संकल्प-सत्याग्रह और महाजागरण यात्रा

वर्तमान परिस्थितियों में देश के सामाजिक हलकों में एक हलचल महसूस की जा रही है। सर्व सेवा संघ ने 9 अगस्त से 30 जनवरी तक ‘संकल्प सत्याग्रह’ और ‘महाजागरण यात्रा’ की शुरूआत की है, वहीं 16 अगस्त से 23 सितंबर तक बिहार में ‘हल्ला बोल’ यात्रा का आयोजन किया जा रहा है। इसी बीच लोकतांत्रिक जन पहल की तरफ से 2 अक्टूबर से 30 जनवरी तक ‘राष्ट्रीय जन संवाद यात्रा’ की घोषणा की गयी है। जमशेदपुर कनवेंशन से भी आंदोलन के स्वर उठे हैं। पेश है एक समग्र रिपोर्ट।

नागरिक अधिकारों, धार्मिक सद्भाव और खादी की रक्षा

9 अगस्त को दिल्ली में संकल्प सत्याग्रह के साथ ही 30 जनवरी तक चलने वाली सर्व सेवा संघ की ‘महाजागरण यात्रा’ शुरू हो रही है। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में 9 अगस्त 1942 एक अविस्मरणीय इबारत है। इसी दिन महात्मा गांधी ने अंग्रेजों से भारत छोड़ देने का आह्वान किया था। अगस्त क्रांति दिवस के रूप में प्रचलित इस दिन से आज भी सभी भारतवासी प्रेरणा लेते हैं। परंतु उस समय भी कुछ ऐसे लोग और समूह थे, जो आंदोलनकारियों को पकड़वाने के लिए ब्रिटिश साम्राज्य की मुखबिरी कर रहे थे, माफी मांग कर पेंशन भोग रहे थे। स्वतंत्रता सेनानियों के अथक प्रयास, बलिदान एवं त्याग से हमें आजादी तो मिली, लेकिन पाखंड और दगाबाजी का वह सिलसिला थमा नहीं।

‘अंतिम जन’ का सावरकर अंक वापस लिया जाये : नई दिल्ली स्थित अर्द्धसरकारी संस्था गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति की ओर से प्रकाशित होने वाली पत्रिका ‘अंतिम जन’ ने जून-2022 में सावरकर विशेषांक निकाला है। इस संस्था के उपाध्यक्ष एवं पत्रिका के संरक्षक ने संपादकीय में लिखा है, ‘सावरकर का इतिहास में स्थान व स्वतंत्रता आंदोलन में उनका सम्मान गांधी से कम नहीं है।’ गांधी संस्था की पत्रिका का यह मंतव्य अत्यंत दुखद और निराशाजनक है। कोई भी व्यक्ति सावरकर की प्रशंसा करने के लिए स्वतंत्र है। परंतु गांधी के आंगन में बैठकर सावरकर के महिमामंडन का प्रयास बेहद स्तरहीन है। पूरी दुनिया जानती है कि विनायक दामोदर सावरकर की गांधी हत्या की साजिश में प्रत्यक्ष संलिप्तता रही है। कपूर कमीशन ने इस तथ्य को रेखांकित भी किया है। हम गांधीजन, गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति की पत्रिका में सावरकर के स्तुति गान से क्षुब्ध हैं और इस अंक को आधिकारिक रूप से वापस लेने की अपेक्षा रखते हैं।

हर घर संविधान – नागरिक आजादी को बनाए रखने का संकल्प : किसी भी देश के जीवन में कभी-कभी अत्यंत कठिन दौर आता है, आज हम उसी दौर में हैं। चारों तरफ निराशा है और जनमन हताश है। युवाओं का यह देश अब युवा बेरोजगारों के देश में बदलता जा रहा है। महंगाई की मार से आमजन त्रस्त है। प्राकृतिक संसाधनों को लूटा जा रहा है एवं लाभकारी सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को औने-पौने भाव पर कुछ चुनिंदा पूंजीपतियों, व्यापारियों को सौंपा जा रहा है। कृषि क्षेत्र को कॉरपोरेट के हवाले करने की साजिश चल रही है और किसानों-गरीबों को पालतू बनाने की कोशिश जारी है। लोकतंत्र के स्थान पर धर्मतंत्र की स्थापना का प्रयास किया जा रहा है, धार्मिक वैमनस्य का वातावरण बनाया जा रहा है। सामाजिक न्याय के लिए संघर्षरत कार्यकर्ताओं को जांच एजेंसियों और संवैधानिक संस्थाओं, निकायों के जरिये अनुचित तरीकों से हतोत्साहित किया जा रहा है। तीस्ता सीतलवाड़, हिमांशु कुमार, मेधा पाटकर, मुहम्मद जुबेर जैसे साथी दमन के ताजा उदाहरण हैं। ये समस्याएं नहीं, चुनौतियां हैं, इनसे देश की जनता को मुक्त कराना हमारा दायित्व है और इस दायित्व के निर्वाह के सूत्र स्वतंत्रता आंदोलन और संविधान की प्रस्तावना में वर्णित मूल्यों में समाहित हैं। स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व, धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद आदि मूल्य सिर्फ भारत ही नहीं, पूरी मानवता के आदर्श हैं। भारत के संविधान में इन मूल्यों को मौलिक अधिकारों के रूप में दर्ज किया गया है। ये वैसे अधिकार हैं, जो जन्म से ही हर नागरिक को प्राप्त हैं और जिन्हें कोई भी नहीं छीन सकता। आज की सरकार और सरकार द्वारा संचालित संस्थाएं नागरिक अधिकारों के दमन पर आमादा हैं। पर, हमारा संविधान और स्वतंत्रता आंदोलन के मूल्य हमारे लिए कवच की तरह हैं। हमारा लक्ष्य है कि हर एक घर तक संविधान की पहुंच हो, हर मस्तिष्क इससे प्रेरित हो और हर संस्था इससे संचालित हो। हम नागरिक अधिकारों के दमन का प्रतिवाद भी करेंगे और अपने मूल्यों-आदर्शों को समाज द्वारा आत्मसात कर लिए जाने तक अपने अभियान को भी जारी रखेंगे।

हम आजादी के 75वें वर्ष में हैं। यह हमारी आजादी के सफर का एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। इस अवसर को उल्लासपूर्ण समारोहों के द्वारा आज़ादी के आंदोलन के मूल्यों और संकल्पों को फिर से याद करने, उनसे प्रेरित होने और राष्ट्र को पुनर्नियोजित करने में लगाना है। अफसोस की बात है कि इस मौके को भी हम दिखावटी कार्यक्रमों में बदल देना चाहते हैं। उदाहरण के तौर पर तिरंगे के लिए खादी की अनिवार्यता समाप्त कर कॉरपोरेट से झंडे मंगाए जा रहे हैं। हर घर तिरंगा तो फहर जाएगा, पर तिरंगे का समावेशी विचार, खादी की आत्मनिर्भरता का पैगाम तो धरा का धरा ही रह जाएगा। इसलिए हम गांधीजनों का यह संकल्प है कि हर घर तिरंगा अवश्य फहराया जाए, पर वह खादी का हो, विचारविहीन कपड़े के टुकड़े का नहीं।

सर्व सेवा संघ, अपने सहमना संगठनों के साथ अगस्त क्रांति की प्रेरणा से अनुप्राणित होकर पूरे देश में महा जनजागरण यात्रा का प्रारंभ कर रहा है। हम आजादी के 75 वें वर्ष को रस्मी कार्यक्रमों के रूप में नहीं, बल्कि जीवंत संकल्पों में बदल देना चाहते हैं। 9 अगस्त से शुरू हो रहे हमारे राष्ट्रीय अभियान के आगामी चरण इस प्रकार होंगे –

पहला चरण : 9 अगस्त से 15 अगस्त – दिल्ली में संकल्प सत्याग्रह और देश भर में चरखा चलाओ अभियान, स्वतंत्रता दिवस पर सुबह 9 बजे से 11 बजे तक चरखा अभियान।
दूसरा चरण : 11 सितंबर विनोबा निर्वाण दिवस से से 11 अक्टूबर लोकनायक जयप्रकाश जयंती – जिले और राज्य स्तर पर पदयात्रा या वाहन यात्रा, चर्चा, गोष्ठियां, युवाओं तथा महिलाओं के साथ विमर्श।
तीसरा चरण : 15 नवंबर से 10 दिसंबर मानवाधिकार दिवस – जिले और राज्य स्तर पर ज्योर्तिपुंज (हमारे वे पूर्वज, जिन्होंने इंसानियत को बचाये रखने के लिए अपना जीवन बलिदान किया) को सम्मानित करना, पत्रकार वार्ता, मानवाधिकार दिवस पर राज्य स्तरीय सम्मेलन।
चौथा चरण : 23 दिसंबर राष्ट्रीय कृषक दिवस से 30 जनवरी गांधी निर्वाण दिवस – देश भर में वाहन यात्रा का आयोजन, गांधी शहादत दिवस पर सेवाग्राम आश्रम में समापन।

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