सभ्यताओं के सामने जो संघर्ष होते हैं, वे सभ्यता के संघर्ष नहीं होते. जब द्रविड़ और आर्य भारत में आकर बसे, तो उनकी तहजीबों के बीच कोई संघर्ष नहीं था. आर्यों ने द्रविड़ों से और द्रविड़ों ने आर्यों से बहुत कुछ सीखा. आज गांधी से बड़ा दूसरा कोई मजहब और […]

हम लोगों को प्रभावित करें या न करें, गांधी साहित्य लोगों को अवश्य प्रभावित करेगा. ऐसा मेरा अपना मानना है. मैं विगत 23 सालों से जहां भी जाता हूं, गांधीजी की आत्मकथा बांटता हूं और लोगों के जीवन में अंतर आता है. लोगों का आक्रोश, उनकी नफरत, उनकी बोलने की […]

महत्वाकांक्षी हुए बिना भी स्वच्छ और प्रामाणिक जीवन जिया जा सकता है. महत्वाकांक्षा अपनेआप में एक हिंसक शब्द है. जिस देश में अस्सी करोड़ लोग सरकार द्वारा दिए जा रहे 5 किलो अनाज पर जिन्दा हैं, इतने गरीब और पिछड़े हुए देश में महत्वाकांक्षी होने की बात हम सोच भी […]

स्वराज क्या है, इसे समझने से पहले यह समझना जरूरी है कि स्वराज क्या नहीं है. स्वराज क्या है, इसे विनोबा ने स्वराज्य शास्त्र लिखकर समझाया. सर्वसहमति से लिए गये फैसलों की प्रक्रिया से कोई एक आदमी भी छूटना नहीं चाहिए. जबतक कोई एक भी असहमत है, तबतक निर्णय नहीं […]

हम जो कुछ भी विकास के नाम पर करते हैं, उसका कोई न कोई सामाजिक मूल्य भी होता है. वह केवल आर्थिक नहीं हो सकता, इस सामाजिक मूल्य का भी आकलन होना चाहिए और उसके आधार पर तय करना चाहिए कि सचमुच हम जिसको फायदेमंद मान रहे हैं, उसका कोई […]

आज और कल के चक्र को समझना होगा. आज के सवालों के जवाब हमारे पास होने चाहिए, उनसे लड़ने की रणनीति हमारे पास होनी चाहिए और भविष्य का नक्शा भी हमारे पास होना चाहिए, तब जाकर बात बनेगी. कुमार प्रशांत गाँधी तो स्वेच्छा से चुनी हुई गरीबी को स्वीकारने की […]

पूंजीवाद से उपजी आर्थिक असमानता का उपाय, जो गाँधी बता रहे हैं, वह ट्रस्टीशिप और अपरिग्रह है. हिंसा के विषय में भी गांधी से बढ़कर कोई दूसरा पैगम्बर पिछले हजार दो हजार साल में नहीं हुआ. अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस के नेता नेल्सन मंडेला अतिरेक में हिंसा के रास्ते चले गये. […]

विनोबा कहते थे कि वे गांधी के कंधे पर बैठे हैं, इसलिए विनोबा और आगे तक देखते हैं. भूदान और विनोबा को नए सिरे से हम सब को समझना होगा. अब जरूरी है कि विनोबा के कंधे पर हम कैसे बैठें? हमें याद रखना होगा कि गांधी के विचार और […]

अगर बुनियादी परिवर्तन के लिए काम करना हो, तो भारत के संविधान में ‘समाजवादी’ शब्द की जगह ‘सर्वोदय’ शब्द जोड़ने के बारे में सोचा जा सकता है. चन्दन पाल सर्वोदय बापू की नजर में एक ऐसा शक्तिशाली महामंत्र है, जो मनुष्य समाज को साम्राज्यवाद, पूंजीवाद, साम्यवाद और समाजवाद से आगे […]

हम गांधी परिवार के लोग हैं, जो सामूहिकता से संधान में विश्वास रखते हैं. जब हम खुद से उठकर सबमें समाते हैं, तो सर्वोदय का उदय होता है. सोमनाथ रोड़े विनोबा ने विज्ञान और अध्यात्म के संयोग से एक सुन्दर समाज बनाने का लक्ष्य हमारे सामने रखा था. हिंसा और […]

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