राजसत्ता की भूमिका एकतरफ़ा होती दीखती है. न्यायपालिका से इस अन्याय में हस्तक्षेप की उम्मीद घट चुकी है. क़ानून-व्यवस्था को दबंगई से अप्रासंगिक बनाया जा रहा है. इससे राष्ट्रीय एकता को ख़तरा बढ़ रहा है. सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा मिल रहा है. इसका विरोध करने वालों को हिंदू विरोधी, लिबरल, […]

आज रूस व यूक्रेन के बीच का विवाद पूरी मानव सभ्यता को एक अंधेरे कालखण्ड में ले जा रहा है। विशेषकर दूसरे विश्व युद्ध के बाद आये शीत युद्ध के बाद स्पष्टतः यह दिखता है कि मानव सभ्यता एक नये अवसान की ओर जा रही है। रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान, […]

अंबेडकरवादियों द्वारा गांधी के प्रति द्वेष का सबसे बड़ा प्रतीक हमेशा पुणे करार को माना गया। हमेशा यह प्रचारित किया गया और दुर्भाग्य से बाद में स्वयं बाबासाहेब ने भी इसे दोहराया कि गांधी की जान बचाने के लिए बाबासाहेब को अस्पृश्य वर्ग के हितों को बलि पर चढ़ाते हुए […]

सर्व सेवा संघ ने 30 जनवरी 1955 को सर्वोदय तथा सर्वोदयी सामाजिक व्यवस्था के तरीकों और कार्यक्रमों को समझाने के लिए ‘प्लानिंग फॉर सर्वोदय’ प्रकाशित की थी। प्लानिंग फॉर सर्वोदय की रचना के लिए गठित सर्वोदय योजना समिति के सदस्यों में धीरेन्द्र मजूमदार, जयप्रकाश नारायण, अन्ना साहब सहस्रबुद्धे, आरएस धोत्रे, […]

बाग़ी बहादुर सिंह अब 83 साल के हो गए हैं। वे जौरा स्थित गांधी सेवा आश्रम में ही रहते हैं और विभिन्न सामाजिक कार्यों में व्यस्त रहते हैं। वे कहते हैं कि समाज और व्यवस्था के हालात व्यक्ति को बाग़ी और विद्रोही बनाने को मज़बूर करते हैं। मैंने ग़लत रास्ता […]

बागी आत्मसमर्पण-स्वर्ण जयंती समारोह में पीवी राजगोपाल का आह्वान चम्बल घाटी का जौरा आश्रम, हिंसा मुक्ति, प्रतिकार मुक्ति और शोषण मुक्ति के अभियान की जननी रहा है। 1970 के दशक में बागी आत्मसमर्पण, इस प्रतिकार मुक्ति का पहला कदम था, जो आदिवासियों को जागरूक कर उनके भूमि अधिकार की लड़ाई […]

बाबा समझाते थे कि बारिश का पानी बूंद-बूंद करके ही गिरता है, लेकिन फिर भी हर जगह गिरता है, इसलिए जिस तरह सारे नदी नाले भर-भर के बहते हैं, वैसे ही हर कोई अगर इसमें हाथ लगाएगा तो भूदान गंगा भी भर-भर के बहेगी। पुराने जमाने में कोई मठपति, कोई […]

बाबा ने अपना विश्वास बताते हुए कहा कि मसला कोई भी हो, अहिंसा से ही हल हो सकता है, लेकिन उसके लिए हृदय शुद्धि की आवश्यकता होती है। वैसे तो इस चीज को कल्पना और श्रद्धा से बाबा मानते ही थे, लेकिन इस मर्तबा उसका दर्शन भी हुआ। इसलिए भूदान […]

बाबा तो कहते ही थे कि केवल पुलिस की ताकत से शांति नहीं रह सकती। हां, अशांति उससे दब जरूर सकती है, लेकिन यह फिर से धधक सकती है। जैसे गर्मी में घास सूख जाती है, बिल्कुल दिखाई नहीं देती, लेकिन वर्षा होते ही वह उग आती है। अशांति के […]

बाबा का मांगने का ढंग अद्भुत ही था. वे गरीबों के लिए भूमिदान मांगते थे, लेकिन बताते थे कि इसमें बचत श्रीमानों की भी होती है। मैं श्रीमानों के घर ठहरकर उनके घर ही आग लगाता हूं। यही उनके घर होने वाला उज्ज्वल यज्ञ है। इस यज्ञ से कोई आग […]

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