खादी उत्पादन पर जीएसटी का प्रभाव

खादी संस्थाओं को भारत सरकार एवं राज्य सरकारों द्वारा गांधी जयन्ती के उपलक्ष्य में उत्पादन और बिक्री पर विशेष छूट दी जाती है तथा संस्थाओं के सीए, प्रमाण-पत्र, एजी, रिबेट, एमएमडीए आदि की ऑडिट की जाती है, जबकि टेक्सटाइल उद्योग में उत्पादन करने वालों की सीए ऑडिट के अलावा कोई भी ऑडिट नहीं होती है।

देश की खादी संस्थाएं गांधी जी के ट्रस्टीशिप सिद्वान्त के आधार पर कार्य कर रही हैं, जो न हानि और न लाभ के सिद्वान्त पर आधारित है। इसमें संस्था के संचालक मण्डल एवं ट्रस्टियों का कोई निजी हित नहीं होता. संस्थाओं में जो थोड़ा बहुत सरप्लस रहता है, उसे संस्था के उद्वेश्यों को पूरा करने के लिए ही खर्च किया जाता है। इसी वजह से इसे आयकर से मुक्त रखा गया है। खादी संस्थाएं सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में कम पूंजी में अधिक लोगों को घर बैठे इज्जत का रोजगार प्रदान करती हैं. खादी संस्थाएं स्वरोजगार के उद्वेश्य की पूर्ति करती हैं. रोजगार के क्षेत्र में खादी ग्रामोद्योग, कृषि के बाद ग्रामीण भारत का सबसे बड़ा रोजगार क्षेत्र माना जाता है।


ब्रिटिश हुकूमत ने भी खादी के काम को महत्वपूर्ण मानते हुए इसे समस्त प्रकार के करों से मुक्त रखा. आजादी के बाद भारत सरकार ने जब केन्द्रीय बिक्री कर एवं राज्य सरकारों ने राज्य बिक्री कर लगाया, तब भी खादी गारमेन्ट/गुड्स एण्ड मेडअप एचएसएन कोड के तहत खादी को इससे मुक्त रखा. जब वैट लगाया गया, तब भी खादी को कर मुक्त रखा गया. इसके अलावा आयकर, भूमि एवं भवन कर, नगरीय विकास कर, चुंगी आदि से भी खादी को मुक्त रखा गया. 1 जुलाई 2017 को भारत सरकार द्वारा लगाये गये वस्तु एवं सेवाकर के बाद 28 जून 2017 को एक नोटिफिकेशन जारी कर क्रमांक 129 पर गांधी टोपी एवं 130 पर खादी यार्न को कर मुक्त सूची में सम्मिलित तो किया गया, लेकिन खादी गारमेन्ट/गुड्स एण्ड मेडअप एचएसएन कोड का कहीं भी उल्लेख नहीं किया गया. इस पर देश की खादी संस्थाओं द्वारा सरकार को सैकड़ों ज्ञापन दिये गये, जिस पर तत्कालीन वित्तमंत्री ने अपनी घोषणा में खादी को देश के लिए महत्वपूर्ण मानते हुए 22 सितम्बर 2017 को नोटिफिकेशन में सुधार किया. यहां भी भारत सरकार के वित्त विभाग ने खादी के लिए चल रहे खादी गारमेन्ट/गुड्स एण्ड मेडअप एचएसएन कोड की जगह खादी फैब्रिक अंकित कर दिया।


खादी के उत्पादन को आजादी के पश्चात टेक्सटाइल्स से अलग रखा गया था तथा खादी को विशेष दर्जा देकर उसको बढ़ावा देने हेतु रिबेट देकर ग्राहकों को सस्ती दर पर उपलब्ध करवाने का प्रावधान किया गया था, जिसके लिए भारत सरकार द्वारा अलग से खादी का ऐक्ट बनाया गया. यह खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग अधिनियम 1956 से सम्बंधित है. खादी की सरकारी परिभाषा के अनुसार देश में जो कपड़ा हाथ से कते सूती, रेशमी एवं ऊनी धागे से हथकरघे पर बनेगा, वही खादी होगा। भारत सरकार द्वारा टेक्सटाइल्स के अन्तर्गत प्रत्येक उत्पाद का अलग-अलग एचएसएन कोड बनाया गया है, तदनुसार ही उसे टैक्स सूची में सम्मिलित किया गया है, परन्तु खादी क्षेत्र में उक्त वर्णित उत्पादित अलग-अलग आइटम्स का कोई एचएसएन कोड कभी भी नहीं रहा है। वस्तु एवं सेवा कर के 22 सितम्बर 2017 को जारी नोटिफिकेशन में खादी फैब्रिक शब्द अंकित किया गया है, जबकि हाथ कताई और हाथ बुनाई से गारमेन्ट एवं मेडअप भी बनते हैं. जीएसटी के एचएसएन कोड 62 एवं 63 में रेडीमेड गारमेंट्स एवं मेडअप को परिभाषित किया हुआ है, लेकिन यह कोड सिर्फ टेक्सटाइल फैब्रिक से बने गारमेन्ट एवं मेडअप पर ही लागू है, फिर भी खादी और ग्रामोद्योग आयोग एवं खादी आयोग से लेन देन करने वाली संस्थाओं द्वारा खादी आयोग के दबाव के कारण इसी कोड से जीएसटी लागू की गयी है।


टेक्सटाइल एवं खादी उत्पादन के व्यवहार में बहुत ही असमानता है. टेक्सटाइल फैब्रिक, गारमेन्ट एवं मेडअप एजेन्सियों और आढ़तियों द्वारा कपड़ा व्यापारियों को बेचा जाता है तथा कपड़ा व्यापारी ग्राहक को बेचता है, जबकि खादी का उत्पाद थोक में सिर्फ खादी ग्रामोद्योग आयोग द्वारा प्रमाणित खादी संस्थाओं या फुटकर ग्राहक को ही बेचा जाता है, जिस पर केन्द्र एवं राज्य सरकारों द्वारा छूट दी जाती है।


खादी संस्थाओं को भारत सरकार एवं राज्य सरकारों द्वारा गांधी जयन्ती के उपलक्ष्य में उत्पादन व बिक्री पर विशेष छूट दी जाती है तथा संस्थाओं के सीए, प्रमाण-पत्र, एजी, रिबेट, एमएमडीए आदि की ऑडिट की जाती है, जबकि टेक्सटाइल उत्पादन करने वालों की सीए ऑडिट के अलावा कोई भी ऑडिट नही होती है। टेक्सटाइल मिलों में पूरा कार्य मिल के अन्दर मशीनों के द्वारा होता है, जबकि खादी के कार्य में देश के सुदूर ग्रामीण क्षेत्र के कामगारों से पहले कताई करवा कर यार्न लिया जाता है, फिर यार्न को बुनाई में देकर कपड़ा, मेडअप लिया जाता है. इसके बाद कपड़े और मेडअप को रंगाई और फिनिशिंग में दिया जाता है. इस प्रकार हर स्टेज पर माल बाहर जाता है एवं वापस जमा होता है, जिस पर जीएसटी लागू करना असंभव है।

-जवाहरलाल सेठिया

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