आजादी के 75 साल बीतने के बावजूद हम सभी बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने में सफल नही हो सके हैं. अमेरिका, इंग्लैंड आदि दुनिया के अमीर देशों में सरकारी स्कूल ही बेहतरीन शिक्षा व्यवस्था की नींव माने जाते हैं. वहां की शिक्षा व्यवस्था पर आम जनता का नियंत्रण होता है. […]
Writers
महात्मा गांधी शिक्षा को व्यक्तित्व के चहुंमुखी विकास का माध्यम स्वीकार करते थे। वे शिक्षा को जीवन भर निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया मानते थे। उन्होंने शिक्षा के उद्देश्य को व्यक्तित्व के उच्चतम विकास के साथ ही उसे मुक्ति-द्वार तक ले जाने वाला घोषित किया। इसी परिप्रेक्ष्य में 31 जुलाई, 1937 […]
यदि हमारी शिक्षा हमें अपने समाज के योग्य नागरिक नहीं बना रही है, तो निस्संदेह शिक्षा नीति में आमूलचूल बदलाव की जरूरत है. एक तरफ जहां बाज़ार में आधुनिक और उच्च शिक्षा तथा तकनीकी सूचनाओं, जानकारियों से लैस प्रोफेशनल्स की संख्या बढ़ रही है, वहीं दूसरी ओर समाज में गुणवत्तापूर्ण […]
मैकाले की शिक्षा पद्धति के नाम से चर्चित इस शिक्षण प्रणाली के लिए अपनाए गए तौर तरीकों से शिक्षा किताबी और सैद्धांतिक ज्ञान तक सीमित रही। आम जन के जीवन-व्यवहार और सरोकारों से सर्वथा पृथक औपनिवेशिक शासन-प्रशासन के संचालन के लिए उपयोगी क्लर्कों के रूप में हिंदुस्तानी सेवकों की एक […]
आप जानते है कि विश्व में क्या हो रहा है? युद्ध हो रहे हैं, विद्रोह हो रहे हैं, राष्ट्रों के बीच फूट पड़ रही है। इस देश में भी फूट है, विभाजन है, लोगों की संख्या बढ़ रही है, निर्धनता है, गन्दगी है और उसके साथ है बड़ी क्रूरता। मनुष्य […]
न्यायाधीश पर किसी पक्ष की सत्ता नहीं चलती, वैसे ही शिक्षकों की हैसियत है। अस्पताल में डॉक्टर यदि पक्षीय राजनीति का खयाल करके रोगी की पक्षपातपूर्ण सेवा करेगा तो वह डॉक्टर अस्पताल की सेवा के लिए नालायक है। अगर शिक्षक राजनीति में पड़े हुए हैं तो समझना चाहिए कि वे […]
मैं आशा करता हूँ कि हम ‘स्कूल’ और ‘कॉलेज’ की शिक्षा का बेवकूफी-भरा भेद मिटा देंगे। शुरू से आखिर तक एक ही उद्देश्य रहेगा- प्रत्यक्ष कार्य; क्योंकि विचारों को चाहे कितनी ही उत्तेजना दीजिए, जब तक हम कार्य-प्रवृत्त नहीं होते, वे निरर्थक ही हैं। यही बात हृदय के धर्मों के […]
नई किताब : गांधी’ज असैसिन; द मेकिंग ऑफ नाथूराम गोडसे एंड हिज आइडिया ऑफ इंडिया – धीरेंद्र के झा धीरेन्द्र झा की यह नयी किताब महात्मा गांधी के हत्यारों के बारे में अब तक प्रचलित कई मिथक तोड़ती है। दो बातें खास हैं। एक तो यह कि क्या नाथूराम शुरू […]
हमारे जैसे लोगों की जुबान पर पिछली 30 जनवरी को शहीद दिवस पर देश भर में एक सामान्य जुमला था – “गांधी कभी मर नहीं सकता”! ठीक है, पर क्या इस आत्मिक आश्वस्ति के साथ यह देश आये दिन गांधी का अपमान और मूर्तिभंजन चुपचाप देखता रहेगा? यह इस देश […]
आर्थिक बदलाव बिना सामाजिक बदलाव के संभव नहीं है। पक्ष और विपक्ष दोनों की बहसें इस पर हैं कि असंगठित क्षेत्र में रोज़गार कैसे पैदा किए जाएं। ज़रूरत इस बात पर विचार करने की भी है कि संगठित क्षेत्र में रोज़गार कैसे पैदा करें। स्वरोज़गार और आत्मनिर्भरता पर ज़ोर देने […]