भूदान डायरी; विनोबा विचार प्रवाह : यह गंगा भी भर-भर के बहेगी

बाबा समझाते थे कि बारिश का पानी बूंद-बूंद करके ही गिरता है, लेकिन फिर भी हर जगह गिरता है, इसलिए जिस तरह सारे नदी नाले भर-भर के बहते हैं, वैसे ही हर कोई अगर इसमें हाथ लगाएगा तो भूदान गंगा भी भर-भर के बहेगी।

पुराने जमाने में कोई मठपति, कोई आचार्य, कोई महंत जब भी समाज में अपने मठ के लिए दान मांगने निकला होगा, तो उसे दान में जमीनें भी मिली होंगी, लेकिन गरीबों के लिए जमीन मांगने जाना और लोगों का इस तरह पंक्ति में खड़े होकर उत्साह से भरकर जमीन दान में देना, अभी तक के इतिहास में बिल्कुल अनोखी और घटना है। बाबा ने एक बार कहा कि हमें मिलने वाले भूदान में अगर कहीं तामस या राजस प्रभाव दिखा, तो वह दान हमने स्वीकार नहीं किया। बाबा जैसे तैसे किसी भी तरीके से जमीन बटोरने के पक्ष में नहीं थे। प्रेम पैदा करके जो काम किया जा सकता है, वह सुंदर होता है। वे जोर देकर कहते थे कि जमीन तो केवल निशानी है, तुम दान के भागीदार बनो। कुछ लोग बाबा से यह भी कहते थे कि राज्य का तंत्र बदले बगैर कोई समाधान नहीं निकलेगा. हां, तन्त्र बदलने से दुनिया का कुछ भला जरूर हो जायेगा। खारे पानी वाले समुद्र में शहद की दो बूंदें डालने से समुद्र में क्या अंतर होने वाला है? चंद समय के लिए कोई मक्खी वहां पर बैठ सकती है, लेकिन इससे ज्यादा बहुत कुछ वहां नहीं होगा।

    यह बड़े महत्व की बात है, इससे एक बड़ी शक्ति की उपासना हो सकती है, लोगों को एक नई दृष्टि मिल सकती है और दुनिया को राहत मिल सकती है। इसलिए हमें अपने जीवन में अहिंसा को मौका देना ही चाहिए।

बाबा इस बात पर ज्यादा नहीं बोलते थे. वे समझाते थे कि बारिश का पानी बूंद-बूंद करके ही गिरता है, लेकिन फिर भी हर जगह गिरता है, इसलिए जिस तरह सारे नदी नाले भर-भर के बहते हैं, वैसे ही हर कोई अगर इसमें हाथ लगाएगा तो यह गंगा भी भर-भर के बहेगी। कुछ लोगों का प्रश्न हुआ करता था कि यह कब तक होगा? बाबा कहते थे कि जब परमेश्वर सभी को प्रेरणा देगा, तब होगा। जिस दिन सबके मन में देने की ख्वाहिश पैदा हो जाएगी और उन्हें लगने लगेगा कि यही असली काम है, तब सभी हाथ बंटाएंगे। और तब, आज से भी बड़ा काम होगा। बहुत बार बाबा से लोग कहते थे कि अहिंसा से क्या लाभ होगा? ऐसे कैसे चलेगा? मैं उनसे पूछता हूं कि आप ही बताइए कि आज तक लाखों लड़ाइयां लड़ी जा चुकी हैं, लेकिन उनसे कितनी समस्याएं हल हुई हैं? लेकिन फिर भी तो सब हिंसा को ही कारगर मानते हो। वहां शंका क्यों नहीं करते?

बाबा कहते थे कि लोगों को हिंसा में कितना विश्वास है! इतना क्या अद्भुत जादू है उस हिंसा में, जो सभी मानते हैं कि हमें सभी समस्याओं का हल हिंसा में ही दिखता है? यह तो निरा मूढ़ विश्वास है। इसे कुछ ढीला करो और सोचो कि हिंसा के इतने ट्रायल होने के बाद भी अगर कोई परिणाम नहीं निकला, तो हिंसा में कुछ दोष जरूर है। या फिर अहिंसा में ही कुछ नुक्स या कमजोरी रह गई होगी। दुनिया ने हजारों साल हिंसा में बिताए तो 50 साल हमें अहिंसा में भी बिताना चाहिए। हमारे द्वारा यह छोटा-सा काम जो हो रहा है, उसकी तरफ सारी दुनिया की आंखें हैं, क्योंकि दुनिया में आज जो चल रहा है, यह उससे उल्टा काम है। अगर यह सफल हो गया, तो दुनिया जिसकी प्यासी है, वह चीज उसे मिल गई, ऐसा माना जाना चाहिए। यह बड़े महत्व की बात है, इससे एक बड़ी शक्ति की उपासना हो सकती है, लोगों को एक नई दृष्टि मिल सकती है और दुनिया को राहत मिल सकती है। इसलिए हमें अपने जीवन में अहिंसा को मौका देना ही चाहिए।

-रमेश भइया

Co Editor Sarvodaya Jagat

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