बीती 12 दिसंबर बाबू गेनू का शहादत दिवस था. इस मौके पर आज़ादी-75 के बैनर के तहत धोबी तालाब से जुलूस निकाला गया, बाबू गेनू के शहादत स्थल तक पहुंचा। वहां स्थापित उनकी प्रतिमा पर वरिष्ठ सर्वोदयी टी के सोमैया ने फूल माला पहनायी और शहीद को सामूहिक श्रद्धांजलि दी गयी। इसके बाद हुई नुक्कड़ सभा में वक्ताओं ने अपनी बातें रखी। बाबू गेनू सैद (1 जनवरी 1908 – 12 दिसम्बर 1930) भारत के स्वतंत्रता-संग्राम सेनानी एवं क्रांतिकारी थे। उन्हें भारत में स्वदेशी के लिए बलिदान होने वाला पहला व्यक्ति माना जाता है।पुणे जिले के महानंगुले गाँव में ज्ञानोबा आब्टे के पुत्र बाबू गेनू शहादत के समय 22 वर्ष के ही थे. 1930 के नमक सत्याग्रहियों में वह भी सम्मलित थे। नमक पर छापा मारने वाले स्वयंसेवकों के साथ पकड़ा गये और उनको कठोर कारावास का दंड दिया गया। जब यरवदा जेल से छूटे तो माँ से मिलने गये, जो लोगों के मुंह से अपने वीर पुत्र की प्रशंसा सुनकर बहुत प्रसन्न थी। 12 दिसम्बर 1930 को ब्रिटिश एजेंटों के कहने पर विदेशी कपड़ों के व्यापारियों ने विदेशी कपड़ों से भरे ट्रक सड़क पर उतार दिए। ट्रक के सामने एक के बाद एक 30 स्वयंसेवक लेट गये और ट्रक को रोकना चाहा। पुलिस ने उनको हटाकर ट्रकों को निकालना चाहा।
बाबू गेनू ने कोई भी ट्रक वहां से न निकलने देने का निश्चय कर लिया और वहीं सड़क पर लेट गये। आतताइयों ने ट्रक उन पर से होकर निकाल लिया. वीर बालक अचेत हो गया। तत्काल उनको अस्पताल ले जाया गया, जहां उनकी मृत्यु हो गयी। ट्रक ड्राइवर और पुलिस की क्रूरता से शहीद हुआ वह वीर शहीद देश भर में लोकप्रिय हो गया। उसका नाम भारत के घर घर में पहुच गया और गाँव गाँव में बाबू गेनू अमर रहें के नारे गूंजने लगे। महानंगुले गाँव में, जहाँ वे शहीद हुए, वहां उनकी मूर्ति स्थापित की गयी। उस गली का नाम गेनू स्ट्रीट रखा गया। कस्तूरबा गांधी शहीद के घर गयीं और उनकी माँ को पूरे देश की तरफ से सांत्वना दी। एक साधारण मजदूर द्वारा दी गयी इस गौरवशाली शहादत को यह देश कभी नही भूल सकता। साने गुरुजी की लिखी प्रार्थना के साथ कार्यक्रम कार्यक्रम का हुआ।
-जयंत, मुंबई