जन-मन
जल ही जीवन है, यह कहना ही पर्याप्त नहीं है. अपने तथा आने वाली पीढ़ियों के जीवन को सुरक्षित रखने के लिए जल को संरक्षित करने के बारे में अनुसंधान, चिन्तन तथा परिश्रम करना होगा। जल का प्रमुख स्रोत वर्षा है। वर्षा का अधिकांश जल जो हम उपयोग नहीं कर पाते, नदियों नालों के द्वारा वापस समुद्र में चला जाता है, बहुत थोड़ा-सा हिस्सा ही कच्ची जमीन के माध्यम से पृथ्वी की कोख में जमा होता रहता है। जैसे-जैसे विज्ञान ने विकास की सीढ़ियां चढ़ीं, प्रकृति के अन्य संसाधनों की तरह हजारों वर्षों से भूगर्भ में संरक्षित जल का एक बहुत बड़ा हिस्सा हमने कुछ ही वर्षों में समाप्त कर दिया है। यही नहीं, विकास के नाम पर हर स्थान को सीमेंटेड पक्का कर देने के कारण हमने वर्षा के जल को भूगर्भ में जाने के लगभग हर रास्ते को बंद कर दिया। अगर भूगर्भ जल प्रबंधन के बारे में गंभीरता से प्रयत्न नहीं किए गए तथा भूगर्भ के जल को इस्तेमाल करने की यही गति रही तो निश्चित मानिए, आने वाली पीढ़ियां प्यासी रहने के लिए बाध्य होंगी।
भूगर्भ जल को बिना किसी प्रदूषण के संचित करने का एकमात्र साधन हमारे तालाब थे, जो कब्जे या फिर मात्र मनोरंजन के साधन बनकर रह गए। यद्यपि सरकार ने इसका संज्ञान लिया है, परंतु इतना ही पर्याप्त नहीं है। सामाजिक संगठनों एवं युवा शक्ति को स्वयं फावड़ा उठाकर मैदानों की और कूच करना होगा। वृक्षारोपण की तरह ही जहां कहीं भी स्थान मिले, बरसात से पहले ही छोटे-छोटे तालाब खोद लेने चाहिए. गांवों में भी बड़ी जोत के किसानों को अपने खेत का एक हिस्सा छोटे तालाब में बदल देना चाहिए। तालाब खोदते समय सिर्फ इतना ध्यान रखना है कि हम खुदाई रेत निकलने तक करें, बीच में न छोड़ें, उसके बाद धरती मां शेष काम स्वयं कर लेंगी।
साथियों, हमारे पूर्वज लोक कल्याण के लिए तालाब, कुएं, बावड़ी आदि का निर्माण कराते थे, जगह-जगह प्याऊ और नल लगवाते थे। अभी भी अगर हम चाहें, तो बिना अधिक संसाधन लगाये, तालाबों के पुनर्जीवन के लिए चल रहे श्रमदान कार्यक्रमों से जुड़कर इस पुण्य का लाभ उठा सकते हैं।
-राज नारायण