परिव्राजक यीशु की देशनाएं
विनोबा ने गीता, भागवत, धम्मपद, जपुजी, कुरआन आदि अनेक धर्मग्रंथों के नवनीत लिखे हैं। इसके पीछे उनका मन्तव्य दिलों को जोड़ने का रहा है। ख्रिस्त धर्म सार इसी योजना की अगली कड़ी है। इसमें विनोबा ने न्यू टेस्टामेंट का सार सर्वस्व लिखा है। प्रस्तुत है अगली कड़ी।
गेहूं और घास- उसने उन्हें एक और दृष्टांत दिया कि ईश्वर का राज्य उस मनुष्य के समान है, जिसने अपने खेत में अच्छा बीज बोया है, पर जब लोग सो रहे थे तो उसका वैरी आकर गेहूं के बीच कुतर के जंगली बीज बोकर चला गया। जब अंकुर निकले और बालें लगीं तो कुतरे हुए जंगली दाने भी दिखायी दिये। इस पर गृह स्वामी के नौकरों ने आकर उससे कहा कि हे स्वामी, क्या तुमने अपने खेत में अच्छा बीज न बोया था? फिर जंगली दाने वाले पौधे उसमें कहां से आये? उसने उनसे कहा कि यह किसी वैरी का काम है। नौकरों ने उससे कहा कि क्या तेरी इच्छा है कि हम जाकर उनको बटोर लें? उसने कहा कि नहीं, हो सकता है कि तुम जंगली दाने के पौधों को बटोरते हुए उनके साथ गेहूं भी उखाड़ लो। कटनी तक दोनों को एक साथ बढ़ने दो। कटनी के समय मैं काटने वालों से कहूंगा कि पहले कुतरे हुए बीजों के पौधे बटोरकर जलाने के लिए उनके गट्ठे बांध लो, परंतु गेहूं को इकट्ठा करो। -मत्ती 13.24-30
राई का दाना- उसने उन्हें एक और दृष्टांत दिया कि ईश्वर का राज्य राई के दाने के समान है, जिसे किसी मनुष्य ने अपने खेत में बो दिया। वह सब बीजों से छोटा तो है, पर जब बढ़ जाता है, तब हर साग-पात से बड़ा होता है; और ऐसा पेड़ हो जाता है कि आकाश के पक्षी आकर उसकी डालियों पर बसेरा करते हैं। -मत्ती 13.31, 32
खमीर- उसने उन्हें एक और दृष्टांत सुनाया कि ईश्वर का राज्य खमीर के समान है, जिसको किसी स्त्री ने तीन पसेरी आटे में मिला दिया और होते-होते वह सब खमीर हो गया। -मत्ती 13.33
घर का जोगी जोगना- जब यीशु ये सब दृष्टांत कह चुका, तो वहां से चला गया और अपने ग्राम में आकर जनता के प्रार्थना-स्थल में उन्हें ऐसा उपदेश देने लगा कि वे चकित होकर कहने लगे कि इसको ऐसा ज्ञान और ऐसी चमत्कारी शक्ति कहां से मिली। यह बढ़ई का बेटा है न? इसकी माता का नाम मरियम है न? और इसके भाइयों के नाम याकूब और यूसुफ और शमौन और यहूदा ही हैं न? और क्या इसकी सब बहनें हमारे बीच नहीं रहतीं? फिर इसको यह सब कहां से मिला? तो इस तरह वे यीशु के विषय में दोषी हुए। यीशु ने उनसे कहा कि संदेष्टा का अपने ग्राम और अपने घर को छोड़ और कहीं निरादर नहीं होता। उसने उनकी अश्रद्धा के कारण वहां अनेक महत्कार्य नहीं किये। -मत्ती 13.53-58
अहं-निरसन आवश्यक- उस समय से यीशु अपने शिष्यों को बताने लगा कि मेरे लिए यह आवश्यक है कि मैं यरूशलम जाऊं और बुजुर्गों, महायाजकों तथा कर्मकांडी शास्त्रियों के हाथ से ढेरों दुख उठाऊं और मार डाला जाऊं फिर तीसरे दिन जी उठूं। इस पर पतरस उसे अलग ले जाकर कहने लगा कि हे प्रभु, ईश्वर ऐसा कभी न करे, आप पर कभी ऐसी घटना न घटेगी। उसने फिरकर पतरस से कहा कि शैतान! मेरे सामने से दूर हो जा। तू मेरे लिए ठोकर का कारण है; क्योंकि तू ईश्वर की बातों पर नहीं, मनुष्यों की बातों पर मन लगाता है। तब यीशु ने अपने शिष्यों से कहा कि यदि कोई मेरे पीछे आना चाहे, तो अपने अहं का त्याग करे और अपना क्रूस (वध-स्तम्भ) उठाये और मेरे पीछे हो ले,क्योंकि जो कोई अपना प्राण बचाना चाहे, वह उसे खोयेगा और जो कोई मेरे लिए अपना प्राण खोयेगा, वह उसे पायेगा। यदि मनुष्य सारे जगत को प्राप्त करे और अपने सच्चे जीवन को खो बैठे, तो उसे क्या लाभ होगा? मनुष्य क्या देकर अपना सच्चा जीवन पायेगा? -मत्ती 16.21-26
बाल-भाव की महिमा- शिष्य यीशु के पास आकर पूछने लगे कि ईश्वर के राज्य में सबसे बड़ा कौन है? इस पर यीशु ने एक बालक को पास बुलाकर उनके बीच में खड़ा किया और कहा कि मैं तुमसे सच कहता हूं, यदि तुम्हारी वृत्ति न बदले और तुम छोटे बालक के समान न बनो, तो ईश्वर के राज्य में प्रवेश करने नहीं पाओगे। जो कोई अपने आपको इस बालक के समान छोटा बना लेगा, वह ईश्वर के राज्य में सबसे बड़ा माना जायेगा। -मत्ती 18.1-4
समन्वय- यूहन्ना ने कहा कि हे स्वामी, हमने एक मनुष्य को तेरे नाम से भूत-पलीतों को निकालते देखा और हमने उसे मना किया, क्योंकि वह हमारी तरह आपका अनुयायी नहीं था। यीशु ने उससे कहा कि उसे मना मत करो, क्योंकि जो तुम्हारे विरोध में नहीं, वह तुम्हारी ओर है। -लूका 9.49, 50
पंच परमेश्वर- यदि तेरा भाई तेरा अपराध करे तो जा और अकेले में बातचीत कर उसे समझा; यदि वह तेरी सुने तो तूने अपने भाई को पा लिया। फिर मैं तुमसे कहता हूं, यदि तुममें से दो जन पृथ्वी पर किसी बात के लिए, जिसे वे मांगें, एक मन के हों, तो वह मांग परमपिता मंजूर करेगा, क्योंकि जहां दो या तीन मेरे नाम पर इकट्ठे होते हैं, वहां मैं उनके बीच में होता हूं। -मत्ती 18.15, 19, 20
क्षमा धर्म- तब पतरस ने पास आकर उससे कहा कि हे प्रभु, यदि मेरा भाई अपराध करता रहे, तो मैं कितनी बार उसे क्षमा करूं? क्या सात बार तक? यीशु ने उससे कहा कि मैं तुझसे यह नहीं कहता कि सात बार, वरन् सात बार के सत्तरगुने तक। -मत्ती 18.21, 22