झारखण्ड में कुड़मि समुदाय दरअसल अनुसूचित जन जाति है, इसके कई प्रामाणिक तथ्य मौजूद हैं। वर्ष 1913 के भारत सरकार के गजट में स्पष्ट रूप से कुड़मि समुदाय अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल था और 1931 तक की जनगणना में भी कुड़मि समुदाय को आदिम जनजाति की सूची में […]
Year: 2022
राजनीति, धर्म, कानून और स्थानीय समाज शक्ति के स्रोत व केंद्र हैं. इन सभी के आपसी संवाद से ही हल तय हो सकता है. ऐसा संवाद कायम हो, इसकी कोशिश स्थानीय समाज को ही करनी होगी. वाराणसी में एक बार फिर मंदिर-मस्जिद विवाद शुरू हो गया है. काशी विश्वनाथ मंदिर […]
सिलंगेर आंदोलन के एक साल एक साल पहले 12-13 मई की दरमियानी रात सिलंगेर में सीआरपीएफ ने रातों रात अपना कैंप बना डाला था। सुबह जब आदिवासियों को पता चला तो वे वहां पहुंचे। तीन दिन तक हजारों की संख्या में आदिवासी कैंप को हटाने की मांग करते रहे, लेकिन […]
गांधीजी का भगवान बुद्ध पर यह विवेचन सनातन वैदिक एवं बौद्ध चिंतन तथा उसके आचरणीय स्वरूप के ऊपर एक गहरा विमर्श प्रस्तुत करता है। मुझे आज यह कहने में जरा भी हिचक नहीं है कि मैंने बुद्ध के जीवन से बहुत कुछ प्रेरणा पाई है। कलकत्ते के नये बौद्ध मन्दिर […]
काल के गाल पर ढुलके हुए आंसू का एक कतरा है ताज-गुरुदेव रबिन्द्रनाथ टैगोर जयपुर राजघराने की राजकुमारी दीया जब यह दावा करती हैं कि यह जमीन उनके पुरखों की है, तो वे यह बताना भूल जाती हैं कि इसके बदले में राजा जयसिंह को शाहजहां ने चार हवेलियां दी […]
सम्पूर्ण क्रांति के प्रणेता लोकनायक जय प्रकाश नारायण को जानने वालों ने उन्हें संत राजनेता कहकर पुकारा। देश और देश की आज़ादी के लिए जेपी के त्याग, साहस और कुर्बानियों की कहानियां इतिहास के पन्नों पर दर्ज हैं। समाज के लिए उनकी चिंताएं उनकी लिखी किताबों और उनके भाषणों में […]
आज देश की प्रमुख आर्थिक समस्या महंगाई, बेरोजगारी और गरीबी है। कोई भी समस्या कई कारणों से पैदा होती है, समाधान के लिए कई प्रकार के प्रयास करने होते हैं. इन समस्याओं के भी कई कारण हैं। कुछ राजनैतिक हैं, कुछ आर्थिक हैं, कुछ सामाजिक हैं और कुछ अन्य हैं। […]
अपने अतीत के इस स्वर्णिम पन्ने को इसलिए याद रखा जाना चाहिए कि उस आंदोलन से निकली विभिन्न धाराओं ने भारतीय राजनीति की दशा-दिशा को गहरे प्रभावित किया, इससे कोई इनकार नहीं कर सकता। उस आंदोलन से युवाओं की शक्ति स्थापित हुई। लोकतंत्र मजबूत हुआ। दोबारा इमरजेंसी लगने की आशंका […]
जनता पार्टी की कारगुजारियों और 8 अक्टूबर 1979 को जेपी के निधन के कारण क्रांति की लौ धीमी पड़ गयी। वैसे क्रातियां किसी दौर या नेतृत्व की मोहताज नहीं होतीं। परिस्थितियां ही अवसर और नेतृत्व पैदा कर देती हैं। इसलिए ऐसा नहीं कह सकते कि सम्पूर्ण क्रांति की लौ पूरी […]
आचार्य जी 1974 के आंदोलन में अघोषित लेकिन सर्व स्वीकृत विश्वविद्यालय बन गये थे। वे और उनका खादीग्राम, वैचारिक मंथन का मुख्य केंद्र था। खुद लोकनायक जयप्रकाश मानते थे कि उनके मन की बातों को आचार्य जी बहुत ही बेहतरीन ढंग से प्रस्तुत करते हैं। गांधी विचार के महान व्याख्याकार […]