बाबा ने इसे इस बात का ईश्वरीय संकेत माना कि अभी समाज में बहुत भूमिहीन लोग हैं, जिनको जमीन की जरूरत है, इसलिए हमें और जमीन मांगने के लिए आगे बढ़ना चाहिए।
बाबा का मानना था कि किसान का जीवन सबसे ज्यादा पवित्र है। वह परमेश्वर के ज्यादा नजदीक रहता है। बाबा विनोबा जिस दिन पहला भूदान प्राप्त हुआ, उस दिन बाबा बहुत बेचैन रहे और सोचते रहे कि हमने तो केवल 80 एकड़ जमीन मांगी थी, लेकिन यहां तो सौ एकड़ की प्राप्ति हो गई। बाबा ने इसे इस बात का ईश्वरीय संकेत माना कि अभी समाज में बहुत भूमिहीन लोग हैं, जिनको जमीन की जरूरत है, इसलिए हमें और जमीन मांगने के लिए आगे बढ़ना चाहिए। बाबा की यात्रा 19 अप्रैल को नलगोंडा जिले के तंगलपल्ली गांव पहुंची। वहां भी बाबा को जमीन दान में मिली।
उस गांव से 11 मील की यात्रा करके बाबा सरवेल गांव पहुंचे। वहां बाबा ने कहा कि मेरी यात्रा का प्रयोजन यह है कि मैं आप लोगों से मिल सकूं, आपके सुख दुख सुन सकूं, आपसे संपर्क कर सकूं, आपसे संबंध कायम कर सकूं, इसीलिए आज आपके बीच आया हूं। दोपहर में भोजन के बाद बाबा प्रायः विश्राम करते थे, इस समय में कुछ पत्रों के जबाव आदि लिखना शामिल होता था। शाम को 5 बजे गांव वालों के साथ बात करते, उसके बाद प्रार्थना करते थे और रात को भगवान को याद करते हुए सो जाते थे। सबेरे फिर अगले मुकाम के लिए चल पड़ते।
इसलिए किसान का जीवन अत्यंत पवित्र है। अपार कष्ट सहने पर भी फसल आने पर वह यह नहीं मानता है कि यह फसल उसके कष्ट सहने से आई है। वह उसे परमेश्वर की कृपा ही समझता है। कदम-कदम पर वह परमेश्वर के प्रति कृतज्ञता महसूस करता है।
मानव देह का उद्देश्य यही है कि परमेश्वर से उसका नाता जुड़ जाए। किसान के जीवन में तो नित्य परमेश्वर का संबंध आता है। बारिश हुई, तो वह परमेश्वर का उपकार मानता है। नहीं हुई, तो उसी का स्मरण करता है। इसलिए किसान का जीवन अत्यंत पवित्र है। अपार कष्ट सहने पर भी फसल आने पर वह यह नहीं मानता है कि यह फसल उसके कष्ट सहने से आई है। वह उसे परमेश्वर की कृपा ही समझता है। कदम-कदम पर वह परमेश्वर के प्रति कृतज्ञता महसूस करता है। परमेश्वर का आधार केवल किसान को ही नहीं होता. सभी का यही हाल है।
मनुष्य की एक सांस भी परमेश्वर की इच्छा के बगैर नहीं चलती है। लेकिन परमेश्वर के साथ हमारा सीधा सम्बन्ध है, यह बहुत कम लोग महसूस करते हैं। किसान ज्यादा महसूस करता है। हमें अपने जीवन में हरएक काम का परमेश्वर के साथ संबंध जोड़ना सीखना चाहिए। अगर इस तरह हम भगवान से संबंध जोड़ सकें, तो हमें पता चलेगा कि उसने हमें कितना कुछ दिया है, कितनी नियामतें दी हैं। उसने हमें जो नियामतें दी हैं, वे बेहिसाब हैं।उनकी कोई गिनती नहीं हैं। उसने हम पर क्या उपकार नहीं किया है! परमेश्वर की देनों का हम ठीक उपयोग करें और उसका नियमित स्मरण करें, तो इस दुनिया में कोई मनुष्य दुखी नहीं रह सकता। हम काम क्रोध आदि को जीतें, एक दूसरे से प्यार करें, परमेश्वर की देनों का सदुपयोग करना सीखें,अपनी हरएक कृति का संबंध परमेश्वर से जोड़े, सुख और दुख में उसका स्मरण करें, तो सर्वोदय तो होकर ही रहेगा।
मैं सर्वोदय जगत का सच्चा कार्यकर्ता हु