भारत में कुल वस्त्र उत्पादन का 15 प्रतिशत हैंडलूम सेक्टर में होता है। विश्व भर में हाथ से बुने कपड़े में भारत प्रथम स्थान पर है और यह प्रतिशत के हिसाब से 95 प्रतिशत है। फिर भी हैंडलूम वीवर्स की स्थिति दयनीय बनी हुई है। सभी योजनाओं के पुनरावलोकन के […]
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आज के जमाने में चरखे का अर्थशास्त्र क्या है? क्या चरखा योग, व्यायाम और अध्यात्म साधना का माध्यम भी हो सकता है? हो सकता है। अगर हम अपने श्रम से किसी को एक वस्त्र बनाकर देते हैं, तो इससे उत्तम दूसरी कोई बात नहीं हो सकती. इससे अधिक आनन्ददायक और […]
खादी सादगी, आर्थिक स्वतंत्रता, शांति और अहिंसा की प्रतिनिधि थी। खादी भारत में गरीबों के लिए मोक्ष का प्रतीक थी। यह सबसे बड़ा और सबसे व्यापक राष्ट्रीय उद्योग था। चरखे ने एक ऐसा धागा प्रदान किया, जिसने पूरे देश को एक सूत्र में पिरोया। चरखा मानव गरिमा और समानता का […]
कभी इस देश के गरीब से गरीब व्यक्ति का वस्त्र रही खादी आज आर्थिक रूप से सम्पन्न लोगों को छोड़कर सामान्य गरीब या मध्यम वर्ग की पहुँच और औकात से बाहर हो चुका वस्त्र है। भारत भर में खादी भंडारों की विशाल श्रृंखला, जिसके माध्यम से खादी के वस्त्र जन-जन […]
समाज खादी को एक तरफ पवित्र वस्त्र के रूप में देखता है, तो उससे भी कहीं ज्यादा वह इसे स्वास्थ्य और पर्यावरण के नजरिये से देखता है। पवित्र इस मामले में कि खादी हमारे राष्ट्रपिता, हमारी आजादी तथा ग्रामीण गरीबों, महिलाओं और परित्यक्ताओं की आजीविका से जुड़ा हुआ वस्त्र है। […]
खादी की गुणवत्ता, उत्पादकता, खादी कार्य में लगे कामगारों की आमदनी आदि बढ़ाने के लिए काम तो हुए, किन्तु खादी के उत्पादन व बिक्री के आंकड़े बढ़ने के वावजूद हाथ से खादी बनाने वालों की संख्या घटी है। आंकड़े जो भी बोलते हों, पर जमीनी हकीकत यही है। खादी को […]
जो खादी कभी स्वावलंबन आधारित जीवन जीने के माध्यम के रूप में मिली थी, वह आंकड़ों के मकड़जाल में जकड़ती हुई उत्पादन में कम, लेकिन बिक्री में अधिक होती हुई प्रतीत होने लगी है। इन कारणों से एक अविश्वास का वातावरण बनता नजर आता है। ग्रामोद्योग का आधार खादी अपने […]
खादी संस्थाओं को भारत सरकार एवं राज्य सरकारों द्वारा गांधी जयन्ती के उपलक्ष्य में उत्पादन और बिक्री पर विशेष छूट दी जाती है तथा संस्थाओं के सीए, प्रमाण-पत्र, एजी, रिबेट, एमएमडीए आदि की ऑडिट की जाती है, जबकि टेक्सटाइल उद्योग में उत्पादन करने वालों की सीए ऑडिट के अलावा कोई […]
इस दुखद और कलंकित करने वाली घटना के बाद अनेक संगठनों ने इसकी निंदा की है। कुछ सामाजिक संगठनों ने उच्चाधिकारियों से मिलकर घटना में शामिल दोषियों पर कड़ी कार्यवाही करने की मांग की है। चम्पावत के जिला मुख्यालय में इस घटना के विरोध में जुलूस भी निकाला गया है। […]
1918 में गांधी जी ने जो कहा, आज उसे दुनिया के पर्यावरणविद और कई सरकारें शुद्ध हवा, साफ पानी और पर्याप्त भोजन के अधिकार और मानवाधिकार के रूप में अपने एजेंडे में शामिल कर चुके हैं। ग्लासगो सम्मेलन में अमरीकी दूत जॉन केरी ने कहा कि हम जलवायु परिवर्तन की […]