मैं जो खोज रहा था, सामाजिक क्रांति का वह तरीका मुझे गांधी के विश्लेषण में मिला -मार्टिन लूथर किंग जूनियर

रमेश शर्मा

मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने मई 1958 में एक किताब लिखी ‘Stride Towards Freedom’ जो हिंदी में ‘आजादी की मंज़िलें’ नाम से उपलब्ध है. अनुवाद किया है सतीश कुमार ने. भारत में यह किताब 1966 में प्रकाशित हुई. इसमें किंग ने एक बड़े सत्याग्रह की कहानी लिखी, जो गोरों और कालों के बीच भेदभाव बरतने वाली व्यवस्था के बदलाव की कहानी है. उन्होंने लिखा कि यह मेरे व्यक्तिगत विचार हैं। पचास हजार नीग्रो लोगों ने अपने हृदय में अहिंसा के सिद्धांत को अपनाकर मॉण्टगोमरी की यह कहानी रची. वे लिखते हैं-

“यह उनकी कहानी है, जिन्होंने प्रेम के शस्त्र से अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ने का अभ्यास किया। यह उनकी कहानी है, जिन्होंने मानवीय दृष्टि से स्वयं अपना ही मूल्यांकन करना सीखा। यह उन नीग्रो नेताओं की कहानी है, जिनके सिद्धांत और विश्वास अलग-अलग थे, पर जो न्याय एवं वास्तविक अधिकारों के लिए एकसूत्र में बंध गये थे।

गांधी को पढ़ने के बाद मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने अमेरिका में क्रांति का बिगुल बजा दिया

यह उन संघर्षशील नीग्रो कार्यकर्ताओं की कहानी है, जिनमें बहुत से प्रौढ़ अवस्था को भी पार कर चुके थे, फिर भी जो इस आन्दोलन को सफल करने के लिए दस-दस, बारह-बारह मील पैदल चलते थे और जिन्होंने रंगभेद के सामने समर्पण करने की अपेक्षा साल भर तक पैदल चलने के कष्ट को बेहतर माना। यह उन नीग्रो लोगों की कहानी है, जो बहुत गरीब थे, अशिक्षित थे, फिर भी जिन्होंने रंगभेद-विरोधी आन्दोलन के महत्त्व को हृदयंगम कर लिया था। यह उन वृद्ध महिलाओं की कहानी है, जिनमें से एक ने कहा कि “भले ही मेरे पैर थककर चूर हो गये हैं, पर मेरी आत्मा को सुख मिल रहा है।” यह उन रंगभेदवादी श्वेतांग नागरिकों की कहानी है, जिन्होंने हर कीमत पर मानवमात्र की समानता का विरोध किया, साथ ही यह उन उदार श्वेतांग नागरिकों की भी कहानी है, जिन्होंने नीग्रो लोगों के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर अन्यायपूर्ण रंगभेद का साहस के साथ विरोध किया।”

विश्व में हुए अहिंसक आन्दोलनों में इसका महत्त्वपूर्ण स्थान है। हम सभी को इससे प्रेरणा मिल सकती है। हम इससे अनेक सबक सीख सकते हैं। शांति, अहिंसा, लोकतंत्रात्मक प्रयास, जन शक्ति, संकल्प, समर्पण, समझदारी, मानवीय संवेदना, सत्य, सत्याग्रह को जानने, समझने, सीखने-सिखाने, अपनाने में इस आन्दोलन की कहानी मददगार साबित हो सकती है। 

लगते तो थे दुबले बापू, थे ताकत के पुतले बापू

हमारे लिए यह जानना महत्वपूर्ण है कि इस आन्दोलन पर हमारे राष्ट्रपिता बापू के विचारों का भी बड़ा प्रभाव रहा, जिसके कारण मार्टिन लूथर किंग जूनियर को अमेरिका के गांधी के रूप में देखा गया। गांधी जी की तरह उनकी भी हत्या की गई। गांधी जी को अपनी छाती पर गोलियां सहनी पड़ी और किंग को बम धमाके से समाप्त किया गया। सत्य, अहिंसा, सत्याग्रह का सफल प्रयोग दोनों के द्वारा किया गया।

मार्टिन लूथर किंग ने स्वयं लिखा कि “एक रविवार की दोपहर को मैं हॉवर्ड विश्वविद्यालय के अध्यक्ष मोदेंकाई जानसन का प्रवचन सुनने के लिए फिलाडेल्फिया गया। वे वहां पर फिलाडेल्फिया के फेलोशिप हाउस के लिए व्याख्यान देने वाले थे। डॉ जानसन हाल ही में भारत की यात्रा करके लौटे थे और मेरे लिए बड़ी दिलचस्पी की बात यह थी कि वे महात्मा गांधी के जीवन और विचारों के संबंध में बोले। उनका व्याख्यान इतना प्रभावोत्पादक और बिजली की तरह झकझोर देने वाला था कि सभा समाप्त होते ही मैंने गांधी के जीवन और काम के संबंध में आधा दर्जन पुस्तकें खरीद डालीं।

बहुत से और लोगों की तरह मैंने भी गांधी का नाम सुना था, लेकिन उनके संबंध में गम्भीरता से कभी अध्धयन नहीं किया था। जब मैंने उनके संबंध में पुस्तकें पढ़ीं, तो उनके अहिंसात्मक और प्रतिकारमूलक आन्दोलनों से मैं सम्मोहित हो गया। खासतौर से नमक सत्याग्रह के लिए की गयी उनकी यात्रा और उनके अनेक उपवास की बातों से मैं बहुत ही प्रभावित हुआ। सत्याग्रह का पूरा विचार मेरे लिए अत्यन्त असाधारण महत्त्व का था। ज्यों ही मैंने गांधी- दर्शन में गहरा गोता लगाया, त्यों ही प्रेम की शक्ति के बारे में संदेह दूर होने लगे और मैं पहली बार यह अच्छी तरह देख सका कि सामाजिक सुधारों के क्षेत्र में प्रेम के सिद्धांत का प्रभावशाली उपयोग हो सकता है।

गांधी को पढ़ने के पहले मैं इस नतीजे पर लगभग पहुंच चुका था कि ईसामसीह के सिद्धांत केवल व्यक्तिगत संबंधों तक ही प्रभावकारी हो सकते हैं। ‘अगर तुम्हारे एक गाल पर कोई थप्पड़ मारता है तो दूसरा गाल आगे कर दो’ और ‘अपने दुश्मनों से भी प्यार करो’ का आदर्श केवल तभी उपयोगी हो सकता था, जब संघर्ष एक दो व्यक्तियों के बीच ही सीमित हो, लेकिन गांधी-साहित्य पढ़ने के बाद मैंने देखा कि मैं कितना गलत था। गांधी शायद इतिहास का पहला व्यक्ति था, जिसने ईसामसीह के प्रेम के संदेश को दो व्यक्तियों के बीच से ऊपर उठाकर उसे व्यापक पैमाने पर शक्तिशाली तथा प्रभावकारी सामाजिक शस्त्र बनाया। गांधी के लिए प्रेम एक ऐसा शक्तिशाली हथियार था, जिसके द्वारा सामाजिक और सामूहिक जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन लाया जा सकता है। मैं जिस चीज को महीनों से खोज रहा था, सामाजिक क्रांति का वह तरीका मुझे गांधीवादी प्रेम और अहिंसा के विश्लेषण में प्राप्त हुआ। जैसा बौद्धिक और आध्यात्मिक संतोष मुझे गांधी के अहिंसात्मक प्रतिकार के सिद्धांत में प्राप्त हुआ, वैसा बेंथम और मिल के उपयोगितावाद (युटीलिटेरियनिज्म) में, अथवा मार्क्स और लेनिन के क्रांतिकारी साम्यवाद में, अथवा हॉब्स (Hobbes) के सामाजिक समझौतावाद (सोशियल-कंट्राक्ट्स थ्योरी) में अथवा रूसो के ‘प्रकृति की ओर’ वाले आशावाद में, अथवा नीत्शे के अतिमानववाद (सुपरमैन फिलोसफी) में भी प्राप्त करने में मैं असफल रहा था।

मैं यह अनुभव करने लगा कि शोषित जन-समुदाय के पास आजादी के संघर्ष के लिए गांधी का तरीका ही एक नैतिक और व्यावहारिक दृष्टि से पक्का तरीक़ा है। अहिंसा मेरे लिए केवल बौद्धिक तर्क-वितर्क का विषय नहीं रह गयी थी, बल्कि एक जीवन-पद्धति के रूप में मैं उसके साथ बंध गया था। अहिंसात्मक प्रतिकार कायर लोगों द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला तरीक़ा नहीं है, बल्कि इसमें प्रतिकार की महान शक्ति निहित है। अगर कोई व्यक्ति अहिंसा के तरीकों का इस्तेमाल भयभीत होकर अथवा हिंसात्मक साधनों के अभाव में करता है, तो वह अहिंसक नहीं है। गांधी ने कहा है कि अगर हिंसा का विकल्प कायरता ही है, तो उस कायरता की अपेक्षा हिंसा अथवा लड़ना ही बेहतर है। समुदाय किसी भी गलत साधन के सम्मुख आत्मसमर्पण नहीं करे। 

अहिंसा का विरोध बुराई की शक्तियों पर होता है, न कि उन व्यक्तियों पर जो संयोग से उस बुराई के आचरण में फंसे हुए हैं। हमारे शहर में असली तनाव गोरों और कालों के बीच नहीं है, बल्कि न्याय और अन्याय के बीच में है, प्रकाश और अंधकार की शक्तियों के बीच है। इसलिए विजय न्याय और प्रकाश की शक्तियों की होगी न कि नीग्रो लोगों की। इस विचार को मानने वाला बदला लेने की भावना के बिना हर तरह की तकलीफों को सहन करने के लिए तैयार रहता है। वह अपने प्रतिपक्षी से, बिना बदले में चोट पहुंचाये ही, चोटें बरदाश्त करने की भी तैयारी रखता है। अहिंसक  हिंसा नहीं करता। बुनियादी महत्त्व की चीजें केवल तर्क-वितर्क से प्राप्त नहीं की जा सकती, बल्कि वे अनेक कष्ट सहन करने के माध्यम से ही खरीदी जा सकती है। ऐसा गांधी ने कहा है। प्रतिपक्षी का हृदय बदलने के लिए वन्य-न्याय से ज्यादा शक्तिशाली उपाय है। अहिंसा के दर्शन के केन्द्र में प्रेम का सिद्धांत निहित है।”

देश-दुनिया में ऐसे अनेक उदाहरण हमारे सामने है। इनको याद करने, देखने, समझने, सोचने, जानने, अपनाने, इनसे मार्गदर्शन, प्रेरणा, सबक लेने की आज नितांत आवश्यकता महसूस हो रही है। भगवान, प्रकृति हमें शक्ति, साहस, सद्बुद्धि प्रदान करे। आओ मिलकर सोचें समझें।

Co Editor Sarvodaya Jagat

2 thoughts on “मैं जो खोज रहा था, सामाजिक क्रांति का वह तरीका मुझे गांधी के विश्लेषण में मिला -मार्टिन लूथर किंग जूनियर

  1. गांधी शायद इतिहास का पहला व्यक्ति था, जिसने ईसामसीह के प्रेम के संदेश को दो व्यक्तियों के बीच से ऊपर उठाकर उसे व्यापक पैमाने पर शक्तिशाली तथा प्रभावकारी सामाजिक शस्त्र बनाया। गांधी के लिए प्रेम एक ऐसा शक्तिशाली हथियार था, जिसके द्वारा सामाजिक और सामूहिक जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन लाया जा सकता है। मैं जिस चीज को महीनों से खोज रहा था, सामाजिक क्रांति का वह तरीका मुझे गांधीवादी प्रेम और अहिंसा के विश्लेषण में प्राप्त हुआ।

    1. मार्टिन लूथर किंग जूनियर का बयान था यह।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

विनोबा सेवा आश्रम, शाहजहांपुर को वर्ष 2021 का डॉक्टर स्वामी राम मानवता पुरस्कार

Tue Nov 2 , 2021
गांधी विनोबा जी के सिद्धांतों हेतु 40 वर्ष से समर्पित संस्था विनोबा सेवा आश्रम बरतारा शाहजहांपुर को वर्ष 2021 का डॉक्टर स्वामी राम मानवता पुरुस्कार मिलेगा। भारत देश में आर्थिक, पर्यावरण,विज्ञान संबंधी,सामाजिक व आध्यात्मिक क्षेत्र में समाज के लिए उत्कृष्ट कार्य करने वाली किसी एक प्रतिष्ठित संस्था अथवा व्यक्ति को […]

You May Like

क्या हम आपकी कोई सहायता कर सकते है?