भारत में मौतों की मनहूसियत का मौसम बड़ी तेज़ी से जासूसी के मौसम में बदलता हुआ दिखाई दे रहा है। कोरोना वायरस की दूसरी लहर उतर गई है, और अपने पीछे छोड़ गई है अंदाज़न ४० लाख भारतीयों की मौतें। मौतों का आधिकारिक सरकारी आंकड़ा इसका दसवां हिस्सा है– चार लाख। इस खौफनाक हुकूमत में, जब श्मशान घाटों पर धुआं छंटने लगा और कब्रिस्तानों की मिट्टी जमने लगी, तब हमारी सड़कों पर ‘थैंक्यू मोदी जी’ कहते हुए भारी-भरकम होर्डिंग नमूदार हुए। (यह उस ‘मुफ्त वैक्सीन’ के लिए लोगों की तरफ से पेशगी शुक्रिया है, जो ज्यादातर तो उपलब्ध नहीं है, और जिसे आबादी के ९५³ को अभी लगना बाकी है।) जहां तक मोदी सरकार की बात है, मौतों के सही आंकड़ों की गिनती करने की कोई भी कोशिश भारत के खिलाफ एक साजिश है– मानो जो दसियों लाख लोग मरे, वे महज अभिनेता थे, जो एक बदनीयती के साथ काम कर रहे थे, जो उन तंग, सामूहिक कब्रों में लेटे हैं, जिन्हें आपने आसमान से ली गई तस्वीरों में देखा, या जिन्होंने लाशों का भेष धर कर खुद को नदियों में बहाया, या जिन्होंने शहरों के फुटपाथों पर खुद की लाश जलाई। वे सभी भारत की अंतरराष्ट्रीय इज्ज़त को बदनाम करने की अकेली ख्वाहिश के साथ काम कर रहे थे।
भारत सरकार ने इस्राएली निगरानी कंपनी एनएसओ द्वारा विकसित पेगासस स्पाइवेयर (जासूसी करने वाला एक सॉफ्टवेयर) खरीदा है। अपनी तरफ से एनएसओ ने कहा है कि वह अपनी तकनीक सिर्फ उन्हीं सरकारों को बेचती है, जिनका मानवाधिकारों का इतिहास बेदाग हो और जो वादा करती हैं कि वे सिर्फ राष्ट्रीय सुरक्षा के मकसद से, आतंकवादियों और अपराधियों का सुराग लगाने के लिए इसका उपयोग करेंगी।
स्पाइवेयर की भारी-भरकम कीमत के अलावा, जो एक-एक फोन के लिए लाखों डॉलर तक होती है, एनएसओ प्रोग्राम की कुल कीमत का १७³ सालाना सिस्टम मेन्टेनेंस फीस के रूप में वसूल करता है। एक विदेशी कॉरपोरेट कंपनी एक ऐसा जासूसी नेटवर्क मुहैया करा रही है और उसे चलाती है, जो एकदेश की सरकार की तरफ से उस देश के नागरिकों की निगरानी कर रही है।
पत्रकारों के जांच दल ने ५०,००० फोन नंबरों की एक लीक हुई सूची की छानबीन की। इस विश्लेषण से पता लगा कि इनमें से १,००० से अधिक नंबर भारत में एनएसओ के एक क्लाइंट द्वारा चुने गए थे। वे इन नंबरों को हैक करने में सफल रहे थे या नहीं, या उनको हैक करने की कोशिश हुई थी या नहीं, यह बात सिर्फ तभी पता लगाई जा सकती है, जब इन फोनों को फोरेंसिक जांच के लिए जमा किया जाए। भारत में जिन नंबरों की जांच की गई, उनमें से कइयों को पेगासस स्पाइवेयर से संक्रमित पाया गया। लीक हुई सूची में विपक्षी दलों के राजनेताओं, आलोचना करने वाले पत्रकारों, कार्यकर्ताओं, वकीलों, बुद्धिजीवियों, कारोबारियों, भारत के चुनाव आयोग के एक नाफरमान अधिकारी, बात नहीं मानने वाले एक वरिष्ठ खुफिया अधिकारी, कैबिनेट मंत्री, उनके परिवार वाले, विदेशी कूटनीतिज्ञ और यहां तक कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के फोन नंबर भी शामिल हैं।
हमें बताया गया है कि पेगासस को बस एक मिस्ड कॉल के ज़रिए टारगेट किए गए फोन में इंस्टॉल किया जा सकता है। जरा सोचिए। मिस्ड कॉल की एक मिसाइल से दागे गए अदृश्य स्पाइवेयर का गोला बारूद। महाद्वीपों को लांघने वाली एक बैलिस्टिक मिसाइल (आइसीबीएम) जिसका कोई जोड़ नहीं है। जो लोकतंत्रों को तहस-नहस करने में और समाजों को तोड़ने में सक्षम है, जिसको किसी लाल-फीताशाही का सामना नहीं करना है– न वारंट, न हथियारों के समझौते, न चौकसी करने वाली समितियां, न ही किसी किस्म का कानून। बेशक तकनीक का अपना कोई उसूल नहीं होता। इसमें किसी का कोई कसूर नहीं है।
जाहिर तौर पर एनएसओ और भारत के बीच दोस्ताना लेन-देन २०१७ से शुरू हुआ, जब भारतीय मीडिया की भाषा में मोदी-नेतन्याहू का ‘ब्रोमान्स’ चला था। उसी साल भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद का बजट दस गुना बढ़ गया। ज्यादातर बढ़ी हुई रकम साइबर सिक्योरिटी पर खर्च होनी थी। प्रधानमंत्री के रूप में अपना दूसरा कार्यकाल जीतने के बाद जल्दी ही, अगस्त २०१९ में भारत के कठोर आतंकवाद विरोधी कानून, गैर कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) का विस्तार करके, जिसके तहत पहले से ही हजारों लोग बिना जमानत के जेलों में बंद हैं, अब सिर्फ संगठनों को ही नहीं, निजी व्यक्तियों को भी इसके दायरे में ले आया गया।
पेगासस कांड ने संसद के मानसून सत्र में उथल-पुथल पैदा की है। विपक्ष ने गृह मंत्री के इस्तीफे की मांग की है। अपने बहुमत से आश्वस्त मोदी की सत्ताधारी पार्टी ने रेलवे और संचार एवं सूचना तकनीक मंत्री के रूप में नए-नए शपथ लेने वाले अश्विनी वैष्णव को संसद में सरकार का बचाव करने के लिए उतारा। उनकी अपमानजनक किस्मत देखिए, लीक हुई सूची में उनका नंबर भी था।
तो हम पेगासस को कैसे समझें? हकीकत से आंखें मूदते हुए इसको खारिज कर दें, कह दें कि शासक अपने शासितों की निगरानी करने के लिए जो सदियों पुराना खेल चलाते आए हैं, यह उसका महज एक नया तकनीकी हथकंडा है? हमारे मोबाइल फोन हमारे सबसे अंतरंग वजूद में शामिल हैं। वे हमारे दिमाग और हमारे शरीरों का विस्तार हैं। भारत में मोबाइल फोन की गैरकानूनी निगरानी नई बात नहीं है। लेकिन सरकारों और कॉरपोरेट कंपनियों को इस बात का कानूनी अधिकार दे देना कि वे हमारे फोन में घुसपैठ करें और उस पर कब्जा कर लें, ऐसा ही होगा मानो हम अपनी मर्यादा का हनन करने के लिए खुद को उनके हाथों में सौंप दें।
पेगासस प्रोजेक्ट से उजागर होने वाली बातें दिखाती हैं कि इस स्पाइवेयर का संभावित खतरा पुरानी किसी भी किस्म की खुफियागीरी या निगरानी से कहीं अधिक आक्रामक है। यह गूगल, अमेजन और फेसबुक से भी अधिक आक्रामक है, जिनके ताने-बाने के भीतर करोड़ों लोग अपनी जिंदगियां जी रहे हैं और अपनी चाहतों से खेल रहे हैं। यह अपनी जेब में एक जासूस लिए फिरने से भी बड़ी बात है। पेगासस जैसे स्पाइवेयर न सिर्फ हरेक संक्रमित फोन के उपयोगकर्ता को, बल्कि उसके दोस्तों, परिवार वालों, सहकर्मियों के पूरे दायरे को राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक जोखिम में डालता है।
जब पेगासस प्रोजेक्ट की खबरें आने लगीं तो मैं वापस अपनी रेकॉर्डेड बातचीत के ट्रांस्क्रिप्ट पढ़ने लगी। यह कुछ सौ पन्नों में है। अंत में मेरे रोंगटे खड़े हो गए। तब महज अपने तीसवें में रहे सडवर्ड स्रोडेन, जो संयुक्त राज्य अमरीका के नेशनल सिक्युरिटी एजेंसा
ोâ पूर्व एनालिस्ट और आलोचक हैं, एक सख्त पैगंबर की तरह बोल रहे थे : ‘तकनीक वापस नहीं ली जा सकती है, तकनीक तो बनी रहेगी… यह सस्ती होने वाली है, यह अधिक कारगर होने वाली है, यह और अधिक उपलब्ध होने वाली है। अगर हम कुछ नहीं करते, तो एक तरह से हम सोते-सोते एक मुकम्मल निगरानी वाले राज्य में पहुंच जाएंगे, जहां एक सुपर स्टेट होगा, जिसके पास ताकत का उपयोग करने की अथाह क्षमता होगी और यह एक बहुत खतरनाक मिश्रण है… भविष्य की यह दिशा है।’
दूसरे शब्दों में, हम एक ऐसी दिशा में बढ़ रहे हैं जहां हम पर ऐसे राज्यों का शासन होगा, जो हर वह बात जानते हैं, जो लोगों के बारे में जानी जा सकती है, लेकिन उन राज्यों के बारे में जनता बहुत कम जानती है। यह असंतुलन सिर्फ एक ही दिशा में ले जा सकता है। एक असाध्य जानलेवा हुक्मरानी और लोकतंत्र के अंत की ओर।
हमें एक ऐसी दुनिया में वापस जाना होगा, जहां हम अपने सबसे अंतरंग दुश्मन अपने मोबाइल फोन के कब्जे में, उसके मातहत नहीं जी रहे होंगे। हमें डिजिटल निगरानी की दम घोंट देने वाली हुकूमत के बाहर अपनी जिंदगियों को, संघर्षों को और सामाजिक आंदोलनों को फिर से रचना होगा। हमें उन व्यवस्थाओं को सत्ता से बेदखल करना होगा, जो हमारे खिलाफ इसकी तैनाती कर रही हैं। सत्ता की मूठ पर उनकी गिरफ्त को ढीली करने के लिए, उन्होंने जो कुछ तोड़ा उसे जोड़ने के लिए, और उन्होंने जो कुछ चुरा लिया है उसे वापस लेने के लिए, हम जो भी कर सकते हैं वह हमें करना होगा।
गार्डियन
अनुवादक : रेयाज़ुल हक़