पुस्तक समीक्षा जंगलात को आइना दिखाती एक जंगल बुक व्यापार से जुड़े जंगल की चुनौतियों से पार पाने में प्रवर्तन निदेशालय की भूमिका क्या है? क्या वह उसे पूरी ईमानदारी और क्षमता के साथ वाकई निभा रहा है? जंगल के प्रति हमारा नज़रिया कैसे बदले? जंगल के भविष्य की संभावनायें […]

भारत में कोयला क्षेत्र को दिए जाने वाले अंतर्राष्ट्रीय ऋण में जापान और चीन का दबदबा है। कर्ज देने वाले वित्तीय संस्थानों में जेबीआईसी, जेआईसीए, चाइना एक्जिम बैंक, मिज़ूहो कॉरपोरेशन बैंक लिमिटेड, इंडस्ट्रियल एंड कमर्शियल बैंक ऑफ चाइना तथा अन्य शामिल हैं। सेंटर फॉर फाइनेंशियल अकाउंटेबिलिटी की नई रिपोर्ट ‘द […]

कर लो दुनिया मुट्ठी में का नारा देकर हर हाथ में मोबाइल पकड़ा देने का अनुभव, एक दिन अपसंस्कृति बढाने वाला साबित होगा, क्या किसी ने सोचा था? मोबाइल ने किताबें पढ़ने की संस्कृति का ह्रास किया है। उत्तराखंड से आई यह रिपोर्ट बताती है कि आज के युवाओं की […]

विनोबा ने गीता, भागवत, धम्मपद, जपुजी, कुरआन आदि अनेक धर्मग्रंथों के नवनीत लिखे हैं। इसके पीछे उनका मन्तव्य दिलों को जोड़ने का रहा है। ख्रिस्त धर्म सार इसी योजना की अगली कड़ी है। इसमें विनोबा ने न्यू टेस्टामेंट का सार सर्वस्व लिखा है। प्रस्तुत है यह तीसरी कड़ी। अक्रोध- तुम […]

स्वास्थ्य यह प्राकृतिक नियम है कि जो साग-सब्जियां, फल, अनाज आदि जिस मौसम में पैदा होते हैं, उस मौसम के वे ही उपयुक्त खाद्य होते हैं, परंतु अनेक लोग डिब्बाबंद या कोल्ड स्टोरेज में रखे बासी व महंगे खाद्य पदार्थ खाते हैं, जिनका खाद्य तत्व बहुत कुछ नष्ट हो चुका […]

साक्षात्कार सिंगापुर में अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की 17 वीं एशिया पैसिफिक क्षेत्रीय बैठक में 16 दिसम्बर को अपनी टिप्पणी में आईएलओ के महानिदेशक और टोगो के पूर्व प्रधानमंत्री गिल्बर्ट एफ होंगबो ने सामाजिक न्याय के लिए वैश्विक गठबंधन के विकास की दिशा में विचार विमर्श जारी रखने की उम्मीद ज़ाहिर […]

हम अक्सर भूल जाते हैं कि आग हमें प्रकाश दे सकती है, तो जला भी सकती है। सम्यक् विवेक एवं सद्बु़द्धि से ही सूचना प्रौद्योगिकी का भी उद्देश्यपूर्ण सदुपयोग किया जा सकता है। समाज को इस दिशा में विचार करना होगा। समाज का एक हिस्सा यह मानता है कि मानव-समाज-राष्ट्र […]

कुछ लोगों का कहना है कि 1971 के बाद से गफ़ूर विरोध आधारित आंदोलन के लिए आरएसएस से हाथ मिलाने तक जेपी पर मक्खियाँ भिनक रहीं थीं. आइये, इतिहास के उस दौर पर एक नजर डालें. शरारत, झूठ और अज्ञान मिलकर शैतानियत पैदा करते हैं. इसके बदले सच, हमदर्दी और […]

देश अपनी नौजवान, किन्तु बेरोजगार पीढ़ी की पीड़ाओं से कराह रहा है। जब आदमी बेरोजगार हो जायेगा, तब उसकी जेब में पैसे कहां से आएंगे? उसकी आर्थिक जरूरतों की पूर्ति कैसे होगी? इस प्रश्न का उत्तर न लोकतंत्र के पास है, न विज्ञान और टेक्नॉलॉजी के पास है और न […]

राम मनोहर लोहिया की दृष्टि में यों तो हरेक देश का अपना इतिहास होता है, इतिहास की राजनीतिक, साहित्यिक और दूसरे तरह की कई घटनाएं होती हैं। इतिहास की घटनाओं की एक लम्बी जंजीर होती है, उनको लेकर ही कोई सभ्यता और संस्कृति बनती है। उनका दिमाग पर असर रहता […]

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