अंधेरे में धकेले गए लोग जिनका दिन में घर से बाहर निकलना मना है

तमिल भाषा में बनी लीना मनीमेकलाई की फिल्म ‘मदाथी : द अनफेयरी टेल’ को देखकर यह यकीन करना मुश्किल है कि भारत में एक मानव-जाति ऐसी भी है, जिसे दिन में घर से बाहर निकलना मना है। यह फिल्म इसी जाति की एक युवा होती लड़की योसाना पर केन्द्रित है जो गुलामी और न पहचाने जाने के अँधेरे से आजादी के उजाले में जाने की कोशिश और इच्छा करती है। उसकी इस इच्छा का दुष्परिणाम यह हुआ कि सामंतवादी और ब्राह्मणवादी सोच ने उसे कुचल दिया।


यह फिल्म योसाना की कहानी के साथ-साथ उस जाति के लोगों की जिंदगी से रूबरू कराती है, जिसे नरक कहा जाना सौ प्रतिशत सही होगा। हम छुआछूत, ऊँच-नीच के माध्यम से अपमानित किये जाने की घटना आये दिन सुनते, देखते और पढ़ते रहते हैं, लेकिन इसी धरती पर अछूत जाति के लोग भी हैं, यह हमारी सोच से बाहर की बात है।


इस फिल्म में बलात्कार के दो दृश्य हैं। एक में योसाना की माँ से गाँव का दबंग बलात्कार करता है और धमकाते हुए चिल्लाकर कहता है कि तेरा पति मेरा कुछ नहीं कर सकता। मैं उसे मार डालूँगा। दूसरी बार बलात्कार योसाना का होता है और वह मर जाती है। इससे पता चलता है कि स्त्री के विरुद्ध अपराध करना और बेदाग बच जाना उस समाज के लिए कितना सहज है। यहाँ भारतीय संविधान में मनुष्य को मिला, ‘जीने का मौलिक अधिकार’ और कानून-व्यवस्था-न्याय सब कागज़ पर लिखी इबारतें रह जाती हैं।


यह फिल्म वास्तव में तमिलनाडु की पुथिरै वन्नार जाति की कहानी पर आधारित है जो धोबी का काम करती है। इस जाति को गाँव के लोगों के सामने जाने की इजाज़त नहीं है। इनके श्रम से सबके कपड़े साफ होते हैं लेकिन सरेआम इनका दिखना एक अपराध है। रात के अँधेरे में जब सारा गाँव खाकर सो जाता है और किसी के सामने पड़ने का अंदेशा नहीं रह जाता, उस समय ही इस जाति के लोग अपने घरों से बाहर निकलते हैं और जल्दी ही अपने सभी काम निपटा कर जंगल में ओझल हो जाते हैं।


‘मदाथी : अ अनफेयरी टेल’ धोबी जाति के एक ऐसे परिवार की कहानी है, जो गाँव से बाहर रहने के साथ अछूत भी है। वह गाँव के नियमों के अनुसार बाहर ही अपना सारा जीवन गुजारने को अभिशप्त है और गाँव में किसी दूसरे समाज के बीच कभी नहीं जा सकता। वह रात में ही कपड़े धोने का अपना सारा काम निपटा लेता हैं। फिल्म के कई दृश्यों में चाँदनी रात में योसाना की माँ कपड़े धोती हुई दिखती है।


फिल्म के शुरुआती दृश्य में ही मुँह-अँधेरे योसाना अपनी माँ के साथ घर लौट रही है। सिर पर कपड़ों का गट्ठर लिए उसकी मां घर वापसी के लिए हड़बड़ाती है और मस्ती में रास्ता नापती योसाना पर नाराज़ होती है ताकि उन दोनों को कोई देख न ले। इसी बीच रास्ते में किसी के आने की आहट सुनकर वे दोनों गठरी उतारकर पेड़ के पीछे छिप जाती हैं। वह गाँव का ही एक आदमी होता है, जिसके ‘कौन है?’ पूछने पर योसाना की मां ‘मालिक’ संबोधन से जवाब देती है। इस पर वह उसको अपशब्द बोलकर अपमानित करता है।


ध्यान देने वाली बात यह है कि वह आदमी भी अपनी साइकिल पर लकड़ी का गट्ठर बाँधे हुए जा रहा है यानी वह भी एक मजदूर से ज्यादा की हैसियत वाला नहीं दिख रहा है, लेकिन फिर भी मालिक है। इससे पता चलता है कि वहाँ के ग्रामीण जाति-पदानुक्रम में पुथिरै वन्नार जाति सबसे निचले पायदान पर है। जाति-व्यवस्था की स्वाभाविक विशेषताओं के चलते सबसे निचले सोपान पर रहने वाली जाति अपने से ऊपर की सभी जातियों द्वारा उत्पीड़ित होती है। इसी कारण इलाके का मजदूर भी छोटी जाति के लोगों को अपमानित करने से नहीं चूकता, भले अपने मालिक से खुद लात-गाली खाए।


इस उत्पीड़क व्यवस्था के बरक्स योसाना की ज़िंदगी की खूबसूरती, अल्हड़पन और निर्दोषिता उसे एक इंसान के रूप में विकसित कर रही है। फिल्म के उसी दृश्य की अगली कड़ी में योसाना अपनी माँ को पेड़ के पीछे छिपी छोड़कर सिर पर गट्ठर उठाती हुई, निर्भीक घर की ओर जाती दिखती है। उसे समाज और उसकी मान्यताओं की न तो कोई परवाह है, न भय है।


योसाना किशोरावस्था में प्रवेश कर रही है। उसके सामने जंगली पक्षियों और फूलों की एक खूबसूरत दुनिया है। वह बेलौस जीना चाहती है। अभी-अभी उसके भीतर विपरीत लिंगी आकर्षण पैदा होना शुरू हुआ है। वह दिन के उजाले में हर जगह जाना चाहती है, लेकिन अपने निर्भीक स्वभाव के बावजूद अपने समाज पर थोपी हुई मान्यताओं के कारण दिन में हर जगह घूमने की वर्जना के चलते वह अपने आस-पास के संसार को छिपकर देखती है। नदी में नहाते ग्रामीण युवक को भी वह ऐसे ही देखती है।


वह मन ही मन उस युवक से प्रेम करती है। वह गाँव की किसी अछूत जाति का लड़का है। जब वह नदी में नहाने आता है तो योसाना उसे छिप छिपकर देखती है। लेकिन इस प्रेम की परिणति बहुत भयानक होती है। मदाथी देवी की स्थापना की रात वह युवक और उसके दोस्त शराब पीते हैं। इस दौरान उनमें से एक की नज़र योसाना पर पड़ जाती है। नशे में धुत्त सभी युवक उसके साथ बलात्कार करते हैं, जिनमें वह लड़का भी शामिल है। अंततः वह मर जाती है।


इस प्रकार जातिवाद के अंधेरे में धकेल दी गयी एक लड़की को आज़ादी और प्रेम की चाह में अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है। यह एक ऐसे सामाजिक यथार्थ का फिल्मांकन है, जिसकी तरफ लोकतन्त्र की वकालत करने वाले लोगों का ध्यान नहीं जाता या वे उतना ही लोकतन्त्र पसंद करते हैं, जितने से उनको कोई परेशानी न हो।


यह देख-सुनकर मैं एकदम से सन्न रह गयी। पहले तो लगा कि शायद यह कहानी ही है, लेकिन गूगल में खोजने पर मिला कि तमिलनाडु में रहने वाली पुथिरै वन्नार जाति वास्तव में अछूत है, जिसे लोगों के सामने आने की सख्त मनाही है। विचित्र है कि इन्हें समाज के सामने नहीं आना है, छुपकर रहना है लेकिन काम ऊँची जाति के लोगों के कपड़े धोना है।


सवाल यह भी है कि जब ये इतने अशुद्ध और अछूत हैं तो फिर इनके द्वारा धोये कपड़े तथाकथित शुद्ध लोग कैसे पहन लेते हैं? सिर्फ पहनने-बिछाने के कपड़े ही नहीं, बल्कि ऊँची जाति की महिलाओं के माहवारी के कपड़े भी इन्हें ही धोना होता है। यह बहुत ही घृणित और वीभत्स प्रथा है, जहाँ लोग खुद की गंदगी भी साफ़ करने में घिनाते हैं, वहीं ये लोग दूसरों का नरक धो रहे हैं। महिलाएं अपनी माहवारी के कपड़े दूसरों से धुलवाती हैं।


मुझे तो फिल्म देखते हुए यह ख्याल आया कि महिलाएं कैसे माहवारी का कपड़ा पहुंचाने के लिए घर के नौकर को देती होंगी? वे क्या नौकरों को बताती होंगी कि इसमें माहवारी के कपड़े हैं? या फिर उस काम के लिए अलग से ही कोई नौकर रखा जाता होगा, जिसे पूछने या बताने की जरूरत नहीं पड़ती होगी? नदी में माहवारी के कपड़े धोते समय लाल होते पानी को देखते ही योसाना उस महिला को कोसते हुए मन ही मन गालियां देती हैं। उसके चेहरे पर गुस्सा और घिन के भाव दीखते हैं।
कपड़े धोते हुए पानी का लाल होना इस बात की ओर इंगित कर रहा है कि हजारों वर्षों से वे दूसरों की गंदगी धो रहे हैं और समाज उनके दम पर सुखभोग कर रहा है और दूसरी ओर अस्पृश्य समाज को प्रताड़ित कर उसका खून निचोड़ ले रहा है। जो दुनिया का नरक साफ़ कर रहे हैं, उन्हें ही नरक का द्वार कह कर अशुद्ध मान रहा है। कैसे दलितों-शूद्रों को दबाया जाये और उन्हें प्रताड़ित किया जाये, इसका उपाय हमेशा से ही ब्राह्मणवादी समाज ने अपने स्मृतियों और पुराणों में लिख रखा है। धर्म और भगवान का डर दिखाकर कोई भी नियम उन पर लादा जा सकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

तालिबान की वापसी

Tue Sep 28 , 2021
अफगानिस्तान की सत्ता में तालिबान की वापसी को लेकर कुछ भारतीय मीडिया प्लेटफाम्र्स और कथित सामरिक विशेषज्ञ कई तरह से विश्लेषण कर रहे हैं। कई को यह तालिबान के समक्ष अमेरिका के समर्पण जैसा कुछ लग रहा है, कुछ को इसमें वियतनाम की छवि दिखाई दे रही है, मानो वियतनामियों […]
क्या हम आपकी कोई सहायता कर सकते है?