जिस नाप से तुम नापते हो, उसी से तुम भी नापे जाओगे

यीशु ने अपने अनुयायियों को अधिकारी पुरुष की भाँति उपदेश दिये

विनोबा ने गीता, भागवत, धम्मपद, जपुजी, कुरआन आदि अनेक धर्मग्रंथों के नवनीत लिखे हैं। इसके पीछे उनका मन्तव्य दिलों को जोड़ने का रहा है। ख्रिस्त धर्म सार इसी योजना की अगली कड़ी है। इसमें विनोबा ने न्यू टेस्टामेंट का सार सर्वस्व लिखा है। प्रस्तुत है अगली कड़ी।

उपवास- जब तुम उपवास करो, तो ढोंगियों की भांति तुम्हारे मुंह पर उदासी न छायी रहे, क्योंकि वे अपना मुंह बनाये रहते हैं, ताकि लोग उन्हें उपवासी जानें। मैं तुमसे सच कहता हूं कि वे अपना प्रतिफल पा चुके। जब तुम उपवास करो तो अपने सिर पर तेल मलकर मुंह धो लो, ताकि लोग नहीं, वह पिता, जो अन्तर्यामी है, यह जाने कि तुम उपवास कर रहे हो। तुम्हें प्रतिफल मिलेगा।

-मत्ती 6.16-18

अपरिग्रह- अपने लिए पृथ्वी पर धन इकट्ठा न करो; कीड़ा उसे खाकर नष्ट करता है और चोर उसमें सेंध लगाते हैं। स्वर्ग में धन इकट्ठा करो, क्योंकि जहां तुम्हारा धन है, वहां चित्त भी लगा रहेगा। शरीर का दीपक आंख है, इसलिए यदि तेरी आंख निर्मल हो, तो तेरा सारा शरीर प्रकाशमय होगा, परंतु यदि आंख दोषपूर्ण हो, तो सारा शरीर अंधकारमय होगा; इस अंधकार में प्रकाश का अंधकार भी गहरा होगा।

-मत्ती 6.19-23

ईश्वर का आश्रय- कोई मनुष्य दो स्वामियों की सेवा नहीं कर सकता, तुम भी ईश्वर और धन दोनों की सेवा नहीं कर सकते। इसलिए यह चिन्ता न करना कि हम क्या खायेंगे, क्या पीयेंगे और क्या पहनेंगे? क्या जीवन भोजन से और शरीर वस्त्र से बढ़कर नहीं? आकाश के पक्षियों को देखो। वे न बोते हैं, न काटते हैं और न बटोरते हैं; तो भी तुम्हारा परमपिता उन्हें खिलाता है, क्या तुम उनसे अधिक मूल्य नहीं रखते? तुममें से कौन है, जो चिन्ता करके अपनी आयु की डोरी एक हाथ भी बढ़ाने में समर्थ है? वस्त्र के लिए क्यों चिन्ता करते हो? जंगली फूलों-सोसनों का ध्यान करो कि वे कैसे बढ़ते हैं। वे न तो परिश्रम करते, न कातते हैं। जब ईश्वर मैदान की घास का वस्त्र पहनता है, तो अल्प-विश्वासियों, तुमको वह क्योंकर न पहनायेगा? पहले तुम उसके राज्य और उसके उपयुक्त धार्मिकता की खोज करो, ये सब वस्तुएं भी तुम्हें मिल जायेंगी। कल के लिए चिन्ता न करो, क्योंकि कल का दिन अपनी चिन्ता आप कर लेगा, आज के लिए आज ही का दु:ख बहुत है।

-मत्ती 6.24-34

दूसरों के काजी मत बनो- किसी पर दोष मत लगाओ, ताकि तुम पर भी दोष न लगे; क्योंकि जिस कसौटी से तुम तौलोगे, वही तुम पर भी लागू होगी और जिस नाप से तुम नापते हो, उसी से तुम भी नापे जाओगे। क्यों अपने भाई की आंख का तिनका देखते हो और अपनी आंख का लट्ठा भी तुम्हें नहीं सूझता? हे ढोंगी। पहले अपनी आंख में से लट्ठा निकाल ले, तब तू अपने भाई की आंख का तिनका भलीभांति देखकर निकाल सकेगा।

-मत्ती 7.1-5

मांगो तो दिया जायेगा- मांगो तो तुम्हें दिया जायेगा; खोजो तो तुम पाओगे, खटखटाओ तो तुम्हारे लिए खोला जायेगा। तुममें से ऐसा कौन मनुष्य है कि यदि उसका पुत्र उससे रोटी मांगे, तो वह उसे पत्थर दे? जब तुम बुरे होकर अपने बच्चों को अच्छी वस्तुएं देना जानते हो, तो तुम्हारा परमपिता अपने मांगने वालों को अच्छी वस्तुएं क्यों न देगा? जो कुछ तुम चाहते हो कि मनुष्य तुम्हारे साथ करे, तुम भी उनके साथ वैसा ही करो; क्योंकि ईश्वरीय व्यवस्था की शिक्षा यही है।

-मत्ती 7.7-9, 11, 12

दुर्गम मार्ग- संकरे द्वार से प्रवेश करो, क्योंकि विशाल है वह द्वार और विस्तृत है वह मार्ग, जो विनाश को पहुंचाता है और बहुतेरे हैं, जो उससे प्रवेश करते हैं, क्योंकि संकरा है वह द्वार और संकुचित है वह मार्ग, जो जीवन को पहुंचाता है और थोड़े हैं, जो उसे पाते हैं। -मत्ती 7.13, 14
फलों से पेड़ की पहचान- झूठे संदेष्टाओं से सावधान रहो, जो भेड़ों के भेष में तुम्हारे पास आते हैं, परंतु भीतर से फाड़ खाने वाले भेड़िये हैं। उनके फलों से तुम उन्हें पहचान लोगे, क्योंकि कांटों से अंगूर या ऊंटकटारों से अंजीर नहीं तोड़ी जाती। अच्छा पेड़ अच्छा फल लाता है और निकम्मा पेड़ बुरा फल लाता है। जो पेड़ अच्छा फल नहीं लाता, वह काटा और आग में डाला जाता है। अत: उनके फलों से तुम उन्हें पहचान लोगे। जो मुझसे हे प्रभु, हे प्रभु कहता है, वह हरएक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करेगा, ऐसी बात नहीं; वही प्रवेश करेगा, जो मेरे परमपिता की इच्छा के अनुसार चलता है।

-मत्ती 7. 15-23

कर्मानुसार फल- जो कोई मेरी ये बातें मानता है, वह उस बुद्धिमान मनुष्य की तरह ठहरेगा, जिसने अपना घर चट्टान पर बनाया। वर्षा हुई, बाढ़ें आयीं, आंधियां चलीं, थपेड़े लगे, परंतु वह नहीं गिरा, क्योंकि उसकी नींव चट्टान पर डाली गयी थी। जो कोई मेरी बात पर नहीं चलता, वह उस मूर्ख मनुष्य की तरह ठहरेगा, जिसने अपना घर बालू पर बनाया और वर्षा, बाढ़ तथा आंधियों में उस घर पर थपेड़े लगे और वह घर ढह गया।

जब यीशु ये बातें कह चुका, तो भीड़ उसकी बातों से चकित हुई, क्योंकि वह उनके कर्मकांडी शास्त्रियों के समान नहीं, परंतु अधिकारी पुरुष की भांति उन्हें उपदेश देता था।

-मत्ती 7. 24-29

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

सबसे बड़ा चिकित्सक है हमारा मन

Wed Jan 25 , 2023
स्वास्थ्य मन शरीर का नियंता, संचालक, स्वामी तथा चिकित्सक सभी कुछ है। सत्तर के दशक के बाद दिमाग से निकलने वाले दर्जनों जादुई, चमत्कारिक न्यूरोट्रांसमीटर्स की खोज के बाद मन के तन पर होने वाले प्रभावों की व्यापकता का पता चला। हर व्यक्ति के अंदर एक महान चिकित्सक छिपा हुआ […]
क्या हम आपकी कोई सहायता कर सकते है?