खादी का अर्थशास्त्र : स्वराज का रोडमैप थी खादी

खादी सादगी, आर्थिक स्वतंत्रता, शांति और अहिंसा की प्रतिनिधि थी। खादी भारत में गरीबों के लिए मोक्ष का प्रतीक थी। यह सबसे बड़ा और सबसे व्यापक राष्ट्रीय उद्योग था। चरखे ने एक ऐसा धागा प्रदान किया, जिसने पूरे देश को एक सूत्र में पिरोया। चरखा मानव गरिमा और समानता का प्रतीक, और देश का दूसरा फेफड़ा था।कताई ने शहरी शिक्षित और आर्थिक रूप से संपन्न भारतीयों और ग्रामीण जनता के बीच एक नैतिक पुल बना दिया था।

गांधीवादी अर्थशास्त्र कोई टिपिकल एकेडमिक विषय नहीं है, इसे गांधी जी की शिक्षाओं और उनके व्यावहारिक अनुभवों के तौर पर ग्रहण करना अधिक समीचीन होगा। इसमें भारतीय परिस्थितियों की सभी प्रासंगिक आर्थिक गतिविधियों का अध्ययन शामिल है। इन आर्थिक गतिविधियों में उत्पादन, वितरण, उपभोग, पब्लिक फाइनेंस और सर्वोदय सभी शामिल हैं। गांधीवादी अर्थशास्त्र का मूल, सत्य और अहिंसा के मूल सिद्धांत हैं, इसलिए गांधीवादी अर्थशास्त्र सत्य, अहिंसा और नैतिक मानदंडों के ढांचे के भीतर की गई ऐसी सभी आर्थिक गतिविधियों के बारे में बात करता है, जिसमें अध्ययन का केंद्रीय बिंदु मनुष्य होता है।


गांधीवादी अर्थशास्त्र की विशेषताएं


गांधीवादी अर्थशास्त्र की विशेषताएं विविध हैं। उन सभी को सूचीबद्ध करना संभव नहीं है, यहाँ हम केवल कुछ मुख्य विशेषताओं को उद्धृत कर रहे हैं.

  1. गांधीवादी अर्थशास्त्र के मूल सिद्धांतों के रूप में सत्य और अहिंसा की स्वीकृति।
  2. आवश्यकताओं को अधिकतम करते जाने की प्रवृत्ति के विपरीत गांधीवादी अर्थशास्त्र का उद्देश्य आवश्यकताओं को कम करना है।
  3. सर्वोदय को सभी का कल्याण और मनुष्य का अंतिम लक्ष्य माना जाना चाहिए।
  4. संपत्ति के ट्रस्टीशिप सिद्धांत की स्वीकृति।
  5. व्यक्ति, परिवार, गांव और राष्ट्रीय स्तर पर आत्मनिर्भरता प्राप्त करना।
  6. सत्ता और प्रशासन का विकेन्द्रीकरण, ताकि लोगों को वास्तविक लोकतंत्र का आनंद मिले।
  7. श्रम की प्रतिष्ठा को बढ़ाना और सामान्य रूप से मशीनीकरण का विरोध करना.
  8. शारीरिक श्रम को अनिवार्य माना जाना चाहिए और उसे किसी भी तरह से मानसिक श्रम से कमतर नहीं समझा जाना चाहिए।
  9. स्वदेशी संस्कृति को अपनाना, जिसमें केवल घर में बनी वस्तुओं का ही उपयोग किया जाता है।
  10. मनुष्य को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए। गांधीवादी अर्थशास्त्र में साधन और साध्य दोनों की शुचिता पर जोर दिया गया है।
  11. खादी और लघु उद्योगों को व्यापक किया जाय, जिसमें गृह उद्योग, कुटीर उद्योग और ग्रामोद्योग शामिल हैं।
  12. आवश्यकता आधारित उपभोग पद्धति को अपनाना, ताकि दूसरों की वास्तविक जरूरतें भी पूरी हो सकें।
  13. संसाधनों का संरक्षण।
  14. व्यक्ति और समाज दोनों के हित एक साथ संतुष्ट होने चाहिए।
    मानव केंद्रित अर्थशास्त्र
    गांधीवादी अर्थशास्त्र एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था की कल्पना करता है, जिसमें सभी के भौतिक और अभौतिक सुख में वृद्धि हो। गांधी का उद्देश्य आवश्यकता आधारित गतिविधियों के विपरीत, इच्छा आधारित अर्थव्यवस्था में आमूल-चूल बदलाव करना, स्थायी खुशी के साधन खोजना तथा सामाजिक सद्भाव सुनिश्चित करना है। आवश्यकता आधारित अर्थव्यवस्था में सारे महत्वपूर्ण आर्थिक निर्णय, निजी औद्योगिक अर्थव्यवस्था के खेल के नियमों के बजाय सामूहिक रूप से लिए जाएंगे, जहां निजी लाभ और संचय ही एकमात्र गुण है।
    गांधी जी ग्रामीण क्षेत्रों से गरीबी दूर करने के लिए उत्सुक थे। इसके लिए उन्होंने कुटीर उद्योगों को बढ़ाने का सुझाव दिया। उनके अनुसार ग्रामवासियों को अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए स्वयं को आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास करना चाहिए। वे गांवों में श्रम को बेकार देखना पसंद नहीं करते थे। गांधी जी ग्रामीण आबादी के लिए काम और आय की व्यवस्था करना चाहते थे। उन्होंने हमेशा अपने विवेक को ठीक लगने वाले काम को प्राथमिकता दी। उनका विचार था कि गरीबी की समस्याओं को हल करने का रामबाण अपने काम के अवसरों को बढ़ाने में निहित है।
    गांधी जी का उद्देश्य भौतिक समृद्धि प्राप्त करने के बजाय, जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना था। उनके अनुसार धन और आय मानव कल्याण के साधन हैं, न कि अपने आप में साध्य। उनका विचार था कि भौतिकवादी लालच से नैतिक और आध्यात्मिक मूल्य श्रेष्ठ हैं। गांधीवादी अर्थशास्त्र तीन विशिष्ट नैतिक आधारों पर आधारित है. केवल वही अर्थव्यवस्था अच्छी है, जो सबका भला करती है. सभी को अपनी आजीविका कमाने का समान अधिकार है और एक मजदूर का जीवन ही, चाहे वह मिट्टी जोतने वाला हो या शिल्पी, वास्तव में जीने योग्य होता है।
    गांधीवादी अर्थशास्त्र का आधार : सत्य और अहिंसा
    गांधी ने भारतीय दर्शन के दो महत्वपूर्ण पहलुओं, सत्य और अहिंसा को, मानवीय सुख के लिए आर्थिक गतिविधियों के आधार के रूप में पेश किया। उनका मानना था कि यदि अर्थशास्त्र का उद्देश्य लोगों का सुख है, तो मानव जाति के वास्तविक सुख के लिए इन दो शाश्वत मूल्यों को अर्थशास्त्र में एकीकृत करना होगा। गांधी ने कहा, “यह समाज स्वाभाविक रूप से सत्य और अहिंसा पर आधारित होना चाहिए, जो मेरी राय में ईश्वर में जीवित विश्वास के बिना संभव नहीं है। अहिंसा के अभ्यास से ही नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों की वसूली संभव हो सकती है। यह व्यक्ति स्वतंत्र और मौलिक रूप से सोचने के लिए प्रोत्साहित करता है । उनके अनुसार, ”सत्य एक वास्तविक शक्ति है, जो पहाड़ को भी हिला सकता है।” गांधी जी के लिए अहिंसा केवल दूसरों को नुकसान पहुंचाने से परहेज करने का कार्य नहीं है, बल्कि यह सकारात्मक आत्मबलिदान और रचनात्मक पीड़ा भी है। प्रेम से जो मिलता है, वह अनंत काल के लिए बना रहता है, जबकि हिंसा से जो प्राप्त होता है, उसके भीतर अपने विनाश के बीज होते हैं। सत्य और अहिंसा पर आधारित उनका अर्थशास्त्र वस्तुतः एक प्राकृतिक अर्थव्यवस्था है, जिसमें समाज के सभी सदस्यों के जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं की संतुष्टि सुनिश्चित की जाती है और उन्हें सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती है।
    चरखा, खादी और गांधीवादी अर्थशास्त्र
    राष्ट्रीय आन्दोलन के दौर में चरखा अहिंसक हथियार का पर्याय बन गया था, जिसका उद्देश्य ब्रिटिश कपड़ा उद्योग को कमजोर करना था। यह ब्रिटिश आर्थिक और राजनीतिक वर्ग से आगे निकलने के लिए भारतीय जनता के विश्वास को भी रेखांकित करता है। खादी आंदोलन को उन्होंने वैचारिक रूप से निष्क्रिय या अल्प-रोजगार वाले ग्रामीण हाथों को पूरक कार्य प्रदान करने की आवश्यकता के इर्द-गिर्द बुना था। इसे मुख्य रूप से ग्रामीण उद्देश्य से डिज़ाइन किया गया था। खादी को अपने उत्पादन और खपत दोनों के लिए सरल और समझने योग्य तकनीक स्थानीय आधार की आवश्यकता थी। इसी रचनात्मक विचारधारा के इर्द-गिर्द एक राजनीतिक आंदोलन का निर्माण हुआ। इसके पीछे भारत की ग्रामीण जनता के लिए एक व्यावहारिक आयाम और भारत के स्वतंत्रता संग्राम के लिए लामबंद होने का एक प्रतीकात्मक मूल्य था। खादी आंदोलन एक अहिंसक और आर्थिक व्यवस्था स्थापित करने का अभियान था।
    गांधी जी ने भारत में खादी को एक सामाजिक प्रयोग के रूप में पेश किया, जिसमें जनता के हित में खादी को राष्ट्रीय उद्योग बनाया जाना था। खादी अर्थशास्त्र का अर्थ है, हाथ से बुने हुए सूत और हाथ से बुने हुए कपड़े का उत्पादन, वितरण, विनिमय और खपत। यह बेरोजगारी में कमी, राष्ट्रीय उत्पादन और गरीबों की क्रय शक्ति में वृद्धि तथा राष्ट्र की सामूहिक संपत्ति की दृष्टि से महत्वपूर्ण था. यह उनका बुनियादी और मौलिक मानवतावाद था, जो अंततः अस्तित्व की एकता के आध्यात्मिक अनुभव पर आधारित था। खादी गांधी के लिए एक जुनून थी और उनके अंत तक बनी रही। खादी साम्राज्यवाद के खिलाफ एक विचार थी, स्वतंत्रता का ताना-बाना थी। खादी न केवल शोषक उपनिवेशवाद से, बल्कि बाजार संचालित तकनीकी पूंजीवाद से भी मुक्ति का प्रतीक बन गयी। यह अमीर और गरीब के बीच जीवित बंधन बनाने का जरिया थी। इसने सामाजिक अलगाव, आर्थिक असमानता और राजनीतिक अलगाव के मुद्दों को राष्ट्रीय संघर्ष के एजेंडे में शामिल किया। यह स्वतंत्रता की सामग्री को आकार देने और संसाधनों के उपयोग पर स्वतंत्रता के बाद की प्रतिद्वंद्विता में दांव पर लगे मूल्यों को निर्धारित करने की इच्छाशक्ति रखती थी। खादी स्वराज का रोड मैप थी। गांधी जी के लिए चरखा और खादी के कई अर्थ थे।
    खादी सादगी, आर्थिक स्वतंत्रता, शांति और अहिंसा की प्रतिनिधि थी। यह भारत में गरीबों के लिए मोक्ष का प्रतीक बन गयी। यह सबसे बड़ा और सबसे व्यापक राष्ट्रीय उद्योग था। चरखे ने एक ऐसा धागा प्रदान किया, जिसने पूरे देश को एक सूत्र में पिरोया। कताई ने शहरी शिक्षित और आर्थिक रूप से संपन्न भारतीयों और ग्रामीण जनता के बीच एक ‘नैतिक बंधन’ बनाया। गांधी के चरखे और खादी में एक प्रतीकात्मक अर्थ शामिल था, जिसका उपयोग प्रचलित सामाजिक, आर्थिक व्यवस्था को पार करने के लिए किया गया था। जैसे-जैसे आंदोलन आगे बढ़ा, गांधी ने खादी के लिए पहले की तुलना में अधिक शक्ति लगाई। खादी ने ‘धैर्य, उद्योग और सादगी’ की शिक्षा दी। कताई जुनून और क्रोध के खिलाफ एक सुरक्षा थी। यह जहरीली भावनाओं के खिलाफ एक ढाल थी। चरखा मानव गरिमा और समानता का प्रतीक और देश का दूसरा फेफड़ा था।
    गांधी जी ने सभी को चरखा चलाने के लिए कहकर जाति के प्रभाव को कम करने की कोशिश की। गांधी की दृष्टि में चरखा आत्म-सम्मान, और आर्थिक आत्मनिर्भरता का प्रतीक था। गांधी जी की वकालत के माध्यम से चरखे ने एक सामाजिक और राजनीतिक पहचान हासिल की, जो कई अर्थ पैदा करने में सक्षम थी।
    खादी को एक सतत अभियान द्वारा उपभोक्ताओं के लिए पसंद की वस्तु में बदल दिया गया था। इसने कपड़े को उसका चरित्र दिया। खादी के चरित्र में वैचारिक निवेश ने एक नैतिक उपभोक्ता को जन्म दिया, जो कपड़े के बजाय चरित्र को प्राथमिकता देता था। इस तरह की कवायद ने खादी को एक विशिष्ट पहचान, ब्रांड इक्विटी दी, सामान्य उपभोग की वस्तु के रूप में इसकी व्यापक स्वीकृति पर मुहर लगाई। गांधी जी का उद्देश्य खादी और चरखे के जरिये भारतीयों के आंतरिक अस्तित्व को बदलना था। खादी आंदोलन का अध्ययन आज के परिप्रेक्ष्य में बहुत प्रासंगिक है. कई लोगों के लिए, खादी आंदोलन, शानदार प्रचार द्वारा समर्थित एक जुनूनी महत्वाकांक्षा होने के बावजूद, एक विफलता थी। कुछ के लिए, खादी का कायापलट हो गया है और फैशन बिरादरी को इस ब्रांड को बढ़ाने के लिए जुटाया जा रहा है।
    अपने भौतिक स्वरूप में खादी का भविष्य, अब अपने अतीत का कैदी है। यह ऐतिहासिक ब्रांड, इसे ब्रांड बनाने के लिए गढ़े गये मानकों के भीतर फंस कर रह गया है। खादी का काम स्थानीय संसाधनों के आधार पर काम उपलब्ध कराने का था। यह और बात है कि वह कभी भी अपनी वैचारिक मंज़िल को पूरा करने के लिए कदम भर भी नहीं चल सका। खादी मजदूरों को उम्मीद थी कि एक दिन खादी सर्वव्यापी हो जाएगी। यह अभी तक नहीं हुआ है और न ही भविष्य में इसके होने की कोई संभावना है।
    आज खादी एक ब्रांड के रूप में पुनर्गठित और पुनर्स्थापित होने की दहलीज पर है। इसकी यह स्थिति अस्वीकार्य है. यदि इसे व्यावसायिक प्रलोभन में ले लिया गया, तो यह अपनी इक्विटी को कम कर देगी और यदि इस प्रलोभन से परहेज करती है, तो यह खुद को नष्ट कर लेगी। हाल के रुझानों से यह स्पष्ट है कि इसने खपत बढ़ाने के लिए आकर्षक पैकेजिंग और फैशन परिधानों पर ध्यान केंद्रित करते हुए पहला ही रास्ता अपनाया है।
    निष्कर्ष
    गांधी का खादी अभियान राष्ट्रीय उत्थान के एजेंडे का एक हिस्सा था, जिसे कांग्रेस के राजनीतिक कार्य से अलग रचनात्मक कार्य कहा जाने लगा था। खादी एक जन आंदोलन था। जन आंदोलन शायद ही कभी लक्षित परिणाम देते हैं। अपने स्वभाव से ही, एक नियम के रूप में, लोगों का आंदोलन, एक स्थापित सत्ता के खिलाफ होता है। आंदोलन का कारण आम तौर पर या तो सत्तारूढ़ दल की ओर से असंवेदनशील दुराचार होता है, या जनता को मिले अधिकारों का उल्लंघन होता है। खादी के माध्यम से, गांधी न तो विरोध कर रहे थे और न ही वे औपनिवेशिक शासन के खिलाफ एक लंबे संघर्ष में शामिल थे, बल्कि सरकार के नियन्त्रण से मुक्त आकाश में वे अपने देशवासियों के साथ संवाद स्थापित करने का प्रयास कर रहे थे। गांधी का कार्यक्रम अहिंसा की आवश्यकता और मूल्य को पहचानते हुए लाखों भारतीयों के मताधिकार के लिए था। और इसीलिए खादी आंदोलन एक अहिंसक कार्यक्रम था। खादी अपने सीमित, लेकिन शक्तिशाली तरीके से उपनिवेशवाद को परिभाषित करने वाले आर्थिक संबंधों को तोड़ने का एक प्रयास था। अपने रचनात्मक एजेंडे के तहत, खादी ब्रिटिश वर्चस्व के खिलाफ एक विध्वंसक शक्ति थी। खादी गांधी की परिधि की राजनीति थी। अनजान कार्यक्रमों और गुमनाम व्यक्तियों पर ध्यान केंद्रित करके खादी के जरिये गांधी ने नये उपमान गढ़े और ब्रिटिश गढ़ की उपस्थिति को नकार दिया।

-डॉ नमिता निंबालकर

लेखिका मुंबई विश्वविद्यालय के दर्शनशास्त्र विभाग में एसोशिएट प्रोफेसर हैं. Email-namita.nimbalkar@gmail.com मोबाइल- 9819389567

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