स्वदेशी आंदोलन में महिलाएं थीं आगे

महात्मा गांधी महिलाओं की शक्ति और उनके सामथ्र्य को अच्छी तरह समझते थे, उन्हें पता था कि स्वतंत्रता आंदोलन की संघर्ष यात्रा महिलाओं के बिना पूरी नहीं हो सकती है। 1920 में जब असहयोग आंदोलन शुरू हुआ तब जगह-जगह गांधी ने भाषण दिया था। उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद भी उनका आना हुआ। इलाहाबाद आने से पहले उन्होंने काशी में 27 नवंबर 1920 को हिंदू विश्वविद्यालय के उपकुलपति आनंद शंकर बापूभाई ध्रुव की अध्यक्षता में सार्वजनिक सभा की थी। 28 नवंबर 1920 को इलाहाबाद आकर मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में एक सार्वजनिक सभा करने के बाद अगले ही दिन 29 नवंबर को महिलाओं की एक सभा की। इस सभा में उन्होंने कहा कि आप अपने पतियों और पुत्रों से अनुरोध करें और उन्हें प्रोत्साहन दें कि वह अपने कर्तव्य के पथ पर चलें तथा स्वयं स्वदेशी को अपनाकर भारत के निर्माण में प्रभावकारी सहायता दें। रावण के राज्य में सीता को भी 14 साल तक वल्कल वसन पहन कर रहना पड़ा था। इसी तरह भारतीय महिलाओं को भी हाथ के बुने हुए खद्दर का कपड़ा पहनना अपना कर्तव्य बना लेना चाहिए।


स्वदेशी स्वराज्य प्राप्त करने का एक अमोघ उपाय है और उसके प्रचार का मुख्य भार भारतीय स्त्रियों पर ही है। महात्मा गांधी का भाषण सुनने के बाद महिलाओं में बहुत परिवर्तन आया। कई महिलाओं ने तो अपने आभूषण उतार कर राष्ट्रीय कार्य में दे दिया। स्वदेशी की शपथ लेने में भी महिलाओं ने काफी उत्साह दिखाया। महात्मा गांधी लोगों को समझाना चाहते थे कि केवल स्वदेशी के द्वारा ही स्वराज की प्राप्ति हो सकती हैं। गांधी ने जितना पुरुषों को चेताया उतना ही महिलाओं को भी जगाया।


1921 में 8 मई का दिन था। गांधीजी मोतीलाल नेहरू की बेटी सरूप नेहरू (विजय लक्ष्मी पंडित) के विवाह में शामिल हुए थे, साथ में कस्तूरबा गांधी भी थी। विवाह संपन्न हो जाने के बाद 10 मई को इलाहाबाद में जिला सम्मेलन हुआ। इस सम्मेलन में कस्तूरबा गांधी के साथ ही अन्य महिलाएं भी शामिल थी। इसी वर्ष 9 अगस्त को कानपुर में महिलाओं की सभा को संबोधित करने के बाद गांधी जी 10 अगस्त की सुबह इलाहाबाद पहुंचे। सबसे पहले उन्होंने महिलाओं की सभा की। इस सभा में स्वदेशी पर भाषण दिया और विदेशी वस्तुओं का त्याग करके खादी पहनने और सभी महिलाओं से चरखा चलाने की अपील की। महात्मा गांधी के अहिंसक विचारधारा से प्रभावित होकर महिलाओं ने स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया।


महिलाओं को लेकर उस समय समाज में बहुत कुरीतियां थी, फिर भी घर की चारदीवारी से बाहर निकल कर महिलाओं ने नेतृत्व संभाला और स्वराज और स्वदेशी के लिए अपनी क्षमता के अनुसार सब कुछ न्योछावर कर दिया। महात्मा गांधी महिलाओं के अंदर व्याप्त करुणा, त्याग और तपस्या को अच्छी तरह से समझते थे। महिलाओं ने स्वतंत्रता आंदोलन में खुद के अस्तित्व को समझा और देश के लिए खुद को समर्पित भी कर दिया। गांधी के तर्कसंगत प्रभावशाली भाषण से महिलाएं इस कदर प्रभावित रहती थी कि गांधी के इलाहाबाद आने पर अधिकांश महिला कार्यकर्ता सब काम छोड़ कर सबसे पहले उनके भाषण को सुनकर उन्हें आत्मसात करती थी और स्वराज व स्वदेशी के लिए दुल्हन भी संघर्ष यात्रा में चल पड़ती थी।

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