‘स्वाधीनता आन्दोलन और साहित्य’ पुस्तक का लोकार्पण हमारी भाषाओं की समृद्ध परंपरा ने यहां के सामाजिक, नैतिक, आर्थिक और राजनैतिक क्षेत्र को हमेशा संबल दिया है और सभ्यता, जीवन-मूल्य तथा परंपरा की रक्षा की है। अवधी, उर्दू, असमिया, उड़िया, कन्नड़, कश्मीरी, गुजराती, तमिल, तेलुगु, पंजाबी, बघेली, बुंदेलखंडी, बांग्ला, निमाड़ी, मणिपुरी, […]

अजमेर घोषणा-पत्र जारी जिस विचारधारा का देश के इतिहास, देश के राष्ट्रीय गीत, देश के झंडे, देश के संविधान और देश की बहुलतावादी संस्कृति पर विश्वास नहीं है, उसे सत्ता में रहने का भी हक़ नहीं है। 25-26 फरवरी को अजमेर में जुटे देशभर के गांधीजनों के सम्मेलन में देश […]

लोहिया निरंतर आध्यात्मिकता और नैतिकता के बीच, श्रेय और प्रेय के बीच पुल बनाने के प्रयास में लगे रहे। वे मानते थे कि आध्यात्मिकता शाश्वत है लेकिन हर युवा को, हर समाज को, हर व्यक्ति को अपनी नैतिकता स्वयं खोजनी पड़ती है। वे भारतीय समाज को बार-बार जड़ इसलिए कहते […]

गांधी अपने जीवन के हर आयाम में अहिंसक होने की कोशिश करते थे। ये कोशिश उन्हें बहुत ही विनम्र और साहसी बनाती थी। वे किसी को भी मृत्युदंड दिए जाने के विषय में बहुत विनम्रता से विचार करते हैं। वे भगत सिंह ही नहीं, किसी भी व्यक्ति को मृत्युदंड दिए […]

गणेश शंकर विद्यार्थी ने न केवल ‘प्रताप’ वरन स्वतंत्रता आन्दोलन के दौर की पत्रकारिता के मूल्यों, देश की जनाकांक्षाओं से उसकी प्रतिबद्धता, समाज और जीवन के हर क्षेत्र में अपनी स्वप्नशील भावी दृष्टि का परिचय और संकल्प व्यक्त कर दिया था। भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के ऐतिहासिक जन-संघर्ष में ‘आजाद पत्रकारिता’ […]

हाइड्रोलॉजिस्ट्स और संरक्षणवादियों का कहना है कि अर्जेंटीना में लीथियम खनन अपने क्षेत्र के नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र को रेगिस्तान में बदलने के लिए तैयार है। उच्च एंडीज के स्वदेशी लोगों का आरोप है कि उनके आस-पास का पानी, जिस पर वे घरेलू उपयोग के लिए भरोसा करते हैं, चरागाहों को […]

आखिर बेरोजगारी से पिटी हुई एक आर्थिकी कितना बोझ सह सकती है? रोजगारविहीन आर्थिकी अंततः बाजार में मांग को कमजोर हीं नहीं, चौपट भी कर देती है। सरकार के राजस्व में कमी आती है और फिर सरकार को टैक्स बढ़ाना पड़ता है, जिससे मंहगाई बढ़ती है और यह सर्कल अराजकता […]

सरकार के प्रोत्साहन और नीतियों ने ऑनलाइन बाजार को मजबूती दी है. हमारे पास-पड़ोस के भाइयों के रोजगार बड़ी तेजी से टूट रहे हैं, बल्कि ऐसे कह सकते हैं कि हम सब खुद ऑनलाइन के मोहजाल में फंसकर अपने रोजगार को तोड़ रहे हैं. जिसकी दुकान लगातार कमजोर हो रही […]

राजनीतिक प्रस्ताव सर्वोदय समाज और सर्व सेवा संघ ने अपनी 75 वर्षों की लम्बी यात्रा में लोकतंत्र पर आये तमाम संकट देखे हैं और उनका सामना भी किया है। इन संकटों में ‘आपातकाल’ प्रमुख है। उस दौर का हमारा संघर्ष, भारत में लोकतंत्र की बहाली के काम में महत्त्वपूर्ण साबित […]

सकल घरेलू उत्पाद केंद्रित विकास को पुनर्परिभाषित करना जरूरी है. क्या बिल्कुल जीडीपी सेंट्रिक विकास ही विकास है? सिर्फ सड़कें चौड़ी हो जाना विकास है? सिर्फ इमारतों का ऊंचा हो जाना विकास है? और सिर्फ पहाड़ों में से सुरंग बन जाना विकास है? अनुपम मैं कई बार कहता हूं कि […]

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