अफगानिस्तान में प्रेम और युद्ध

अफगानिस्तान में तालिबान के ताकतवर होने से फरीद जैसे दुभाषियों का जीवन संकट में है, जिन्होंने पश्चिम को, उस खूबसूरत पर युद्धजर्जर देश के बारे में बताया। अफगानिस्तान में मैंने हर दुभाषिये को परंपरा-विरोधी पाया है, जो प्रेम करता है और अपनी दुल्हन खुद चुनता है।
पिछले सप्ताह जब मैं अपनी बेटी को उसकी खेल प्रतियोगिता के लिए ले जा रही थी, तभी मेरे मोबाइल पर मैसेज आया, ‘अफगानिस्तान के हालात दिनोंदिन खराब होते जा रहे हैं। तालिबान जानते हैं कि मैं आप जैसे लोगों के साथ सहयोग कर रहा हूं। लिहाजा अगर संभव हो, तो मुझे यहां से निकालकर अमेरिका ले आने के बारे में अपनी संस्था से बात कीजिए।’ इधर वर्षों से फरीद से बात नहीं हुई थी। वर्ष २००७ में मैंने अफगानिस्तान के गर्देज शहर तक जाने के लिए उसकी मदद ली थी, क्योंकि मुझे वहां के एक लड़ाका सरदार पर रिपोर्ट लिखनी थी। गर्देज के रास्ते में हमें तूफान का सामना करना पड़ा था, लेकिन एक पहाड़ी दर्रे में कार चलाते हुए वह बेफिक्र था। एक पुराने बाजार से गुजरते हुए मैंने बुर्का ओढ़ लिया था, फिर भी मेरे आसपास भीड़ इकट्ठा हो गयी थी। फरीद ने एक टी शर्ट से अपना चेहरा ढक रखा था, ताकि कोई उसे पहचान न ले, क्योंकि एक अमेरिकी को अपने साथ लेकर उसने जोखिम तो उठाया ही था।


अब जब लगभग बीस साल बाद अमेरिकी फौज अफगानिस्तान छोड़कर जा रही है और तालिबान ताकतवर होकर उभरे हैं, तब मुझे फरीद और उन लोगों की बहुत चिंता हो रही है, जिन्होंने अपनी जान जोखिम में डालकर बाहरी लोगों को अपना खूबसूरत लेकिन जर्जर देश दिखाया। पिछले कुछ वर्षों के दौरान अफगानिस्तान और इराक में सैकड़ों दुभाषिये मारे गये हैं, इनमें वे भी हैं, जो लंबे समय से वीजा से जुड़ी औपचारिकताओं में लगे थे।


राष्ट्रपति जो बाइडन ने कम से कम 16,000 उन अफगानों को सुरक्षित अफगानिस्तान से बाहर निकाल लाने का वादा किया, जिन्होंने पिछले दो दशक में वहां अमेरिकी प्रयासों में मदद की थी। अमेरिकी संसद ने अमेरिकी सेना के लिए दुभाषिये का काम करने वाले अफगानों को जल्दी और सुरक्षित रूप से अमेरिका ले आने से संबंधित एक बिल पास किया। पर यह स्पष्ट नहीं है कि विदेशी मीडिया या गैरलाभकारी संगठनों के लिए काम करने वाले फरीद जैसे लोग स्पेशल अमेरिकी वीजा के हकदार हैं या नहीं। यह भी स्पष्ट नहीं है कि सबसे अधिक शिक्षित और पश्चिमी देशों के प्रति आकर्षित अफगान अगर अफगानिस्तान से निकल गये, तो उस देश का क्या होगा। अफगानिस्तान जैसे देश में दुभाषिये सबसे प्रभावशाली होते हैं। विदेशी पत्रकार अफगानिस्तान की पूरी सच्चाई जान पाते हैं, तो इसके पीछे फरीद जैसे लोगों का योगदान होता है। वहां हम लोगों की उपस्थिति से अफगानियों को भी भरोसा होता है कि दशकों के गृहयुद्ध के बाद अफगानिस्तान में नई सुबह होगी।


अफगानिस्तान में शादियां अमूमन परिवार द्वारा तय की जाती हैं। लेकिन वहां मैंने पाया है कि लगभग हर दुभाषिया अपनी पत्नी खुद चुनता है। इन दुभाषियों की प्रेम कहानी वस्तुत: परंपरा के खिलाफ विद्रोह ही है। मैंने यहां जिस पहले दुभाषिये की सेवा ली थी, उसे अपने पड़ोस की लड़की से प्रेम हो गया था। उसके माता-पिता को शादी के लिए वह लड़की मंजूर नहीं थी, तो उसने लंबी भूख हड़ताल के बाद उन्हें मना लिया। दूसरे दुभाषिये को कॉलेज की एक लड़की से प्रेम हो गया था। उसने उस लड़की के सामने शादी का प्रस्ताव रखा। अफगानिस्तान में यह एक ऐसा जुर्म था, जिसके लिए उसे फांसी हो सकती थी। लेकिन वह लड़की भी शादी के लिए राजी हो गयी। वह भी एक जुर्म था। उन दोनों ने न सिर्पâ तीन साल अजनबियों की तरह बिताये, बल्कि उस दौरान शादी के लिए अपने परिजनों को राजी करने की योजना भी बनाते रहे।
तालिबान के दौर में मेरे सभी दुभाषिये वे छात्र होते थे, जिनके पास रोजगार की संभावना नहीं थी। पर अमेरिकी दखल के बाद अंग्रेजी जानने वाले अफगानों को पैसे की कमी नहीं हुई। एक दुभाषिये ने बताया था कि जब उसे पहला वेतन मिला, तो वह खुशी से अपनी दुल्हन चुनने के लिए गलियों में दौड़ पड़ा। पर किसी लड़की से उसकी दोस्ती नहीं थी, इसलिए वह गली में खड़ा होकर गुजरती औरतों को देखता रहा था। वर्ष २००१ में तालिबान को उखाड़ पेंâकने का आनंद जल्दी ही पैसों की तलाश में बदल गया था, क्योंकि अफगानिस्तान वंâगाल बन चुका था, अफगानिस्तान के हर दौरे पर मुझे दुभाषिये का प्रबंध करना पड़ता था, पुराने दुभाषिये को दूसरी अच्छी नौकरी मिल जाती थी। जिन अफगान प्रशासनिक अधिकारियों को महीने में 80 डॉलर मिलते थे, उन्हें विदेशी एनजीओ 1000 डॉलर महीना देने लगे। एक बार जब मैं अशरफ गनी के साथ लंच कर रही थी, तब वह राष्ट्रपति नहीं थे, तब उन्होंने शिकायती लहजे में कहा था कि विदेशी लोग अफगानिस्तान के बेहतरीन प्रशासनिक अधिकारियों को खरीद ले रहे हैं।


मैं 2011 में जब आखिरी बार अफगानिस्तान गयी थी, तो कोई मेरा दुभाषिया बनना नहीं चाहता था। बड़ी मुश्किल से जो युवा तैयार हुआ, उसने भी मुझे पाकिस्तान में रह रही अपनी धनी प्रेमिका के बारे में बताया, जबकि वह शादीशुदा था। फरीद का मैसेज मिलने पर मैं सोचने लगी कि प्रेमी स्वभाव का वह युवा कितना बदल गया है। प्रेम और पैसे के पीछे भागते इन विद्रोही अफगान युवाओं का अब क्या होगा? और अफगानिस्तान को एक आधुनिक देश बनाने के सपने का भी क्या होगा?

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