का अनुभव है कि स्वचालन और डिजिटलीकरण में अधिक से अधिक समय लगता है, जिससे जीवन में आवश्यक उपयोगी कार्य के लिए कम समय बचता है। मैं हाल के कुछ मामलों की एक सूची यहाँ रख रहा हूं, जो मुझे यह लेख लिखने के लिए विवश कर रहे हैं।
1. हाल ही में, एक अस्पताल में भर्ती होने के लिए मेडिक्लेम के तहत बीमा के दावे का भुगतान पूर्व अनुमोदन के बाद भी आंशिक रूप से किया गया, बाकी के लिए मुझसे कहा गया कि मुझे नकद भुगतान करने के बाद अपना दावा अलग से फाइल करना होगा। यह घटना कैशलेस भुगतान के विचार को हतोत्साहित करने वाली है। पूरी कागजी कार्रवाई फिर से करनी पड़ी। पहले तो कैशलेस भुगतान को मंजूरी मिलने के लिए ही बहुत इधर-उधर भागना पड़ता था।
2. एबीएसएलआई को किश्त का भुगतान 31 मार्च को करना था। इस ख्याल से कि चीजें गलत हो सकती हैं, मैंने अपने बैंक खाते से किश्त की स्वचालित कटौती का विकल्प नहीं चुना। कंपनी से सूचना मिलने पर मैंने क्रेडिट कार्ड के माध्यम से भुगतान किया और अत्यधिक सावधानी से कंपनी और बैंक को सूचित किया, जिसके माध्यम से पॉलिसी खरीदी गई थी। लेकिन नियत तारीख पर मेरे बैंक खाते से किश्त फिर से काट ली गई। मैंने संबंधित लोगों को सूचित किया कि दो बार किश्त काट ली गयी है और उनमें से एक को वापस किया जाना चाहिए। मुझे आश्चर्य हुआ कि एक हफ्ते बाद, मुझे दो रिफंड मिले। मैंने फिर से संबंधित व्यक्तियों को सूचित किया कि ऐसा हुआ है। लेकिन, मुझे कंपनी से नोटिस मिलने लगा कि भुगतान में देरी हो रही है। स्थिति को सुधारने में 15 दिन लगे और मुझे बार-बार फोन आते रहे। इस प्रक्रिया में मेरा नुकसान हुआ. पहले तो मेरा भुगतान विलंबित माना गया, फिर एफडी तोड़ने के कारण मैंने ब्याज भी गंवाया।
3. एक दिन अचानक एक पुलिसकर्मी अदालत का सम्मन देने के लिए मेरे दरवाजे पर आया। उसे भी नहीं पता था कि यह कैसा सम्मन है। मैंने पूछा कि क्या मैं इसका ऑनलाइन जवाब दे सकता हूं, तो उन्होंने कहा कि अब यह संभव नहीं है। ऑनलाइन चेक करने पर पता चला कि यह सम्मन डेढ़ साल पहले के एक ऐसे मामले के लिए था, जिसके बारे में मुझे कुछ नहीं पता था. सरकार के डिजिटल सिस्टम ने डेढ़ साल पहले नोटिस लिया था कि मेरी कार में नई हाई सिक्योरिटी नंबर प्लेट नहीं थी। इससे पहले इसकी कभी कोई सूचना नहीं मिली थी। तो अब होगा ये कि एक दिन अदालत में पेशी और जुर्माने के भुगतान के लिए जाना होगा।
4. पिछले वर्ष दाखिल किए गए मेरे आयकर रिटर्न के संबंध में एक दिन मुझे एक नोटिस मिला कि कुछ कटौतियों को अस्वीकार कर दिया गया है और अतिरिक्त कर का भुगतान करने की आवश्यकता है। मेरे अपील दायर करने के कुछ महीनों के बाद इस नोटिस में त्रुटि पायी गयी, लेकिन तबतक बहुत समय बर्बाद हो चुका था। यह पहली बार नहीं था, जब ऐसा कुछ हुआ हो। रिटर्न की इलेक्ट्रॉनिक फाइलिंग और फेसलेस स्क्रूटनी बहुत अच्छी लगती है, लेकिन चार्टर्ड अकाउंटेंट चिंतित हैं, क्योंकि ऑर्डर में सुधार करना आसान नहीं है। साथ ही देश बहुत अधिक मुकदमों की ओर बढ़ रहा है.
5. मैं अपनी मां की मृत्यु के बाद संपत्ति को अपने नाम करने की प्रक्रिया में हूं। शेयरों के हस्तांतरण के लिए अनेक रजिस्ट्रार और ट्रांसफर एजेंटों (आर एंड टीए) द्वारा मेरा काफी उत्पीड़न किया गया। वे दावा तो करते हैं कि सारे काम ऑनलाइन ही होंगे, हार्ड कॉपी की जरूरत नहीं पड़ेगी, यहाँ तक कि नेट के माध्यम से ही वे प्रश्नों के उत्तर भी देते हैं, लेकिन वास्तव में जरूरी दस्तावेजों के बारे में वे एक बार में सूचित नहीं करते हैं. समय के साथ-साथ और अधिक कागजात मांगते जाते हैं। ऐसे में कई बार तो कागजात जमा करने के डेढ़ साल बाद भी प्रक्रिया अधूरी रह जाती है। नीचे लिखे कुछ उदाहरणों से मेरी बात और स्पष्ट होगी-
क) कोलगेट के आर एंड टीए ने इस मामले में मुझे ही मृत मान लिया और मुझे ही पत्र लिखकर सुझाव दिया कि इसका प्रसारण मेरी दिवंगत मां के नाम पर किया जा सकता है।
ख) एलएंडटी के आर एंड टीए ने मेरे पत्र, जिसमें मैंने उन्हें केवल बैंक प्रबंधक द्वारा सत्यापित हमारे हस्ताक्षर रिकॉर्ड करने के लिए कहा था, के जवाब में लिखा कि उन्हें खेद है कि मेरी पत्नी का निधन हो गया है।
ग) कोलगेट और एलएंडटी के आर एंड टीए ने फिर लिखा कि हमारे पते में बदलाव के कारण वे हमें शेयरों की डिलीवरी नहीं कर पा रहे हैं। सारे दस्तावेज बार-बार ईमेल करने के बावजूद वे लगातार लिखित मांग करते रहे। दुबारा लिखित अनुरोध भेजने पर उन्होंने कुछ फॉर्म भेजे, जिन्हें भरने की जरूरत थी। जबकि ये फॉर्म नेट पर उपलब्ध हैं, दूसरी कंपनियों ने केवल ईमेल के जरिए फॉर्म भेजे थे। इस तरह, बेवजह कई महीने बीत गए।
घ) गुजरात नर्मदा के आर एंड टीए ने नाम के प्रसारण की प्रक्रिया समझाते हुए तब लिखा, जबकि यह सब पहले ही हो चुका था और मैंने उनसे केवल सही बैंक खाता संख्या दर्ज करने का अनुरोध किया था।
ङ) टाटा रॉबिन फ्रेजर का आर एंड टीए मेरी मां के साथ संयुक्त पोर्टफोलियो में शेयरों की संख्या में बदलाव करता रहा। नतीजतन, डेढ़ साल में बार-बार कागजात दाखिल करने पड़े। जबकि दूसरी कम्पनियों का अनुभव ऐसा नहीं रहा था।
च) ईस्ट इंडिया होटल्स के आर एंड टीए ने पिछले 2 वर्षों में कई बहानों से शेयरों के डीमैटीरियलाइजेशन के कागजात को बार-बार खारिज किया है। यह सबसे अजीब था, मुझे बार-बार रिमाइंडर भेजना पड़ा। मेरे पास जो शेयर थे, वे डीमैटीरियलाइजेशन के लिए भेजे गए थे, लेकिन बार-बार हस्ताक्षर, पते, शपथ पत्र की आवश्यकता, गवाह के हस्ताक्षर के बेमेल होने की बात कहकर वापस कर दिए गए और अंत में हस्ताक्षर सत्यापन के लिए नए फॉर्म भेजे गए। यह सब एक ही बार में संप्रेषित किया जा सकता था।
छ) एक कंपनी ने डीमैटीरियलाइजेशन के लिए भेजे गए शेयरों को कुछ आपत्तियों के साथ वापस कर दिया, लेकिन कुछ दिनों बाद ही डीपी ने मुझे सूचित किया कि शेयरों को डीमैटरियलाइज कर दिया गया है। डिजिटलीकरण ने ऐसे ऐसे भ्रम पैदा कर दिए हैं.
ज) ये केवल कुछ समस्याएं हैं, जिनका मैं 2019 से सामना कर रहा हूं और उनमें से कई अब भी जारी हैं। महामारी के कारण बैंकों से कागजात और हलफनामा प्राप्त करना मुश्किल हो गया था, इसलिए समस्याएं तीव्र हो गईं। कुछ कंपनियों ने यह कहते हुए लिखा कि वे ईमेल के माध्यम से भेजे गए दस्तावेजों की स्कैन प्रतियों को स्वीकार करने के लिए तैयार हैं, लेकिन अंत में उन्होंने हार्ड कॉपी के लिए कहा। कुछ कंपनियों ने तो यहाँ तक लिख दिया कि उनका कार्यालय पूरी तरह काम नहीं कर रहा है, इसलिए देर होगी। कागजी कार्रवाई को पूरा करने की कोशिश में बहुत सारा समय और श्रम बर्बाद हुआ।
झ) सार्वजनिक नोटरी द्वारा नोटरीकृत स्टाम्प पेपर पर हलफनामा लिखने अनिवार्यता अपनेआप में एक घोटाला है। नोटरी नोटरीकरण करवाने वाले व्यक्ति को देखता तक नहीं है और जो नोटरीकृत किया जा रहा है, उसे पढ़ता भी नहीं है। एक साधारण अनुरोध पत्र और बैंकर द्वारा हस्ताक्षर का सत्यापन पर्याप्त होना चाहिए था। बैंकर कम से कम ग्राहक को तो जानता है। नोटरी तो व्यक्ति को नहीं जानता है।
6. मैं जीएसटी का भुगतान नहीं करता, लेकिन अधिकांश छोटे व्यवसायी और चार्टर्ड एकाउंटेंट इसकी जटिलता के सामने अपने बाल नोच रहे हैं। यह भी पूरी तरह से डिजिटल व्यवस्था है, लेकिन इसे संभालना मुश्किल साबित हो रहा है। कई अदालती मामले सामने आए हैं और नकली इनपुट क्रेडिट का दावा करने के लिए कई फर्जी फर्में भी सामने आई हैं। कई छोटे व्यवसाय कठिनाइयों के चलते बंद हो गए हैं। लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि अगर किसी ने ध्यान नहीं दिया, तो यह स्पष्ट नहीं है कि डिजिटल और नेट आधारित संचार व्यवस्था के चलते जीवन में कितनी दक्षता लाई गई है? जब मेरे साथ ऐसा हो रहा है, जो कंप्यूटर साक्षर है और इसका उपयोग करने से डरता नहीं है, तो मुझे आश्चर्य होता है कि यह अधिकांश वरिष्ठ नागरिकों और बहुतायत में उन लोगों के लिए कितना मुश्किल होगा, जिनके पास कम शिक्षा है और वे अपना काम करने के लिए कंप्यूटर का उपयोग करने के विचार से ही भयभीत हैं।
इंटरनेट के जानकारों के लिए पासपोर्ट और ड्राइविंग लाइसेंस बनवाना वास्तव में सरल हो गया है, लेकिन यह उन लोगों के लिए इतना आसान नहीं है, जो नेट और कंप्यूटर के जानकार नहीं हैं। कंप्यूटर और नेट का उपयोग करने के लिए लोगों की अरुचि की समस्या के अलावा, सिस्टम ठीक से डिज़ाइन नहीं किए गए हैं। डिजिटलीकरण सैद्धांतिक रूप से बहुत अच्छा लगता है लेकिन व्यावहारिक परिणाम के लिए, नियमों को सरल बनाना होगा, नागरिकों पर भरोसा करना होगा, अनावश्यक कागजी बोझ को समाप्त करना होगा और सिस्टम को उपयोगकर्ता के अनुकूल बनाने के लिए डिज़ाइन करना होगा।
-अरुण कुमार