देश की बहुलतावादी संस्कृति खतरे में है! बड़ी है सर्वोदय समाज की जिम्मेदारी!

सर्व सेवा संघ और सर्वोदय समाज की स्थापना का 75 वां वर्ष

सर्व सेवा संघ की स्थापना
डॉ.राजेन्द्र प्रसाद की अध्यक्षता में 13 से 15 मार्च 1948 को सेवाग्राम में सम्मेलन हुआ. इसी सम्मेलन में ‘सर्वोदय समाज’ और ‘सर्व सेवा संघ’ की स्थापना हुई थी.

रचनात्मक संघों का एकीकरण
गांधी विचार में विश्वास रखने वाले और रचनात्मक कार्यों से जुड़े हुए संगठनों, संघों के एकीकरण की बात सम्मेलन में आयी. इसके पीछे भावना यह थी कि हर संगठन अपने काम से जुड़ा है. कोई खादी लेकर, कोई ग्रामोद्योग लेकर, ऐसे ही कोई गोसेवा, कोई हरिजन सेवा, कोई आदिवासी सेवा, नारी विकास, शांति सेना, हिंदुस्तानी प्रचार, अस्पृश्यता निवारण, रोगी सेवा, बुनियादी तालीम, सफाई एवं स्वास्थ्य तथा गांधी साहित्य के प्रकाशन आदि काम चल रहे हैं. ये सारे काम गांधी जी के रचनात्मक कार्यक्रम के अंग हैं. इन संघों का यदि एकीकरण कर दिया जाय तो रचनात्मक काम को ताकत और गति मिलेगी, एक दूसरे के बीच सूझबूझ और सहयोग बढ़ेगा, इसी सोच से प्रेरित होकर रचनात्मक संघों का एकीकरण किया गया.

उद्देश्य
सर्व सेवा संघ और सर्वोदय समाज की स्थापना का उद्देश्य सत्य और अहिंसा की बुनियाद पर एक ऐसे वैकल्पिक समाज की रचना करना था, जिसमें किसी का शोषण न हो. इस दृष्टि से नागरिकों को ग्राम्य जीवन के संस्कार में ढालने और ग्राम्य जीवन के सभी हिस्सों का विधायक कार्य द्वारा विकास करने के काम हाथ में लिए गये, जिससे ग्रामीणों का दारिद्र्य और अज्ञान आदि दूर हो.

इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए जो कार्यक्रम तय किये गये, वे इस प्रकार हैं–
कार्य : 1. सांप्रदायिक एकता 2. जातिभेद-निराकरण 3. खादी व अन्य ग्रामोद्योग 4. नई तालीम 5. गोसेवा 6. समाज में स्त्री-पुरुष की समान प्रतिष्ठा 7. आर्थिक समानता 8. आदिम जातियों की सेवा 9. विद्यार्थी-संगठन 10. प्राकृतिक चिकित्सा 11. अस्पृश्यता-निवारण 12. नशा-बंदी 13. ग्राम-सफाई 14. खेती की तरक्की 15. आरोग्य और स्वास्थ्य 16. देश की भाषाओं का विकास 17. हिन्दुस्तानी का राष्ट्रभाषा के तौर पर प्रचार 18. मजदूरों की उन्नति 19. कुष्ठ रोगियों की सेवा 20. संकट-निवारण और दुखियों की सेवा 21. प्रांतीय संकीर्णता का निवारण 22. मजदूर संगठन, 23. प्राकृतिक चिकित्सा आदि.

सर्व सेवा संघ में समाहित संस्थाओं के नाम – महात्मा गांधी के वैचारिक मार्ग पर काम करने वाली ऐसी दस संस्थाएं थीं, जिनके उद्देश्य और काम समान थे, उन्हीं को एक में मिलाकर सर्व सेवा संघ बनाया गया.
1. अखिल भारत चरखा संघ, सेवाग्राम, वर्धा
2. अखिल भारत ग्रामोद्योग संघ, मगनवाड़ी, वर्धा
3. गोसेवा संघ, गोपुरी, वर्धा
4. हिन्दुस्तानी तालीमी संघ, सेवाग्राम, वर्धा
5. हिन्दुस्तानी प्रचार सभा, काकावाड़ी, वर्धा
6. नवजीवन कार्यालय, कालूपुर, अहमदाबाद
7. हरिजन सेवक संघ, किंग्सवे कैम्प, दिल्ली
8. पश्चिम भारत आदिवासी कार्यकर्त्ता संघ, दाहोद, गुजरात
9. हिन्दुस्तानी मजदूर संघ, अहमदाबाद
10. अखिल भारत प्राकृतिक चिकित्सा निधि, तालीवाड़ा रोड, पूना
बाद में भी समय-समय पर अनेक संस्थाओं का उनकी सारी संपत्ति के साथ सर्व सेवा संघ में विलय हुआ-
संस्था का नाम विलय की तिथि
1. अखिल भारत गो-सेवा संघ – 11-10-1950
2. अखिल भारत ग्रामोद्योग संघ – 6-11- 1950
3. महारोगी सेवा मंडल, दत्तपुर – 7-12-1952
4. अखिल भारत चरखा संघ – 8-3-1953
5. सेवाग्राम आश्रम – 1954
6. हिन्दुस्तानी तालीमी संघ – 9-6-1956

उपर्युक्त सारी संस्थाएं गांधी सेवा संघ द्वारा प्रेरित थीं. गांधी सेवा संघ की नीति एवं कार्यशैली संस्थाओं को खड़ा करने, उनकी मदद करने और उन्हें स्वावलंबी बनाकर स्वायत्त कर देने की थी.

संस्था-समन्वय के नियम : सर्व सेवा संघ सलाहकार मंडल न रहकर एक कार्यकारी संघ होगा, जो सम्बंधित संघों की कार्य-स्वतंत्रता को अबाधित रखते हुए जनता में समग्र-दृष्टि से सीधे केन्द्र खोलेगा और चलायेगा, सब संघों का समन्वय करेगा व सबको मार्गदर्शन देगा.
(ख) सर्व सेवा संघ के उद्देश्य से जो सहमत हो और ऊपर के विधायक कार्यों में से एक या अनेक कार्य करती हो, ऐसी कोई भी अखिल भारतीय स्वरूप की संस्था सर्व सेवा संघ से जुड़ना चाहेगी, तो सर्व सेवा संघ को अधिकार होगा कि वह उसे अपने साथ जोड़ ले.
(ग) सम्बंधित संस्था अपने कार्यक्षेत्र में कार्य करने के लिए स्वतंत्र रहेगी. उसे साधारण नीति के बारे में सर्व सेवा संघ का मार्गदर्शन मानना होगा और सभी संस्थाओं के समन्वय की नीति का पालन करना होगा.
(घ) संबंधित संस्था द्वारा नामजद किया हुआ संस्था का एक प्रतिनिधि सर्व सेवा संघ का सभासद रहेगा, बशर्ते कि सभासदों की संख्या मर्यादा से अधिक न बढ़े.

सर्व सेवा संघ के बारे में विनोबाजी का विचार :
सर्व सेवा संघ एक कार्यवाही संघ है. हमें करना इतना ही है कि जहां-जहां हमारे पहचान के लोग हों, वहां काम की दृष्टि से हम उनको संगठन बनाने की प्रेरणा दें.

सर्व सेवा संघ के 75 साल
15 मार्च 1948 को सर्व सेवा संघ की स्थापना से लेकर आज तक संघ नयी अहिंसक समाज रचना की दृष्टि से एक तरफ आन्दोलन और दूसरी तरफ रचनात्मक काम हाथ में लेकर चलता रहा है. आचार्य विनोबा भावे के नेतृत्व में भूदान-ग्रामदान आन्दोलन भूमिहीनों के लिए वरदान बना. करीब 48 लाख एकड़ जमीन भूदान में मिली. उसमें से बड़ी मात्र में जमीन का भूमिहीनों के बीच बंटवारा हुआ. कुछ जमीन अभी भी बंटनी शेष है. लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में 70 के दशक में जो सम्पूर्ण क्रांति आन्दोलन हुआ, उसका मूल लक्ष्य था लोकतंत्र को बचाना. इन दो बड़े आन्दोलनों के अलावा बांग्लादेश मुक्ति आन्दोलन को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ले जाने में अहम भूमिका पालन निभाई. विनोबा और जयप्रकाश के नेतृत्व में चम्बल घाटी के बागियों का आत्मसमर्पण, परमाणु अस्त्रों के खिलाफ विश्व जनमत बनाने के लिए प्रचार-प्रसार, तिब्बत के लिए आन्दोलन, पर्यावरण संरक्षण के लिए चिपको आन्दोलन, गोरक्षा आन्दोलन, नागालैंड, असम, पंजाब, ओड़िशा के साम्प्रदायिक तथा जातीय दंगों के परिप्रेक्ष्य में शांति की पहल, तो दूसरी तरफ ग्रामस्वराज, नयी तालीम प्राकृतिक चिकित्सा, शांति सेना, खादी ग्रामोद्योग, महारोगी सेवा, नशाबंदी, बाढ़, भूकंप, सुनामी आदि प्राकृतिक आपदाओं तथा कोरोना महामारी में पीड़ितों की सेवा, बांग्लादेश शरणार्थियों के बीच सेवा, गांधी साहित्य प्रचार-प्रसार, महिला सशक्तिकरण, युवा प्रशिक्षण आदि कार्यक्रम चलाए जाते रहे हैं. इसके अलावा आजकल नदी बचाओ, जल-जंगल-जमीन बचाओ, कॉर्पोरेट अतिक्रमण के खिलाफ सक्रिय प्रतिरोध, सजीव खेती तथा किसान आन्दोलन के समर्थन में सर्वोदय कार्यकर्ता अनवरत सक्रिय रहे हैं.

आगे की योजना
आगे भी हमारे सामने बहुत से काम करने की अनेक योजनाएं हैं. यूक्रेन पर रशिया का बर्बर आक्रमण दुनिया के शांति आन्दोलनों के सामने एक अशुभ संकेत है. हमारे देश के अन्दर जिस प्रकार संविधान पर हमला हो रहा है, बहुलतावादी संस्कृति पर जिस ढंग से हमला जारी है, साम्प्रदायिक राजनीति को बढ़ावा दिया जा रहा है. इस विषय पर हम लोगों को गहराई से सोचने और कार्यक्रम तय करने की जरूरत है. जिस ढंग से दलित, अल्पसंख्यक, आदिवासी जनजातियों और पिछड़े हुए समाज पर बीच-बीच में आक्रमण हो रहे हैं, धर्म और जाति के नाम पर समाज का बंटवारा करने के प्रयास हो रहे हैं, उस पर सघन रूप से काम करने की जरूरत है. इसी लक्ष्य की दिशा में सर्व सेवा संघ, प्रदेश सर्वोदय मंडलों तथा अन्य गांधीवादी संगठनों को आगे की ठोस योजना बनाकर काम करना है.

सेवाग्राम में हुई सर्वोदय समाज की स्थापना
सन बयालीस के कारावास से रिहा होने के बाद बापू खुद इस प्रकार का एक सम्मेलन करने का विचार कर रहे थे, लेकिन कई कारणों से उनके जीवित रहते यह नहीं हो सका. दिसंबर 1947 में बापू से बात करने के बाद यह सम्मेलन फरवरी के प्रथम सप्ताह में वर्धा में करने का तय किया गया था, लेकिन वह भी नहीं हो सका, क्योंकि तबतक बापू को हमसे छीन लिया गया था. इसी पृष्ठभूमि में मार्च 1948 में यह रचनात्मक कार्यकर्त्ता सम्मेलन बुलाया गया. सम्मेलन का मूल विषय था, ‘मौजूदा परिस्थितियों में रचनात्मक कार्यकर्ताओं का स्थान और उनके कार्य का स्वरूप क्या हो?
13 से 15 मार्च 1948 को सेवाग्राम, वर्धा में बुलाये गये तीन दिन के रचनात्मक कार्यकर्ता सम्मेलन से पहले 11-12 मार्च को दो दिन के लिए सर्वोदय समिति की एक गोष्ठी बुलायी गयी थी. उस गोष्ठी में देश के जाने-माने गांधीजनों में से – डॉ राजेन्द्र प्रसाद, आचार्य विनोबा भावे, पंडित जवाहरलाल नेहरू, काका साहेब कालेलकर, जेसी कुमारप्पा, अन्नासाहेब दास्ताने, श्रीमन्नारायण अग्रवाल, राधाकृष्ण बजाज, शंकरराव देव, आर्यनायकम जी, मौलाना अबुल कलाम आजाद, गोपबंधु चौधरी, प्रफुल्लचन्द्र घोष, विचित्र नारायण शर्मा, रघुनाथ श्रीधर धोत्रे, कृष्णदास जाजू, आशादेवी आर्यनायकम, प्यारेलाल जी, किशोर लाल मश्रूवाला, मगनभाई देसाई, कमलनयन बजाज, मृदुला बहन साराभाई, जेबी कृपलानी, जयप्रकाश नारायण, जी रामचन्द्रन, दादा धर्माधिकारी, देवदास गांधी, जाकिर हुसैन, आरआर दिवाकर, धीरेन्द्र मजूमदार, स्वामी सत्यानन्द, अप्पासाहेब पटवर्धन, संत तुकड़ोजी महाराज, गुलजारीलाल नन्दा, गोकुल भाई भट्ट, ह्रदयनारायण चौधरी, ठक्कर बाप्पा, राजगोपालाचारी, मनमोहन चौधरी, कांति मेहता, सरला बहन साराभाई, सुशीला नैयर, सुचेता कृपलानी, अम्तुस्सलाम, बाबा राघवदास, रामकृष्ण बजाज आदि प्रमुख नेता गण उपस्थित थे.
सन बयालीस के कारावास से रिहा होने के बाद बापू खुद इस प्रकार का एक सम्मेलन करने का विचार कर रहे थे, लेकिन कई कारणों से उनके जीवित रहते यह नहीं हो सका. दिसंबर 1947 में बापू से बात करने के बाद यह सम्मेलन फरवरी के प्रथम सप्ताह में वर्धा में करने का तय किया गया था, लेकिन वह भी नहीं हो सका, क्योंकि तबतक बापू को हमसे छीन लिया गया था. इसी पृष्ठभूमि में मार्च 1948 में यह रचनात्मक कार्यकर्त्ता सम्मेलन बुलाया गया. सम्मेलन का मूल विषय था, ‘मौजूदा परिस्थितियों में रचनात्मक कार्यकर्ताओं का स्थान और उनके कार्य का स्वरूप क्या हो?
13 तारीख को पंडित जवाहर लाल नेहरू और बाबू राजेंद्रप्रसाद द्वारा प्रारंभिक भाषण के बाद किशोरलाल मशरूवाला द्वारा रचनात्मक कार्यकर्ताओं की समस्याओं पर विचार, फिर जवाहरलाल नेहरू का जवाबी भाषण और फिर खुला अधिवेशन, सत्र इस तरह डिजाइन किया गया था. मूल मकसद इस बात पर विचार करना था कि क्या हम आज भी रचनात्मक काम को अहिंसक शक्ति के विकास का कार्यक्रम मानते हैं? सम्मेलन से यह निष्कर्ष भी निकालना चाहते हैं कि अहिंसक समाज निर्माण के लिए काम करने की हमारी पद्धति किस प्रकार होगी? इस काम के लिए क्या किसी केन्द्रीय मार्गदर्शक संगठन की जरूरत हैं? सरकार के साथ संपर्क कैसे होगा? कई लोगों के मन में यह सवाल है कि सरकार की सहायता के बिना रचनात्मक काम कैसे संभव होगा. लेकिन इन विन्दुओं पर गांधीजी के विचार अलग थे. स्वावलंबी होने के लिए वे सरकार से मदद लेने के बजाय वे सरकार की मदद करने की बात करते थे. तो चिंतन का मूल विषय यह था कि अहिंसक समाज के निर्माण में रचनात्मक कार्य की कोई भूमिका है या नहीं? यदि है तो उसका स्वरूप क्या होना चाहिए?

सेवाग्राम रचनात्मक कार्यकर्ता सम्मेलन के अध्यक्ष राजेन्द्र बाबू और किशोरलाल मशरूवाला को सर्वोदय समाज के लिए एक समिति बनाने का अधिकार दिया गया. उन्होंने 24 मार्च 1948 को समिति का गठन किया. इस समिति में शामिल थे-
1. श्री र.श्री.धोत्रे, संयोजक, बजाजवाड़ी, वर्धा
2. श्री सुशीला पै. बजाजवाड़ी, वर्धा
3. श्री धीरेन्द्र मजूमदार, गांधी आश्रम, रनिवां
4. श्री मोतुरी सत्यनारायण, मद्रास
5. श्री रामदेव ठाकुर, पटना
6. श्री ए.वेदरत्नम पिल्लई, वेदारन्यम
7. श्री मनमोहन चौधरी, कटक
8. श्री तिमप्पा नायक, अंकोला
9. श्री बबलभाई प्राण जीवन मेहता, धामणा
10. श्री महेश दत्त मिश्र, हरदा
11. श्री काशीनाथ त्रिवेदी, बड़वानी
12. श्रीमन्नानारायण अग्रवाल, वर्धा
9,10 और 11 मार्च 1949 को राऊ में सर्वोदय समाज का प्रथम सम्मेलन ग्रामसेवा शिक्षण शिविर में हुआ. सम्मेलन के बारे में प्रारंभिक विचार और तयारी करने के लिए उक्त सर्वोदय समिति की 7 मार्च 1949 को राऊ में सम्मेलन स्थन पर बैठक हुई. समिति के सदस्यों में से श्री वेदरत्नम पिल्लई, तिमप्पा नायक, काशीनाथ त्रिवेदी, र.श्री.धोत्रे और मनमोहन चौधरी उपस्थित थे. विनोबा, वल्लभस्वामी, दत्तोबा, अन्नासाहब दस्ताने, गोपबंधु चौधरी, हरिभाऊ मोहनी, कुंदर दीवान, बैजनाथ महोदय, नंदलाल जोशी, दामोदरदास मूंदड़ा और जाजू जी आदि कुछ विशेष लोग आमंत्रित सदस्य के रूप में उपस्थित थे. इस सम्मेलन में ये प्रस्ताव पारित हुए.

प्रस्ताव – एक
तय किया गया है कि गांधीजी की विचारधारा को मानने वालों का एक भाईचारा कायम होगा.
(1) नाम – ‘सर्वोदय समाज’
(2) उद्देश्य – सत्य और अहिंसा पर आधारित एक ऐसा समाज बनाने की कोशिश करना, जिसमें जात पात न हो, जिसमें किसी को शोषण करने का मौका न मिले और जिसमें समूह व व्यक्ति दोनों का सर्वांगीण विकास करने का पूरा अवसर मिले.
(3) बुनियादी सिद्धांत –साध्य की तरह ही साधन की शुद्धि का आग्रह.
(4) कार्यक्रम – इस उद्देश्य को पूरा करने के लिये नीचे लिखे कार्यक्रम अमल में लाये जायें.
1. सांप्रदायिक एकता यानी अलग-अलग मजहबों में
2. अस्पृश्ता-निवारण (छुआछूत न मानना)
3. जाति भेद-निराकरण (जात पात मिटाना)
4. नशा बंदी
5. खादी और दूसरे ग्रामोद्योग (दस्तकारियां)
6. गांव सफाई
7. नयी तालीम
8. स्त्रियों के लिए पुरुषों के बराबर का हक
9. आरोग्य और स्वच्छता
10. देश की भाषाओं का विकास
11. प्रान्तीय संकीर्णता का निवारण यकीन रखने वालों और जमातों के बीच मेल.
12. हिन्दुस्तानी का राष्ट्रभाषा के तौर पर प्रचार
13. आर्थिक समानता
14. खेती की तरक्की
15. मजदूर संगठन
16. आदिम जातियों की सेवा
17. विद्यार्थी-संगठन
18. कुष्ठ रोगियों की सेवा
19. संकट-निवारण और दुखियों की सेवा (समाज में स्त्री-पुरुष की बराबर की प्रतिष्ठा)
20. गो-सेवा
21. प्राकृतिक चिकित्सा
22. इसी तरह के दूसरे काम
(5) सर्वोदय दिन, सर्वोदय मेला और सर्वोदय सम्मेलन- यानी सर्वोदय की अवधारणा का व्यापक प्रचार करने के लिए हर साल,
A. 30 जनवरी को सब जगह सर्वोदय दिन मनाया जाय.
B. 12 फरवरी को गांधीजी की अस्थि-विसर्जन के स्थानों पर मेले लगाये जायं.
C. सदस्यों के आपस के संपर्क और विचार-विनिमय के लिए राष्ट्रीय सप्ताह (6 अप्रैल से 13 अप्रैल) में सम्मेलन किया जाय.
(6) स्वरूप – सर्वोदय समाज का स्वरूप सलाह देने वाली संस्था की तरह होगा, हुकूमत करने वाली संस्था की तरह नहीं.

प्रस्ताव – दो
“यह सम्मेलन आज घोषित करता है कि ‘सर्वोदय समाज’ गांधी जी की विचारधारा को मानने वाले संसार के किसी भी देश के ‘सेवक’ का सदा हृदय से स्वागत करेगा.”

सर्वोदय समाज के बारे में विनोबाजी के विचार
सर्वोदय समाज के नाम से कोई संगठन नहीं होगा. यह भी हो सकता है कि किसी संस्था के 100 सदस्य हैं और वे सारे के सारे सर्वोदय समाज के सदस्य हैं, लेकिन फिर भी वह संस्था सर्वोदय समाज की नहीं होगी. संस्था काम के लिए होनी चाहिए. संस्थाएं चाहें तो हर जगह आपस में मिलकर एक बड़ी संस्था बना लें और इस तरह बढ़ते बढ़ते एक अखिल भारतीय संस्था भी बन सकती है, लेकिन इतना होते हुए भी सर्वोदय समाज के नाम से कोई भी संस्था नहीं बनेगी. संस्था के लोग सर्वोदय समाज के सदस्य हो सकते हैं, लेकिन व्यक्तिगत तौर पर जो व्यक्ति यह प्रतिज्ञा करेगा कि मेरे जीवन में मैं सत्य को कभी नहीं छोडूगा और अहिंसा पर चलने की कोशिश करूंगा, वह सर्वोदय समाज का सदस्य हो सकता है. कोशिश शब्द का प्रयोग मैंने केवल अहिंसा के लिए किया है. सत्य की पहचान हर एक को होती है, इसलिए उसमें कोशिश की गुंजाइश नहीं है. फिर लोग मुझ से पूछते हैं कि इस तरह आपके समाज का कौन सदस्य हो सकता है. मैंने जवाब दिया “अगर सर्वोदय समाज का कोई सदस्य नहीं बना तो वह समाज आसमान में रहेगा. सूर्य आसमान में होता है और पृथ्वी पर रहने वालों को लाभ पहुंचाता है. सर्वोदय समाज में करोड़ों ढोंगी आयेंगे तो भी उनकी कोई कीमत नहीं है, लेकिन सच्चे दिल से प्रयत्न करने वाले थोड़े लोग होंगे तो भी बहुत है. एक बड़े व्यक्ति ने मुझसे पूछा, “एक आदमी लश्कर में काम करता है. वह सर्वोदय समाज का सेवक बनना चाहे तो बन सकता है क्या?” मैंने कहा, “बन सकता है.” एक तरफ से मैं कहूंगा कि स्वाद की दृष्टि से संतरा खाने वाला सर्वोदय समाज का आदर्श सदस्य नहीं बन सकता और दूसरी तरफ कह सकता हूं कि एक शराबी भी सदस्य हो सकता है, बशर्ते कि वह सर्वोदय समाज के उसूलों में श्रद्धा रखता है और उन पर चलने की कोशिश करता है. अगर पतित इस समाज में नहीं आ सकता, ऐसा हम कहेंगे तो वह भी ठीक नहीं है. क्योंकि हम सबको ऊँचे चढ़ना है.

सर्वोदय समाज सम्मलेन का स्वरूप कैसा होगा!
सर्वोदय समाज के स्वरूप के बारे में नेताओं की भिन्न-भिन्न राय थी. कुमारप्पा जी सोचते थे कि यह एक संगठित संस्था’ के रूप में काम करे. विनोबा जी के मन में था कि सर्वोदय सम्मेलन एक मेला जैसा हो. धोत्रे जी के मन में था कि मेले की अपेक्षा कार्यकर्ताओं का सम्मेलन होना अधिक उपयुक्त और लाभदायी होगा. गोपबंधु चौधरी का विचार था कि मेला जैसा भले हो, लेकिन उसका प्रबंध करने वाली एक अच्छी ठोस समिति हो.
सम्मेलन में प्रदर्शनी जोड़ने की बात भी चली ताकि शिक्षा और मनोरंजन दोनों हो सके. कुल मिलाकर ये कि कुछ लोगों को विनोबा जी का सम्मेलन को मेले जैसा स्वरूप देने का विचार सही नहीं लगा. कुछ का विचार था कि मेले में आकर लोग गंदगी फैलायेंगे और भीड़ लगायेंगे, इससे फायदा क्या? कुछ का मानना था कि एक ही जगह पर मेला आयोजित करना विकेंद्रीकरण की भावना के खिलाफ होगा. उसमें विचार विनिमय भी नहीं हो सकेगा. इसलिए 12 फरवरी को अगर अस्थि विसर्जन वाले स्थानों पर मेले लगें तो अधिक अच्छा होगा. 30 जनवरी को सारे देश में जगह-जगह कार्यक्रम होंगे तो हम लोग एक जगह मेले में कैसे जमा हो सकेंगे? अन्नासाहब का कहना था कि सर्वोदय समाज ‘लूज’ तो हो, लेकिन बिलकुल बेढंग का न हो. हमारे आयोजनों में कुछ योजना और पद्धति तो होनी ही चाहिए. इन मेलों में केन्द्रीय प्रदर्शनी हो, प्रचार की कल्पना हो, जिसमें जो लोग अपने जीवन में परिवर्तन लाना चाहते हैं, उनको कुछ सीखने को मिले, केवल जमाव या मनोरंजन के लिए मेला न हो.

‘सर्वोदय’ और ‘समाज’ शब्दों के बारे में विनोबा
‘समाज’ शब्द क्यों?
विनोबा जी ने सर्वोदय ‘समाज’ शब्द रखा है सर्वोदय ‘संघ’ नहीं कहा. यह नाम साहित्यिक दृष्टि से नहीं रखा गया है. इसके पीछे विचार है. संघ शब्द एक विशिष्ट अर्थ है, उसमें व्यापकता की कमी है. समाज व्यापक है और सर्वोदय शब्द के साथ जुड़कर उसकी व्यापकता परिपूर्ण हो जाती है. नामकरण बड़े महत्त्व की चीज होती है. बहुत सारा काम नाम से ही हो जाता है. जीवन में परिवर्तन करने की शक्ति बहुत बार अच्छे नामों में भी होती है.

‘सर्वोदय’ शब्द क्यों?
‘सर्वोदय’ शब्द के बारे में अम्तुसलाम ने एक चिट्ठी भेजी थी. उसमें वे कहती हैं कि सर्वोदय शब्द हमारे देहाती भाई आसानी से नहीं समझ सकेंगे. उन्होंने सुझाया है कि इसमें गांधी जी का नाम जोड़ दिया जाय उनकी भावना से मेरी सहानुभूति है और मैं मानता हूं कि जैसे किसी व्यक्ति का नाम रखने में कुछ दोष आ जाता है, वैसे ही उस नाम को टालने पर भी दोष आ सकता है, लेकिन मेरा कहना है कि इस बारे में आग्रह न रखा जाय. गांधी जी ने देह छोड़ते वक्त भगवान का नाम लिया था. उसी का आश्रय लेकर हम काम करें. उसी से हमें स्फूर्ति और मार्गदर्शन मिलेगा. सर्वोदय शब्द देहाती भाइयों के लिए कुछ कठिन हो सकता है, लेकिन यह कबूल करते हुए भी मुझे कहना है कि यही नाम रखा जाय.

विनोबा जी का कहना था कि 30 जनवरी के मेले के बाद मैंने सर्वोदय दिवस का नाम दिया, उस दिन हर गाँव में लोग मेले का कार्यक्रम रखें, ऐसी बात मैंने कही. इन 7 लाख गाँवों में एक ही दिन, एक ही साथ प्रार्थना, कताई, सफाई, उपवास आदि कार्यक्रम लोग करेंगे तो वह आत्मशुद्धि का व्यापक काम होगा. केन्द्रीय मेले का स्थान तो दिल्ली ही ठीक थी, लेकिन वहां हरेक का पहुंचना संभव नहीं है, इसलिए 12 फरवरी के दिन जहां-जहां अस्थि-विसर्जन हुआ, वहां-वहां मेले लगाने की बात तय हुई, लेकिन जो लोग अलग तरह से कार्यक्रम करना चाहेंगे, वे भी करेंगे, जैसे ओड़िसा में मेले के स्थान पर पैदल यात्रा करके लोग आये. पवनार में हरेक यात्री एक-एक गुंडी अर्पण करे, ऐसी योजना बनी थी. इस तरह स्थानीय मेलों में लोग नई-नई कल्पनाओं पर काम करेंगे. मै तो मानता हूं कि फिलहाल 5-10 सालों तक तो मेले का स्वरूप हमारे हाथ में रहेगा ही, जैसे छोटी उम्र में बच्चे के हाथ अपने मां-बाप के हाथ में होते हैं. बाद में जब बहुत से लोग मेले में सम्मिलित होने लग जायेंगे, तब उसका स्वरूप कैसा होगा, यह तो भविष्य ही निश्चय करेगा.

सर्वोदय समाज के सेवकों तथा सदस्यों की उम्र के सवाल पर विनोबा जी की सोच थी कि उसके लिए उम्र की कोई सीमा नहीं रहेगी. जो राम-नाम लेना चाहते हैं, उनके लिए उम्र की क्या सीमा होगी भला! क्या खद्दर पहनना उनके लिए जरूरी होगा? क्या शराब न पीने वाला ही राम नाम ले सकता है और शराबी नहीं ले सकता है? राम नाम तो सभी ले सकते हैं. शराब न पीने वाला भी ले सकता है और शराब पीने वाला भी ले सकता है. यही राम नाम की महिमा है. ऐसे ही महिमा तो सर्वोदय समाज की भी है.

सर्वोदय सम्मेलन किसलिए?
इस विषय पर विनोबा जी ने अपना विचार इन शब्दों में लिखा, ‘सर्वोदय समाज सम्मेलन सेवकों के आपस के संपर्क और विचार विनिमय के लिए होंगे.’

सर्वोदय समाज सम्मेलन : आज तक
क्रम वर्ष तारीख स्थान
1. 1949 7 से 11 मार्च राऊ, इंदौर (मध्य प्रदेश)
2. 1950 10 से 12 अप्रैल अनुगुल (ढेंकानाल) उड़ीसा
3. 1951 8 से 11 अप्रैल शिवरामपल्ली (आंध्र प्रदेश)
4. 1952 13 से 16 अप्रैल सेवापुरी, वाराणसी (उ.प्र.)
5. 1953 7 से 9 मार्च चांडिल (बिहार)
6. 1954 18 से 20 अप्रैल सर्वोदयपुरी, बोधगया (बिहार)
7. 1955 25 से 27 मार्च जगन्नाथपुरी (उड़ीसा)
8. 1956 27 से 29 मई कांचीपुरम (तमिलनाडु)
9. 1957 9 से 11 मई कालडी (केरल)
10. 1958 30 मई से 1 जून पंढरपुर (महाराष्ट्र)
11. 1959 27 फरवरी से 1 मार्च अजमेर (राजस्थान)
12. 1960 26 से 28 मार्च सेवाग्राम (महाराष्ट्र)
13. 1961 18 से 20 अप्रैल सर्वायपुरम, गुंटूर (आंध्र प्रदेश)
14. 1962 23 से 24 नवंबर वेड़छी (गुजरात)
15. 1963 27 से 29 दिसम्बर रायपुर (मध्य प्रदेश, अब छत्तीसगढ़)
16. 1966 15 से 17 अप्रैल हनुमानगंज, बलिया (उत्तर प्रदेश)
17. 1968 8 से 10 जून आबू रोड (राजस्थान)
18. 1969 25 से 26 अक्टूबर राजगीर (बिहार)
19. 1971 8 से 10 मई नासिक (महाराष्ट्र
20. 1972 19 से 21 मई नकोदर (पंजाब)
21. 1979 11 से 14 अप्रैल कुरुक्षेत्र (हरियाणा)
22. 1980 3 से 5 जून खड़गपुर (पश्चिम बंगाल)
23. 1981 29 से 31 शिमोगा (कर्नाटक)
24. 1982 7 से 9 मार्च चांडिल (बिहार)
25. 1983 13 से 15 नवम्बर सेवाग्राम (महाराष्ट्र)
26. 1985 13 से 15 अप्रैल सिताबदियारा (उ.प्र.)
27. 1986 13 से 15 जून मन्नारगुडी (तमिलनाडु)
28. 1987 27 से 29 दिसम्बर बोरीवली (महाराष्ट्र)
29. 1990 27 से 29 अप्रैल मेलकोटे (कर्नाटक)
30. 1992 18 से 20 अप्रैल पूर्णिया (बिहार)
31. 1993 16 से 18 अप्रैल जौरा (मध्य प्रदेश)
32. 1994 11 से 13 अप्रैल साबरकुंडला (गुजरात)
33. 1996 16 से 18 अप्रैल जैसलमेर (राजस्थान)
34. 1997 15 से 17 मई साकेगांव (महाराष्ट्र)
35. 1998 3 से 5 मई रायपुर (मध्य प्रदेश)
36. कस्तूरबाग्राम, इंदौर
37. 2001 31 से 2 जून अकबरपुर (उ.प्र.)
38. 2002 9 से 11 अक्टूबर पटना (बिहार)
39. 2003 21 से 23 दिसम्बर कटक (ओड़िसा)
40. 2005 25 से 27 मई अहमदनगर (महाराष्ट्र)
41. 2007 9 से 11 अप्रैल जोधपुर (राजस्थान)
42. 2008 6 से 8 नवंबर पुणे (महाराष्ट्र)
43. 2010 21-23 फरवरी असम (गुवाहाटी)
44. 2011 29-31 दिसम्बर मदुरई (तमिलनाडु)
45. 2013 23-25 अक्टूबर आगरा (उ.प्र.)
46. 2015 1 से 3 नवंबर दिल्ली
47. 2018 23 से 25 फरवरी सेवाग्राम, जि.वर्धा
48. 2022 14 से 16 अप्रैल जौरा, मुरैना (मध्य प्रदेश)
सूत्र : 1. सेवाग्राम रचनात्मक कार्यकर्ता सम्मेलन का विवरण, 2. सर्वोदय समाज प्रथम सम्मेलन, राऊ का कार्य-विवरण, 3. सर्व सेवा संघ कार्यालय, सेवाग्राम, जि.वर्धा

-चंदन पाल

One thought on “देश की बहुलतावादी संस्कृति खतरे में है! बड़ी है सर्वोदय समाज की जिम्मेदारी!

  1. अत्यंत गरिमापूर्ण ऐतिहासिक विवरण.
    बहुत बहुत आभार.
    पता चला है कि 14-16.4.2022 के जौरा ( मुरैना) में सम्पन्न समारोह से ‘सर्वोदय समाज सम्मेलन ‘ से अपने आप को अलग रखने का फ़ैसला लिया था, जो कि उचित ही है.
    आयोजक-पदाधिकारी आयोजन में नफ़रत, घृणा और झूठ के प्रायोजकों से सम्मान लेने-देने से बचे-बतायें, यही आज का आपद् धर्म-कर्तव्य है.
    एक समाजकर्मी के विचार.
    अभिनंदन और शुभकामनाएँ.
    सुज्ञान मोदी के प्रणाम स्वीकारें.
    जय जगत.

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