पर्यावरण और चुनौतियां नासा की एक खोज के अनुसार अंटार्कटिका में औसतन 150 बिलियन टन और ग्रीनलैंड आइस कैप में 270 बिलियन टन बर्फ प्रति वर्ष पिघल रही है। आगे आने वाले समय में सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र आदि नदियां सिकुड़ जाएंगी और बढ़ता हुआ समुद्री जल स्तर खारे पानी […]

गांधी ने लिखा कि कस्तूरबा किसी भी लिहाज से मुझसे पीछे नहीं थीं। वह मेरे से बेहतर थी। उसके अमोघ सहयोग के बिना मैं शायद रसातल में चला जाता… उसने मुझे मेरी प्रतिज्ञाओं के प्रति जागृत रखने में मदद की। उसने मेरे सभी राजनीतिक आंदोलनों में मेरा साथ दिया और […]

गांधीजी का मानना था कि गरीबों के लिए रोटी ही अध्यात्म है। भूख से पीड़ित उन लाखों-करोड़ों लोगों पर किसी और चीज का प्रभाव पड़ ही नहीं सकता। कोई दूसरी बात उनके हृदय को छू ही नहीं सकती। उनके पास आप रोटी लेकर जाइए, वे आपको भगवान की तरह पूजेंगे। […]

सत्याग्रही को सत्य और अहिंसा का पालन करना चाहिए। ये दोनों सिद्धांत गांधीवाद के दो प्रमुख बिन्दु हैं। गांधी जी ने सदैव इन दोनों सिद्धांतों को पूर्ण विचारधारा माना। इतना होने पर भी व्यवहार में राष्ट्रीय स्वतंत्रता की अत्यधिक आवश्यकता को देखते हुए उन्होंने इन सिद्धांतों को समसामयिक माना था। […]

दुनिया में पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से आज प्राकृतिक संसाधनों, जंगलों, पेड़ों और पृथ्वी को बचाने की बात की जा रही है, इसकी शुरुआत उत्तराखंड में गांधी और सर्वोदय विचारों से प्रभावित होकर हुई थी। उत्तराखंड हमेशा से ऐसा इलाका रहा है, जहां से सामाजिक एकता और अन्याय के ख़िलाफ़ […]

गांधीवादी मॉडल की प्रासंगिकता का विमर्श गांधीवाद पर आधारित शासन व्यवस्था का परीक्षण देश के किसी छोटे-से इलाक़े में भी नहीं किया गया, जिसके आधार पर आज यह तय होता कि गाँधीवाद प्रासंगिक है या नहीं। इस बात को न वे सोच-समझ पा रहे हैं, जो पूँजीवाद में मस्त हैं […]

आजाद भारत में सर्वोदय आंदोलन की भूमिका; एक तीखी पड़ताल आज पूरे देश में जो कुछ हो रहा है, वह गांधी की सोच के विपरीत दिशा में जा रहा है। इस संदर्भ में सर्वोदय समाज भी वह भूमिका निभाने में विफल रहा है, जिसकी उससे अपेक्षा की गई थी। इसके […]

सर्वोदय शब्द पुराना था। गांधी द्वारा उसमें विशिष्ट अर्थ भरने के बाद एक अरसा बीत चुका था। दरअसल, हिन्द स्वराज्य का सपना सामने रखकर और उससे अपनी प्रतिबद्धता घोषित करके गांधी ने एक तरह से सर्वोदय आंदोलन का आगाज किया था, लेकिन न उसका रूप निखरा था, न उसकी पहचान […]

क्या किसी को अहमद कथराडा याद हैं? यह नाम अधिकांश भारतीयों के लिए अनजान है। यहां तक कि हमारे राजनीतिक और मीडिया प्रतिष्ठानों में लोगों का एक बड़ा हिस्सा भी उनके बारे में पूछे जाने पर अवाक रह जाएगा। यह अत्यंत दुखद है, खासकर तब, जब भारत के स्वतंत्रता संग्राम […]

मसूरी स्थित उनके बंगले और उससे भी खराब हालत में पड़ी उनकी मजार को देखकर बहुत हैरत और शर्मिंदगी का एहसास होता है। बचपन से सुनते आ रहे शेर ‘शहीदों की मजारों पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा’ का सच भी पता […]

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