नमामि गंगे को संयुक्त राष्ट्र द्वारा शीर्ष 10 परियोजनाओं में रखने से जल विशेषज्ञ असहमत

संयुक्त राष्ट्र ने गंगा नदी को साफ करने के लिए नमामि गंगे परियोजना को दुनिया की दस अग्रणी पहलों में से एक के रूप में सूचीबद्ध किया है, जो प्रकृति संरक्षण का काम कर रहे हैं। लेकिन जल विशेषज्ञ संयुक्त राष्ट्र की इस मान्यता से प्रभावित नहीं हैं, उनका कहना है कि एजेंसी ने इस परियोजना को इस सूची में रखने के लिए आवश्यक मानदंडों के बारे में विवरण नहीं दिया है। इसके अलावा, पिछले कुछ वर्षों में किए गए कई अध्ययनों से पता चला है कि इस तरह की कई परियोजनाओं के बावजूद गंगा में पानी की गुणवत्ता खराब बनी हुई है।

संयुक्त राष्ट्र ने 13 दिसंबर को भारत की राष्ट्रीय नदी गंगा का प्रदूषण साफ़ करने वाली भारत सरकार की नमामि गंगे परियोजना को दुनिया की दस ऐसी अग्रणी पहलों में से एक के रूप में सूचीबद्ध किया है, जो प्रकृति के संरक्षण के काम में लगी हुई हैं।

यह मान्यता ऐसे समय में आई है, जब पिछले कुछ वर्षों में किए गए कई अध्ययनों से पता चला है कि गंगा में पानी की गुणवत्ता अभी भी खराब है और इस मुद्दे से निपटने के लिए कई सरकारी योजनाओं और उपायों के बावजूद अभी भी बहुत कुछ बाकी है।

उल्लेखनीय है कि दुनिया की जल बिरादरी के विशेषज्ञ इस परियोजना को मिली संयुक्त राष्ट्र की मान्यता से प्रभावित नहीं हैं। उन्होंने बताया कि संयुक्त राष्ट्र ने इस परियोजना को इस सूची में रखने के लिए आवश्यक मानदंडों के बारे में ब्योरा नहीं दिया है। इसके अलावा विशेषज्ञों का कहना है कि गंगा की सफाई जलमार्ग परियोजना जैसी कई अन्य परियोजनाओं के साथ-साथ चल रही है, जो नदी को नष्ट कर रही हैं।

ग्राउंड ब्रेकिंग प्रयास
मॉन्ट्रियल, कनाडा में जैविक विविधता पर संपन्न हुए 15 वें सम्मेलन में, संयुक्त राष्ट्र ने प्रकृति संरक्षण के क्षेत्र में भूमिका के लिए दुनिया भर के 10 ग्राउंड ब्रेकिंग प्रयासों पर प्रकाश डाला। यद्यपि संयुक्त राष्ट्र ने उन मानदंडों का उल्लेख नहीं किया है, जिनके आधार पर परियोजनाओं को चुना गया है। संयुक्त राष्ट्र कृषि संगठन के अनुसार उन्हें संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) के तहत चुना गया है। इन पहलों को विश्व बहाली फ्लैगशिप के रूप में भी घोषित किया गया है, जिसके तहत ये परियोजनाएं संयुक्त राष्ट्र द्वारा समर्थित प्रचार, सलाह या फंड प्राप्त करने योग्य हैं।
गंगा भारत की सबसे लंबी नदी है, जिसकी कुल लंबाई 11 राज्यों में 2,525 किलोमीटर है, जिसमें से 1,000 किलोमीटर अकेले उत्तर प्रदेश राज्य से होकर बहती है। नदी में सीवेज और औद्योगिक अपशिष्ट दोनों के निरंतर प्रवाह सहित कई कारकों के कारण जल प्रदूषण लंबे समय से गंगा के लिए एक चिंता का विषय बना हुआ है। 2020 के सरकारी अनुमान के अनुसार, 97 शहरों से निकलने वाला 2,953 मिलियन लीटर सीवेज प्रतिदिन गंगा की मुख्य धारा में बहता है।

नमामि गंगे कार्यक्रम में सरकार द्वारा सीवेज उपचार अवसंरचना स्थापित करना और औद्योगिक अपशिष्टों की निगरानी करना शामिल है। अन्य पहलों में नदी की सतह की सफाई, जैव विविधता संरक्षण और रिवरफ्रंट का विकास शामिल हैं।

संयुक्त राष्ट्र की घोषणा में कहा गया है कि भारत सरकार ने अब तक इस परियोजना में 4.25 अरब डॉलर तक का निवेश किया है और इस पहल ने अब तक 1,500 किमी नदी को बहाल कर दिया है। इसके अतिरिक्त, अब तक 30,000 हेक्टेयर वनीकरण हो चुका है, 2030 तक इसका लक्ष्य 134,000 हेक्टेयर है।

विशेषज्ञ आश्वस्त नहीं हैं
बांधों, नदियों और लोगों पर दक्षिण एशिया नेटवर्क के समन्वयक हिमांशु कहते हैं कि दुर्भाग्य से, इन प्रमुख पहलों का चयन करने के लिए आवश्यक प्रक्रिया और मानदंडों के बारे में यूएनईपी की वेबसाइट पर कोई जानकारी नहीं है। उन्होंने कहा कि उपलब्ध जानकारी से पता चलता है कि गंगा के कायाकल्प की दिशा में प्रयास जलमार्ग परियोजना और गंगा के ड्रेजिंग जैसे नदी के विनाश के साथ-साथ चल रहे हैं।

उत्तर प्रदेश में प्रयागराज से पश्चिम बंगाल में हल्दिया तक नदी का एक हिस्सा, राष्ट्रीय जलमार्ग है। इसमें बिहार में एक खंड भी शामिल है, जो विक्रमशिला गंगा डॉल्फिन अभयारण्य के रूप में संरक्षित है। 2019 के एक अध्ययन में पाया गया है कि जलमार्ग में होने वाले उच्च पोत यातायात से भारत के राष्ट्रीय जलीय जानवर डॉल्फ़िन पर दबाव पड़ रहा है। इस बीच, जलमार्ग को बनाए रखने के लिए नदी की ड्रेजिंग भी जारी है, जो मैलापन बढ़ाती है और जहरीली धातुओं को पानी में छोड़ती है। इस बारे में कोई फैसला नहीं किया गया है कि जलमार्ग के विकास कार्य के लिए पर्यावरण मंजूरी की भी आवश्यकता है या नहीं।

प्रदूषण जारी है
पर्यावरण और जल विशेषज्ञ राजेन्द्र सिंह कहते हैं कि इन तमाम योजनाओं और उपायों के बावजूद गंगा पहले की तुलना में अधिक प्रदूषित है। नमामि गंगे कार्यक्रम सिर्फ सौंदर्यीकरण का प्रयास है। नदी में प्रदूषण से संबंधित अध्ययनों का विश्लेषण करने वाले 2022 के एक शोध पत्र में पाया गया है कि सब ठीक नहीं है और गंगा की गुणवत्ता दिन ब दिन खराब होती जा रही है।

एनजीटी ने इस साल जुलाई में कहा था कि लगभग 50 फीसदी अनुपचारित सीवेज अभी भी नदी में बहाया जा रहा है। एनजीटी ने कानून का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त उपाय नहीं करने के लिए राज्य के अधिकारियों की भी खिंचाई की है। सितंबर में, ट्रिब्यूनल ने उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया कि कानपुर में एक कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट अविलम्ब स्थापित किया जाए, क्योंकि क्षेत्र में टेनरियों से प्रदूषक निकल रहे हैं।

– आतिरा पेरिनचेरी

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