इज़रायल में निर्मित जासूसी करने के उच्च-तकनीकी और महँगी क़ीमत वाले पेगासस सॉफ्टवेयर या स्पाईवेयर का कई देश आतंकवाद और आपराधिक गतिविधियों पर नियंत्रण के लिए इस्तेमाल कर रहे थे। भारत में भी कुछ सामाजिक और राजनीतिक व्यक्तियों के खिलाफ इसका इस्तेमाल किया जा रहा है।
पूर्व सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) मंत्री और सात जुलाई को हुए मंत्रिमंडलीय फेरबदल में हटाए जाने के पहले तक देश में अत्याधुनिक प्रौद्योगकी के विकास और उसके इस्तेमाल की पताका फहराने वाले रविशंकर प्रसाद ने जो कुछ कहा है, उसने चल रहे विवाद की गम्भीरता को और बढ़ा दिया है। रविशंकर प्रसाद ने बजाय इन आरोपों का खंडन करने के, पलटकर यह पूछ लिया कि जब दुनिया के पैंतालीस देश पेगासस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल कर रहे हैं तो भारत में इस बात पर इतना बवाल क्यों मचा हुआ है?
रविशंकर प्रसाद के बयान के बाद एक नया डर उत्पन्न हो गया है। वह यह कि किसी दिन कोई अन्य महत्वपूर्ण व्यक्ति खड़े होकर यह बयान भी दे सकता कि अगर दुनिया के १६७ देशों के बीच ‘पूर्ण’ प्रजातंत्र सिर्फ तेईस देशों में ही है और सत्तावन में अधिनायकवादी व्यवस्थाएँ क़ायम हैं तो भारत में इतना बवाल क्यों मचाया जा रहा है? ब्रिटेन के प्रसिद्ध अंग्रेज़ी अख़बार ‘द गार्डियन’ का कहना है कि जो दस देश कथित तौर पर जासूसी के कृत्य में शामिल हैं, वहाँ अधिनायकवादी सत्ताएँ क़ाबिज़ हैं।
अपने राजनीतिक विरोधियों अथवा अलग विचारधारा रखने वाले लोगों, पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, बुद्धिजीवियों आदि की जासूसी पूर्व की सरकारों में मानव जासूसों के द्वारा करवाई जाती रही है। आपातकाल में जिन लगभग डेढ़ लाख लोगों को गिरफ्तार किया गया था, उनमें भी सभी वर्गों के नागरिक शामिल थे। तब मोबाइल फ़ोन भी नहीं थे। मार्च १९९१ में प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की सरकार को कांग्रेस ने अपना समर्थन वापस लेकर केवल इस एक कारण से गिरा दिया था कि हरियाणा सीआईडी के दो सादी वर्दीधारी जवान दस जनपथ के बाहर चाय पीते हुए पकड़ लिए गए थे। कांग्रेस ने तब आरोप लगाया था कि इन लोगों को राजीव गांधी की जासूसी करने के लिए तैनात किया गया था।
ताज़ा मामले में तो आरोप यह भी है कि जिन लोगों की जासूसी हो रही थी उनमें अन्य लोगों के अलावा सरकार के ही मंत्री, उनके परिवारजन, घरेलू कर्मचारी और अफ़सर आदि भी शामिल रहे हैं। चंद्रशेखर के जमाने तक अगर नहीं जाना हो और वर्तमान सरकार के जमाने की ही बात करना हो तो सिर्फ अक्टूबर २०१८ तक ही पीछे लौटना पड़ेगा।तब सी बी आई के डायरेक्टर आलोक वर्मा के सरकारी बंगले के सामने की सड़क पर इधर-उधर ताक-झांक करते देखे गए चार व्यक्तियों को पकड़ लिया गया था। बाद में पता चला था कि चारों इंटेलिजेन्स ब्यूरो (आईबी) के लोग थे। तब आरोप लगाया गया था कि आलोक वर्मा की जासूसी करवाई जा रही है। गृह मंत्रालय की ओर से उसे रुटीन ड्यूटी बताया गया था।
कोई आदमी जब अपने ही जैसे दूसरे आदमियों की जासूसी करता है तो नागरिकों को ज्यादा डर नहीं लगता। ऐसा इसलिए कि यह आदमी सिर्फ निशाने पर लिए गए शिकार के आवागमन और उसके अन्य लोगों से मिलने-जुलने की जानकारी ही जमा करता है। बातचीत को सुनने के लिए फ़ोन टेपिंग के अलावा घरों में सेंध लगाकर गुप्त उपकरण स्थापित करने पड़ते हैं।
हाल ही में जब राजस्थान की कांग्रेस सरकार में विद्रोह जैसी स्थिति बन गई थी, तब जासूसी के परम्परागत तरीक़े ही विद्रोहियों के खिलाफ़ आज़माए गए थे। पर कर्नाटक में जनता दल (एस) और कांग्रेस के गठबंधन की सरकार को गिराने में पेगासस स्पाईवेयर के इस्तेमाल के आरोप अब उजागर हो रहे हैं।
नागरिक के ज्यादा डरने के कारण तब उत्पन्न हो जाते हैं, जब उसे पता चलता है कि कोई हुकूमत या अज्ञात सत्ता चाहे तो अदृश्य तकनीक की मदद से हज़ारों मील दूर बैठकर भी उसके शयन कक्ष में पहुँचकर उसके अंतरंग क्षणों को उसी के मोबाइल कैमरों के ज़रिए प्राप्त कर सकती है, बातें सुन सकती है, उनकी रिकॉर्डिंग कर सकती है, संदेशों को पढ़ सकती है और अंतत: उसकी जिंदगी को क़ैद कर सकती है। नागरिक को तब लगने लगता है कि उसे अब अपने बेडरूम में अंदर से कुंडी लगाना भी बंद कर देना चाहिए। पेगासस जासूसी का मामला अभी दुनिया के पचास हज़ार लोगों तक ही सीमित बताया जा रहा है, पर यह संख्या किसी दिन पाँच लाख या पाँच करोड़ तक भी पहुँच सकती है।
नागरिक जब सरकारों में बैठे हुए व्यक्तियों और उनके चेहरों की बदलती हुई मुद्राओं के बजाय उनके द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले गुप्त और अदृश्य तकनीकी उपकरणों से ख़ौफ़ खाने लगे तो समझा जाना चाहिए कि या तो लोकतंत्र पूरी तरह से समाप्त हो चुका है या फिर आगे-पीछे हो सकता है। ऐसी स्थितियाँ तभी बनती हैं, जब शासकों को लगने लगता है कि उनकी लोकप्रियता घट रही है या काफ़ी लोग उनके खिलाफ़ गुप्त षड्यंत्र कर रहे हैं।
पता किया जाना चाहिए कि पेगासस खुलासे के बाद से कितने लोगों ने अपने मोबाइल बंद कर दिए हैं, शयनकक्षों से दूर रख दिए हैं या उनसे पूरी तरह दूरी बनाकर रहने लगे हैं।