बाबा ने कहा कि पैदल चलने का कोई व्रत नहीं लिया है, क्योंकि व्रत तो सत्य, अहिंसा आदि का लिया जाता है, फिर भी मैं पैदल ही यात्रा पर निकलूंगा। हां, मेरे मन में यह अवश्य था कि पवनार आश्रम में जो साम्ययोग का प्रयोग शुरू हुआ है, उसको कुछ आकार मिल जाता, तब बाहर निकलना अच्छा होता। बाबा की तबियत भी इस समय बहुत अच्छी है, ऐसा भी नहीं कहा जा सकता, लेकिन यह सब चीजें गौण हैं, फिर भी मैं इसे ईश्वर की इच्छा मानकर सर्वोदय सम्मेलन में जाने का निर्णय ले रहा हूं।
सर्वसेवा संघ की छः मार्च 1951 को सेवाग्राम में हुई एक बैठक में एक भाई ने बाबा से पूछा कि आप शिवरामपल्ली में आयोजित होने वाले सर्वोदय सम्मेलन में आने वाले हैं या नहीं? बाबा ने कहा कि मेरा आने का विचार नहीं है। उस भाई ने बड़े दुखित मन से लेकिन दृढ़ता के साथ बाबा से कहा कि सर्वोदय समाज और सर्वोदय सम्मेलन आपकी ही प्रेरणा के फल हैं। अभी बाल्यावस्था में हैं। दूर-दूर से सेवक सत्संग के लिए आयेंगे और आपका नेतृत्व न मिलने से निराश लौट जायेंगे। ऐसी हालत में आप न आएं तो कैसे चलेगा? इससे तो बेहतर होगा, सम्मेलन का आयोजन बंद ही कर दिया जाय। इसके आगे बाबा के न जा पाने की दिक्कतों और जिम्मेदारियों पर भी कुछ चर्चा हुई, लेकिन बाबा क्षण भर के लिए स्तब्ध हो गये और गंभीरता से कुछ सोचते रहे।
उसके बाद बाबा ने कहा कि अच्छा, मैं आऊंगा। बाबा अपना कार्यक्रम बताने लगे कि कल सुबह मैं सेवाग्राम से यात्रा के लिए प्रस्थान करूंगा। पहले यहां से पवनार जाऊंगा, वहां से परसों 8 मार्च को सुबह सम्मेलन में शामिल होने शिवरामपल्ली, आंध्रप्रदेश के लिए पैदल ही निकलूंगा। रोज करीब पंद्रह मील चलने की योजना बनी। बाबा ने कहा कि पैदल चलने का कोई व्रत नहीं लिया है, क्योंकि व्रत तो सत्य, अहिंसा आदि का लिया जाता है, फिर भी मैं पैदल ही यात्रा पर निकलूंगा। हां, मेरे मन में यह अवश्य था कि पवनार आश्रम में जो साम्ययोग का प्रयोग शुरू हुआ है, उसको कुछ आकार मिल जाता, तब बाहर निकलना अच्छा होता। बाबा की तबियत भी इस समय बहुत अच्छी है, ऐसा भी नहीं कहा जा सकता, लेकिन यह सब चीजें गौण हैं, फिर भी मैं इसे ईश्वर की इच्छा मानकर सर्वोदय सम्मेलन में जाने का निर्णय ले रहा हूं।
मुझे उम्मीद है कि जिन युवा साथियों ने यह काम पूरा करने की शपथ ली है, वे इसे ईश्वर का काम मानकर, यदि निरहंकारता पूर्वक काम में जुटे रहेंगे, तो उन्हें यहां की मेरी गैरहाजिरी महसूस नहीं होगी, बल्कि उत्साह देने वाली ही साबित होगी।
बाबा ने यात्रा शुरू करते हुए कहा कि इस प्रवास में अपनी कुछ भी कल्पना लेकर नहीं जा रहा हूं। सहजता से जो होगा,वह होने दूंगा। अमुक प्रकार से यात्रा करनी है, अमुक काम करवा लेना है, अमुक बात सिद्ध करनी है, ऐसी कोई भी बात मेरे मन में नहीं है। जगह-जगह जो भी भले लोग मिलेंगे, उनसे सहज मिलना और लोगों की जो कठिनाइयां होंगी, उनको हल करने का कुछ रास्ता बता सकूं तो उनको बताना, अभी बस इतना ही मन में है। आगे का विचार अभी कुछ भी नहीं किया है। आगे का हैदराबाद पहुंचने के बाद सोचना होगा। पवनार में जो साथी प्रयोग में लगे थे, बाबा ने उनसे कहा कि आप सबके साथ यद्यपि मेरा शरीर कुछ दिन नहीं रहेगा, तो भी मेरा मन यहीं रहेगा, ऐसा अनुभव आप सभी को होगा। आप सबके साथ प्रत्यक्ष रहकर जितनी तीव्रता से मैं यहां के प्रयोगों में लगा रहता हूँ, यह कह सकता हूं कि उससे कम तीव्रता मेरी नहीं रहेगी। मुझे उम्मीद है कि जिन युवा साथियों ने यह काम पूरा करने की शपथ ली है, वे इसे ईश्वर का काम मानकर, यदि निरहंकारता पूर्वक काम में जुटे रहेंगे, तो उन्हें यहां की मेरी गैरहाजिरी महसूस नहीं होगी, बल्कि उत्साह देने वाली ही साबित होगी। – रमेश भइया