समाज के लोगों को लेना तो आता है, लेकिन देना नहीं आता, वही सिखाना है।
बाबा ने केवल भूदान नहीं कहा, बल्कि भूदान यज्ञ नाम रखा, क्योंकि भूदान तो कोई धनिक ही करेगा, लेकिन यज्ञ में तो छोटा बड़ा हर कोई भी भाग ले सकेगा। बाबा का कहना था कि हमें मुल्क भर में देने की वृत्ति बढ़ानी है, एक हवा का निर्माण करना है। समाज के लोगों को लेना तो आता है, लेकिन देना नहीं आता, वही सिखाना है। बाबा ने एक दिन आश्चर्य से कहा कि क्या लोग पागल हो गए हैं, जो हम जैसे फकीर के मांगने पर जमीन देते ही जा रहे हैं? शायद उन्होंने समझ लिया है कि अब क्रांति टल नहीं सकती। उन्हें यह विश्वास हो गया है कि अहिंसक क्रांति इसी तरीके से आ सकती है, इसलिए जमीन दिये जा रहे हैं। बाबा की जयंती के अगले दिन बाबा की यात्रा सेलडोह गांव से नागपुर होती हुई प्रतिदिन औसतन पंद्रह-सोलह मील की पदयात्रा कर छिंदवाड़ा मध्य प्रदेश पहुंची।
बाबा की पदयात्रा एक नई अहिंसक क्रांति का बिगुल बजाते हुए आगे बढ़ती जा रही थी। साथियों में उत्साह आना स्वाभाविक ही था। साथ-साथ यह अद्भुत और सभी को आश्चर्यचकित कर देने वाली यात्रा देश-विदेश के लोगों का ध्यान भी आकृष्ट कर रही थी। समाज में जिस निष्ठा का निर्माण हो रहा था, वह तो विश्वास करने लायक भी नहीं थी कि समाज में प्रेम से मांगने पर जमीन जैसी प्रिय वस्तु भी दान में मिल सकती है। हमारे पूर्व के इतिहास में इस प्रकार के उदाहरण दृष्टिगोचर नहीं हो रहे थे। 30 सितंबर को बाबा छिंदवाड़ा जिले के अंतिम पड़ाव गौरझामर गांव में थे, वहां बाबा के द्वारा एक जीवनमंत्र श्लोक की रचना की गई।
वेद वेदांत गीतानाम, बिनुना सार उद्धृत:। ब्रह्म सत्यम,जगत स्फूर्ति:, जीवनम सत्य शोधनम।।
बाबा की जयंती के एक दिन बाद निकली यात्रा गांधी जी की जयंती से एक दिन पूर्व सुरखी गांव, जिला सागर, मध्य प्रदेश में थी. अगले दिन पूज्य बापू की पावन जयंती 2 अक्टूबर को सागर शहर में आयोजित सभा में बाबा ने भारत की कुल उपजाऊ जमीन का छठा हिस्सा; अर्थात पांच करोड़ एकड़ उपजाऊ जमीन की मांग का संकल्प लिया। नवंबर माह के मध्य में दिल्ली की बैठक में भाग लेने के लिए निरंतर चलना ही एक मात्र उपाय था और बाबा अपनी गति से सागर से झांसी, टीकमगढ़, मुरैना और आगरा होते हुए एक नवंबर को कृष्ण भगवान की नगरी मथुरा पहुंचे, जहां उत्तरप्रदेश के रचनात्मक कार्यकर्ताओं का दो दिन का सम्मेलन आयोजित किया गया था। यहां बाबा का कार्यकर्ताओं में उत्साह बढ़ाने वाला अद्भुत संबोधन हुआ था। -रमेश भइया