प्रतिरोध के लिए संगठन बुनियादी जरूरत

जनतंत्र समाज (सीएफडी) के राष्ट्रीय सम्मेलन की रिपोर्ट

जनतंत्र समाज का मुख्य काम लोक शिक्षण का था, उसे फिर से शुरू करना होगा। प्रतिरोध के लिए संगठन एक बुनियादी जरूरत है। हमें अहिंसात्मक सत्याग्रह के रास्ते चलने का निश्चय करना होगा।

लोकनायक जय प्रकाश नारायण द्वारा स्थापित सिटीजेन्स फार डेमोक्रेसी (सीएफडी, जनतंत्र समाज) का दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन 23 एवं 24 अप्रैल को लखनऊ के गांधी भवन में सम्पन्न हुआ। सम्मलेन की शुरुआत वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता रामशरण के वक्तव्य से हुई. उन्होंने समाज की भयावह स्थिति के बारे में बताते हुए बढ़ती बेरोजगारी, महंगाई, ध्वस्त होती जा रही शिक्षा व स्वास्थ्य व्यवस्था सहित सांप्रदायिक हिंसा की बढ़ती प्रवृत्ति पर चिंता व्यक्त की और जनहित में इसके प्रतिकार का आह्वान किया. सम्मेलन का विधिवत उद्घाटन जनतंत्र समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष हीरेमठ ने किया। कार्यक्रम का संचालन दिनेश प्रियमन व एडवोकेट वीरेन्द्र त्रिपाठी ने किया।

सम्मेलन में जनतंत्र समाज के कार्यकर्ताओं के साथ उत्तर प्रदेश के तमाम जनसंगठनों और नागरिक अधिकार संगठनों के प्रतिनिधि शामिल हुए। चर्चा का मुख्य विषय देश में लोकतंत्र पर लगातार हो रहा हमला और नागरिक अधिकारों का दमन था। चर्चा को आगे बढ़ाते हुए मणिमाला ने कहा कि हमें अब सीधे एक्शन में आना होगा. हालिया कुछ आंदोलनों और गतिविधियों ने यह साबित किया है कि अगर हम डट जाएं तो सरकार को झुका सकते हैं. नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ़ चले शाहीनबाग आन्दोलन ने वह कानून लागू होने से रोका तो 13 माह चले किसान आन्दोलन ने 700 से अधिक किसानों का बलिदान देकर तीनों काले कृषि कानूनों को वापस लेने को सरकार को बाध्य किया. कम्युनिस्ट कार्यकर्ताओं ने दिल्ली के जहांगीरपुरी में बुलडोज़र के सामने खड़े होकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश लागू करवाए और बहुप्रचारित बुलडोज़र-ध्वंस को रोका.
जनमोर्चा के लखनऊ संस्करण की संपादक सुमन गुप्ता, जनतंत्र समाज, दिल्ली की वर्तिका मणि, खुदाई खिदमतगार के हाफिज़ किदवई ने भी लोकतंत्र, अल्पसंख्यक समुदायों सहित दलितों-आदिवासियों पर हो रही हिंसा पर चिंता ज़ाहिर की एवं जनतंत्र के बचाव में व्यापक एकता बनाने और असरकारी कदम उठाने की बात कही.


समापन सत्र को जस्टिस (अवकाश प्राप्त) सुधीर वर्मा, सर्वोदय जगत के प्रधान सम्पादक राम दत्त त्रिपाठी, जनतंत्र समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष हीरेमठ, महामंत्री व सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता एनडी पंचोली, गांधीवादी चिंतक रामशरण, समाजवादी चिंतक रामकिशोर, सामाजिक कार्यकर्ता रामकृष्ण और जागृति राही सहित कई स्थानीय लोगों ने भी सम्बोधित किया। सुरेंद्र विक्रम ने कहा कि जनतंत्र समाज का मुख्य काम लोक शिक्षण का था, उसे फिर से शुरू करना होगा। प्रतिरोध के लिए संगठन एक बुनियादी जरूरत है। हमें अहिंसात्मक सत्याग्रह के रास्ते चलने का निश्चय करना होगा। अरुण माझी ने कहा कि आज तानाशाही से बड़ा खतरा फासीवाद का है और इसे गांधीवादी तरीके से पराजित किया जा सकता है। अविनाश मिश्रा ने सरकारी उद्यमों के निजीकरण का सवाल उठाया और अभिव्यक्ति की आजादी की चुनौतियों की बात रखी। जागृति राही ने कहा कि यह दौर कारवाई और आंदोलनों का है। हमें पीड़ित लोगों के साथ खड़े होना होगा। चुनौती के समय गांधी के लोगों को हमेशा आम लोगों के साथ खड़े होना चाहिए।
जनतंत्र समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष हीरेमठ ने जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति की याद दिलाई और श्रमजीवी संस्कृति में गिरावट और नैतिक मूल्यों में ह्रास की समस्या रखते हुए समाज सुधारक सूफी संतों की चर्चा की। उन्होंने उत्तर प्रदेश में जनतंत्र समाज की एक सक्रिय कमेटी बनाने का आह्वान किया। सीएफडी के राष्ट्रीय महामंत्री एनडी पंचोली ने लोगों के बीच जाने का आह्वान किया। मिथ्या प्रचार और नायकत्ववाद की समस्या उठाई और हर प्रकार के उत्पीड़न के खिलाफ खड़े होने की अपील की। सम्मेलन को वरिष्ठ पत्रकार आनन्द वर्धन सिंह, वरिष्ठ पत्रकार सुमन गुप्ता, ट्रेड यूनियन नेता ओपी सिन्हा, रामकृष्ण, वर्तिका मणि, भगवान स्वरूप कटियार, आलोक, संदीप पांडेय, कल्पना पांडेय, लता राय, केके शुक्ला, देवेंद्र वर्मा, डॉ नरेश कुमार, फिलिप थॉमस, राजीव, आशीष यादव सहित अन्य लोगों ने सम्बोधित किया। सम्मेलन में देश व प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों से तकरीबन डेढ़ सौ लोग शामिल हुए।

कार्यक्रम के अंत में कुछ प्रस्ताव पारित हुए. जनतंत्र समाज की उत्तर प्रदेश की इकाई को मजबूत बनाने के लिए संयोजन समिति के गठन का प्रस्ताव पास किया गया. रामकिशोर व जागृति राही को उत्तर प्रदेश में जनतंत्र समाज कि इकाई गठित करने कि जिम्मेदारी दी गई. रामकिशोर ने ही इस आयोजन में केन्द्रीय भूमिका निभाई.


सम्मलेन में पारित प्रस्ताव:
सीएफडी का यह राष्ट्रीय सम्मेलन प्रस्ताव करता है कि –
* UAPA एवं NSA जैसे काले क़ानून जो नागरिक अधिकारों का सीधा हनन करते हैं, उन्हें तत्काल प्रभाव से वापस लिया जाए. साथ ही अन्य राज्यों के काले क़ानूनों को भी रद्द किया जाए।
* भीमा कोरेगाँव, किसान आंदोलन, नागरिकता संशोधन कानून के विरुद्ध शाहीनबाग़ आन्दोलन तथा अन्य मामलों में जेलों में बंद मानवाधिकारों कार्यकर्ताओं, छात्रों, पत्रकारों, नाट्यकर्मियों को जल्द से जल्द रिहा किया जाए। साथ ही इनसे सम्बंधित झूठे मुक़दमों को निरस्त किया जाए।
* सीएफडी का यह राष्ट्रीय सम्मेलन देश के विभिन्न भागों में मुस्लिम समुदाय के विरुद्ध नियोजित तरीक़े से चलाए जा रहे प्रचार और मुहिम से चिंतित है, ख़ासकर महिलाओं से सम्बंधित बयानों पर।
* मुसलमान आबादी और मस्जिदों के सामने से हथियारों से लैस जुलूस को गुजरने की इजाज़त देना ग़लत है, इसे बंद किया जाए। मस्जिदों के सामने डीजे बजाने, अश्लील नारे लगाने, गालियां देने और हिंसक गाने बजाने पर रोक लगायी जाए।
* किसी भी हालत में दो समुदायों के बीच होने वाली झड़प में दोनों के साथ बराबरी के स्तर पर क़ानूनी कार्रवाई की जाए। बिना क़ानूनी/न्यायिक कार्यवाही पूरी किए किसी को अपराधी मानकर दंडित न किया जाए। उनके मकान और दुकान न तोड़े जायं।
* तोड़ डाले गए मकानों के लिए पर्याप्त मुआवज़ा दिया जाए और झूठे मामले वापस लिये जायं। इस तरह के किसी दंगे-फ़साद की स्थिति में स्थानीय प्रशासन को ज़िम्मेदार ठहराया जाए और उनके ख़िलाफ़ सख़्त कार्यवाही की जाए। सरकारें यह सुनिश्चित करें कि अन्य अल्पसंख्यक समुदायों पर भी हमले न हों.
* किसी के खान-पान, पहनावे तथा रीति-रिवाजों पर किसी प्रकार की कोई पाबंदी न लगायी जाए। इसके साथ ही बिना किसी व्यापक चर्चा एवं आम सहमति के समान नागरिक संहिता लाने की कोशिश न की जाए।
* दलित और आदिवासी समुदाय पर हो रहे हमले, ख़ास कर उनकी सम्पत्ति पर क़ब्ज़ा करने और उनकी सम्पत्ति की तोड़-फोड़ पर रोक लगायी जाए।
* नए श्रम क़ानूनों को रद्द किया जाए और श्रमिकों के यूनियन बनाने व हड़ताल करने के अधिकार सहित अन्य अधिकार फिर से बहाल किये जायं।
* पब्लिक सेक्टर यूनिट, शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवाओं का बाज़ारीकरण और निजीकरण बंद किया जाये।
* रोज़गार / काम का अधिकार सबका हक़ है, इसे मूल अधिकार की सूची में शामिल किया जाए। सरकारें सभी युवा स्त्री-पुरुषों के लिए काम की व्यवस्था करें. जब तक यह न हो सके, सभी बेरोज़गार युवाओं को बेरोज़गारी भत्ता दिया जाए।
* हमारे राष्ट्रीय आंदोलन के मूल्यों तथा संविधान में वर्णित मूल्यों और मूल अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित हो। राष्ट्रीय आन्दोलन के स्मृति चिन्हों के साथ कोई छेड़छाड़ न की जाए.
* सर्वोदय और गांधीवादी संस्थाओं एवं महात्मा गांधी की स्मृतियों को न छेड़ा जाए. स्वावलंबन, शांति, सादगी, प्रेम और एकता के इन प्रतीकों को ऐसे ही सहेज कर रखा जाए, जैसे वे गांधीजी के ज़माने में थे और आज हैं. विश्वस्तरीय बनाने के नाम पर उनकी मूल सोच और संरचना पर प्रहार न किया जाए.
* स्वतंत्र नागरिक संगठनों तथा व्यक्तियों पर सरकार द्वारा हो रहे हमलों पर रोक लगायी जाए। -मणिमाला

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