सीआरपीएफ कैंप के सामने पूरे बस्तर से जुटे हजारों आदिवासी

सिलंगेर आंदोलन के एक साल

एक साल पहले 12-13 मई की दरमियानी रात सिलंगेर में सीआरपीएफ ने रातों रात अपना कैंप बना डाला था। सुबह जब आदिवासियों को पता चला तो वे वहां पहुंचे। तीन दिन तक हजारों की संख्या में आदिवासी कैंप को हटाने की मांग करते रहे, लेकिन 17 मई को सीआरपीएफ की ओर से निहत्थी भीड़ पर फायरिंग कर दी गई। इस हत्याकांड में 3 लोगों की मौके पर ही मौत हो गई थी और लाठीचार्ज की वजह से घायल एक गर्भवती महिला ने बाद में दम तोड़ दिया था।

छत्तीसगढ़ के सिलंगेर में सीआरपीएफ कैंप के खिलाफ एक साल से आंदोलन कर रहे हजारों आदिवासियों ने 17 मई 2022 को विशाल प्रदर्शन किया। एक साल पहले इसी दिन प्रदर्शन कर रहे आदिवासियों पर सीआरपीएफ के जवानों ने गोली चला दी थी, जिसमें 3 लोगों की मौके पर ही मौत हो गई थी और लाठीचार्ज की वजह से घायल एक गर्भवती महिला की बाद में मौत हो गई थी।

दिल्ली बॉर्डर पर एक साल तक घेरा डालकर आंदोलन करने वाले किसानों की तरह ही, आदिवासियों ने सिलंगेर सीआरपीएफ कैंप के पास निर्माणाधीन मुख्य मार्ग पर ही करीब दो किलोमीटर के दायरे में फूस के टेंट लगाकर धरने पर बैठ गए। जाड़ा, गर्मी, बरसात झेलते हुए इस आंदोलन के 365 दिन पूरे होने पर एक विशाल जुटान हुआ। आंदोलन और मारे गए आदिवासियों की पहली बरसी मनाने दूर-दूर से आदिवासी तीन दिन पहले ही पहुंच गए थे।

ये आंदोलन मूल-निवासी बचाओ मंच, बस्तर की ओर से चलाया जा रहा है और इसके नेता रघु ने बताया कि 15,16,17 मई के कार्यक्रम में पूरे बस्तर से आदिवासी इकट्ठा हुए। 17 मई को मुख्य कार्यक्रम था। सुबह नौ बजे के करीब हजारों हजार की संख्या में लोगों ने सीआरपीएफ कैंप के पास बने शहीद स्थल की ओर मार्च किया। कैंप के सामने सीआरपीएफ द्वारा लगाए बैरिकेड के सामने ये विशाल हुजूम रुका और अपनी मांगों को लेकर देर तक नारेबाजी की। इनकी प्रमुख मांग है कि मारे गए लोगों के परिजनों को एक-एक करोड़ रुपए और घायलों को 50-50 लाख मुआवजा दिया जाए तथा इस घटना की न्यायिक जांच कर दोषी सुरक्षाकर्मियों को सजा दी जाए। इसके अलावा सीआरपीएफ कैंप जिस सात एकड़ जमीन पर बना है, वह खेती की जमीन थी, वहां से कैंप हटाया जाय। बस्तर में आदिवासियों का नरसंहार बंद किया जाय।


रातों रात उग आया कैंप
बस्तर में आदिवासी अधिकारों के लिए काम करने वाली कार्यकर्ता बेला भाटिया भी इस कार्यक्रम में पहुंची थीं। उन्होंने वर्कर्स यूनिटी से कहा कि एक साल पहले 12-13 मई की दरमियानी रात सिलंगेर में सीआरपीएफ ने रातों रात यह कैंप बना डाला था। सुबह जब आदिवासियों को पता चला तो वे वहां पहुंचे। तीन दिन तक हजारों की संख्या में आदिवासी कैंप को हटाने की मांग करते रहे और 17 मई को सीआरपीएफ की ओर से निहत्थी भीड़ पर फायरिंग कर दी गई। बेला कहती हैं कि रात के अंधेरे में कौन आता है? चोर! आखिर सीआरपीएफ को चोरों की तरह आने की क्या जरूरत थी? ग्रामसभा को क्यों सूचित नहीं किया गया? आदिवासी नेता गजेंद्र मंडावी कहते हैं कि सीआरपीएफ के मन में चोर था, इसलिए उन्होंने बिना सोचे-समझे गोली चलाई। बीजापुर से जगरगुंडा तक हर दो चार किलोमीटर पर एक सीआरपीएफ कैंप है। सिलंगेर का ये ताजा कैंप 15वां कैंप है। छत्तीसगढ़ में इस समय कांग्रेस की सरकार है। भूपेश बघेल मुख्यमंत्री हैं, जिन्हें कांग्रेस और वे खुद, बहुजनों के जुझारू नेता के रूप में प्रचारित करते रहे हैं।

आंदोलन को समर्थन देने सिलंगेर पहुंचे सर्व आदिवासी समाज के प्रदेश उपाध्यक्ष सुरजू टेकाम का कहना है कि भूपेश बघेल को साल भर में इतना मौका नहीं मिला कि वे मृतकों के लिए संवेदना के दो शब्द कह सकें। उन्होंने घटना की जांच छः महीने में करने की घोषणा की थी, लेकिन आज तक पता नहीं चला कि रिपोर्ट की क्या स्थिति है।

-संदीप राउज़ी

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