आज भी विश्व के अनेक देश भारत को ‘बापू’ के परिचय से ही पहचानते हैं। भारत से गया व्यक्ति अपना परिचय देते हुए जब यह बताता है कि वह उस देश से आ रहा है, जिस देश में गांधी जी ने जन्म लिया था तो उनमें से बहुतेरे उस व्यक्ति […]

यह गांधी की प्रभावशाली जीत थी सत्तर के दशक की एक मशहूर मूवी थी। एक अमीर मिल मालिक का बेटा अपने दोस्त को, मजदूरों के बीच लीडर बनाकर बैठा देता है। दोस्त मजदूरों की बस्ती में रहता है। जब मजदूरों का दर्द समझता है, तो अपने ही दोस्त, यानी मिल […]

कॉलेज के दौर में गांधी विचार को जाना, कुछ साहित्य पढ़ा और उसके नज़दीक आया फिर कुछ कुछ बातें गांधी की मानने लगा, जिसमें खादी अपनाना भी शामिल रहा। अस्सी के दशक में स्कूल और कॉलेज के जीवन में हिंदी आंदोलन के बाद मैं खादी के उत्पादन से तो नहीं, […]

बापू ने सुब्रह्मण्यम भारती में क्या देखा 1919 के मार्च महीने में गांधी जी मद्रास में थे।   चक्रवर्ती राज-गोपालाचारी के घर पर उनका डेरा था। एक सुबह गांधी जी के कमरे में उनके साथ राजाजी, तमिल भाषा में धुआंधार भाषण के लिए ख्यात एस. सत्यमूर्ति, सालेम के प्रतिष्ठित वकील अधिनारायण […]

हिन्दी कथाकार राजेन्द्र यादव ने एक बार लिखा था कि यदि कोई व्यक्ति हावड़ा पुल पर खड़ा होकर जोर-जोर से कहने लगे कि यह पुल उसके दादा ने बनवाया था, तो कुछ लोग ऐसे भी होंगे, जो यह सिद्ध करने में लग जायेंगे कि सच में यह पुल उसके दादा […]

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी आए दिन मंचों पर, फिल्मों और नाटकों में, किताबों, चित्रों और नोटों में खूब दिखाई पड़ते हैं, लेकिन वास्तविक जीवन में उनके विचारों को व्यवहार में लाने की कोशिश नहीं के बराबर ही दिखती है। हमने उनको प्रतिमा और पूजा पाठ तक सीमित कर दिया है। राजनेता […]

गांधीजी ने उच्चतम आदर्शों को व्यवहार में लाने के लिए जिन अभियानों/आंदोलनों को चलाया, उन्हें लोकस्मृति में एवं लोकजीवन में निरंतर स्थापित करने की जरूरत है। किसी एक दिन गांधी दिवस मनाने की औपचारिकता वे निभाते हैं, जिनका गांधी विचार से कुछ लेना-देना नहीं है। गांधीजी ने योरोप में पैदा […]

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-डॉ. विनय कुमार सिंह इतिहास की दृष्टि से चार-पाँच शताब्दी पूर्व के तथ्यों का अवलोकन करें तो ‘अकबरनामा’ के अनुसार, 1582 ई. में चंपारण तीन भागों में विभक्त था—मझौआ, सिमरौन और मेहसी। उस समय यहाँ की जनसंख्या विरल थी। गोपाल सिंह ‘नेपाली’ के अनुज बम बहादुर सिंह ‘नेपाली’ की पुस्तक […]

-रवीन्द्र रुक्मिणी पंढरीनाथ मोहनदास करमचंद गांधी बीसवीं सदी का ऐसा अद्भुत व्यक्तित्व था, जिसकी छाप हमें जीवन के हर क्षेत्र में दिखाई देती है। उन की हत्या के 73 साल बीत चुके हैं। उसके बाद भी उनको बदनाम करने के लिए आज तक मुहिम चलायी जा रही है। मजे की […]

जब बापू ने एक दलित कन्या को गोद लिया -अनु वर्मा 9 जनवरी, 1915 को दक्षिण अफ्रीका से आने के पांच महीने के भीतर ही गांधी ने अहमदाबाद के पास कोचरब बंगले में सत्याग्रह आश्रम की स्थापना कर ली थी। कई लोगों ने इस आश्रम को सार्वजनिक जीवन में गांधी […]

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