हमारी समस्याएं और संपूर्ण क्रांति

आज देश की प्रमुख आर्थिक समस्या महंगाई, बेरोजगारी और गरीबी है। कोई भी समस्या कई कारणों से पैदा होती है, समाधान के लिए कई प्रकार के प्रयास करने होते हैं. इन समस्याओं के भी कई कारण हैं। कुछ राजनैतिक हैं, कुछ आर्थिक हैं, कुछ सामाजिक हैं और कुछ अन्य हैं। उनके समाधान के लिए भी कई प्रकार के प्रयास जरूरी होंगे। समस्याओं का समवेत रूप से समाधान करने का प्रयास परिवर्तन है। सही दिशा में तेजी से दूरगामी परिवर्तन ही संपूर्ण क्रांति है।

 

हम सभी प्रकृति की संतान हैं, इसीलिए हम सभी को आपस में प्रेम करना चाहिए और समाज में व्याप्त सभी प्रकार की प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष हिंसा का निवारण करना चाहिए, यही मूल सत्य है। इसलिए सत्य, प्रेम और अहिंसा संपूर्ण क्रांति के मूल तत्व हैं।

आज देश की प्रमुख आर्थिक समस्या महंगाई, बेरोजगारी और गरीबी है। कोई भी समस्या कई कारणों से पैदा होती है, समाधान के लिए कई प्रकार के प्रयास करने होते हैं. इन समस्याओं के भी कई कारण हैं। कुछ राजनैतिक हैं, कुछ आर्थिक हैं, कुछ सामाजिक हैं और कुछ अन्य हैं। उनके समाधान के लिए भी कई प्रकार के प्रयास जरूरी होंगे। समस्याओं का समवेत रूप से समाधान करने का प्रयास परिवर्तन है। सही दिशा में तेजी से दूरगामी परिवर्तन ही संपूर्ण क्रांति है।

हमारे देश में मंहगाई तेजी से बढ़ रही है। इसका मुख्य कारण यह है कि हमारी विशाल जनसंख्या की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त उत्पादन नहीं होता है। जो उत्पादन होता है, उसकी लागत दिनों दिन बढ़ती जाती है। हम खेती में देख सकते हैं कि खाद, बीज आदि की लागत बढ़ने से फसल का दाम भी बढ़ना ही चाहिए। टैक्स का बढ़ना और मुनाफाखोरी की आदत भी बड़ी समस्या है। डीजल पेट्रोल पर पर भारी टैक्स लगने से आना-जाना तो मंहगा हुआ ही, सभी सामानों की ढुलाई का खर्च भी बढ़ गया। लेकिन उद्योगपतियों और व्यापारियों को भी जब मौका लगता है, वे मुनाफाखोरी के लिए दाम बढ़ा देते हैं। फिर हमारी उपभोग की आदत भी बढ़ रही है। पहले आम लोग सबसे ज्यादा खर्च भोजन पर करते थे, लेकिन अब दूसरे खर्च भी ज्यादा होने लगे हैं। यह एक सांस्कृतिक कारण है। दुनिया में इस भोगवादी संस्कृति के बढ़ने के कारण ही प्रकृति का विनाश बढ़ रहा है। रुपये का मूल्य गिरने से उन वस्तुओं का मूल्य बढ़ जाता है, जिनका हम विदेशों से आयात करते हैं। किसी वस्तु की लागत बढ़ना आर्थिक कारण है, जिससे बचना कठिन है, लेकिन सरकार चाहे तो लागत घटाने का प्रयास कर सकती है। यदि वह लागत घटाने का प्रयास नहीं करती है तो इसके पीछे राजनैतिक कारण है। यह पूंजीपतियों और सरकार के बीच सांठगांठ का संकेत देता है। सरकार का टैक्स लगाने के पीछे भी राजनैतिक कारण है। सरकार गरीबों पर जीएसटी टैक्स लगाती है और अमीरों पर वेल्थटैक्स खत्म कर देती है तो इसका राजनैतिक कारण स्पष्ट है।

लागत का बढ़ना मंहगाई का ठोस कारण है, सरकार उद्योगपतियों पर दबाव डालकर खाद, बीज आदि की लागत घटा सकती है, लेकिन हमें भी अपनी भोगवादी संस्कृति पर नियंत्रण रखना चाहिए और गैरजरूरी खर्चों मे कटौती करनी चाहिए। उद्योगपतियों और व्यापारियों को भी जमाखोरी करके मुनाफा कमाने की संस्कृति से बचना चाहिए। सरकार को चाहिए कि विदेशी माल पर निर्भरता कम करे, जिससे मंहगा न माल खरीदना पड़े। इसी प्रकार बेरोजगारी, गरीबी आदि के भी अनेक कारण हैं और उनके समाधान के लिए अनेक प्रयास करने पडेंगे. लेकिन हम सही दिशा में बढ रहे हैं या नहीं, इसकी जांच के लिए कुछ कसौटी या लक्ष्य तय करना जरूरी है। संपूर्ण क्रांति की दृष्टि से स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व ही मुख्य कसौटी हैं, जिसके आधार पर हम तय कर सकते हैं कि समाज प्रगति कर रहा है या नहीं। हमें देखना चाहिए कि समाज में आर्थिक, सामाजिक या राजनैतिक असमानता घट रही है या बढ़ रही है। क्या गरीबी और अमीरी की खाई नहीं बढती जा रही है? क्या महिला और पुरुष के बीच बराबरी है? क्या दलितों और अल्पसंख्यकों के साथ बराबरी का व्यवहार होता है? क्या जनता के अधिकार छीने जा रहे हैं? क्या शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, सामाजिक सुरक्षा आदि सबको समान रूप से उपलब्ध हैं? क्या हमारा लोकतंत्र मजबूत हो रहा है या सत्ता का केन्द्रीकरण हो रहा है? देश और दुनिया में भाईचारा घट रहा है या बढ़ रहा है? यानि राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक, मानसिक, नैतिक आदि सभी क्षेत्रों में स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व को स्थापित करना चाहिए।

संपूर्ण क्रांति को सतत क्रांति भी कहा जाता है। इसका अर्थ है कि हमें समय समय पर समाज का स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व की कसौटी पर मूल्यांकन करना चाहिए और बदली हुई परीस्थितियों के अनुसार अपने काम करने के तरीकों में उचित संशोधन करना चाहिए। अपनी क्षमता का मूल्यांकन करना चाहिए और देखना चाहिए कि अभी कौन-सी समस्या सबसे जरूरी है और उसके समाधान का सही तरीका क्या होगा? किसी एक पुराने ब्लूप्रिंट पर ही आंख मूंदकर चलते रहना ठीक नहीं है।


हमारा लक्ष्य हासिल करने के लिए व्यक्ति, समाज, देश और दुनिया के स्तर पर बदलाव जरूरी है, लेकिन शुरुआत अपने से करनी होगी। जिन विचारों को हम मानते हैं, उनका खुद पालन नहीं करना अनैतिकता है। जब हम अपने विचारों का खुद पालन नहीं करेंगे तो हमारी बातों का असर समाज पर कैसे पड़ेगा?

संपूर्ण क्रांति का एक और उपनाम समग्र क्रांति भी है। इसका मतलब सर्वोदय या सभी लोगों के हित में क्रांति के तौर पर लिया जा सकता है, पर इसका मतलब शोषकों की मदद करना नहीं है। समाज आर्थिक दृष्टि से गरीबों और अमीरों में बंटा हुआ है, लेकिन समाज दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों और सवर्णों में भी बंटा हुआ है। यह धर्म, लिंग, भाषा, क्षेत्र के आधार पर तथा अन्य कई प्रकार के वर्गों में भी बंटा हुआ है। महिला, दलित, अल्पसंख्यक आदि अमीर भी हो सकते हैं और गरीब भी।

कोई अमीर व बीमार महिला किसी दबंग दलित के अत्याचार की शिकार हो तो हमें किसकी मदद करनी चाहिए? यानि मदद की कसौटी जाति या वर्ग को नहीं होना चाहिए। हमें हमेशा सत्य को कसौटी मानकर चलना होगा।

समाज की सभी समस्याएं शोषण, दमन, अत्याचार और अन्याय आदि हिंसा के अलग-अलग रूप है, जिनमें प्रत्यक्ष हिंसा सिर्फ 10% होती है। 90% हिंसा अप्रत्यक्ष होती है, जिसे आमतौर पर हिंसा नहीं माना जाता है। हमें दोनों प्रकार की हिंसा पर समान रूप से कार्रवाई करनी चाहिए। इसके लिए जरूरी है कि हमारी गतिविधियों में भी हिंसा न शामिल हो। अन्यथा हो सकता है कि तात्कालिक राहत मिले, पर अंततः समाज में हिंसा की मात्रा घटने के बदले और बढ़ जायेगी।

समाज परिवर्तन के लिए यह आवश्यक है कि हमारे पास पर्याप्त जानकारी और क्षमता हो। निश्चय ही सबसे ज्यादा ताकत सत्ता के पास होती है। इसलिए बहुत से लोग ईमानदारी से समाज परिवर्तन के लिए सत्ता में जाना चाहते हैं, लेकिन सत्ता पाने का रास्ता इतना कठिन है कि परिवर्तन चाहने वाले अपनी ईमानदारी खो देते हैं या असफल हो जाते हैं। आम आदमी पार्टी का उदाहरण सामने है।

ऊपर से सत्ता का ढांचा इस प्रकार होता है कि जब तक आप बिल्कुल केंद्र में नहीं पहुंच जाते हैं, व्यापक परिवर्तन नहीं ला सकते हैं। अनेक ईमानदार लोग संसद में पहुंचने के बावजूद परिवर्तन नहीं ला सके। यदि आपके हाथ में शीर्ष नेतृत्व आ भी जाता है तो सत्ता के केन्द्रीकरण का मोह बहुत प्रभावी हो जाता है। कुर्सी भ्रष्ट बनाती है और जितने दिन सत्ता में रहेंगे, भ्रष्टाचार भी उतना ही बढ़ता जायेगा। कांग्रेस इसका शिकार रही है और अब भाजपा भी हो रही है। हमारा उद्देश्य जनता को शोषण व दमन से बचाना है, तो उसकी ताकत वापस लानी होगी, न कि खुद सत्ता में जाकर उसके केन्द्रीकरण को बढावा देना और खुद भी भ्रष्ट होते जाना। हमारा प्रयास जनता के बीच रहकर लोकशक्ति को मजबूत करने का होना चाहिए। गांधी जी और जयप्रकाश जी ने यही रास्ता चुना था।

इस लेख के पाठकों से मेरा आग्रह है कि इस विषय पर बहस चलायें. अगर चर्चा चलेगी तो संपूर्ण क्रांति का विचार स्पष्ट रूप हासिल कर सकेगा। संपूर्ण क्रांति के विचार को स्पष्ट करना और आम लोगों के लिए सुगम बनाना जरूरी है, अन्यथा इसे भुला दिया जायेगा।

-रामशरण

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

संपूर्ण क्रांति का सामाजिक दृष्टिकोण

Sat Jun 11 , 2022
सम्पूर्ण क्रांति के प्रणेता लोकनायक जय प्रकाश नारायण को जानने वालों ने उन्हें संत राजनेता कहकर पुकारा। देश और देश की आज़ादी के लिए जेपी के त्याग, साहस और कुर्बानियों की कहानियां इतिहास के पन्नों पर दर्ज हैं। समाज के लिए उनकी चिंताएं उनकी लिखी किताबों और उनके भाषणों में […]
क्या हम आपकी कोई सहायता कर सकते है?