यह मेरा प्रजासूय यज्ञ है। इसमें प्रजा का अभिषेक होना है। ऐसा राज जहां मजदूर, किसान, बाल्मीकि आदि सभी समझें कि हमारे लिए भी कुछ हुआ है। ऐसे समाज का ही नाम सर्वोदय है।
बाबा जमीन के बंटवारे में गणित वाली समानता भले नहीं चाहते थे, लेकिन भगवान की बनाई हुई उंगलियों वाली समानता समाज में जरूर चाहते थे। बाबा का कहना था कि भारत में स्वराज्य आने के बाद साम्ययोग अर्थात सर्वोदय की स्थापना का आदर्श पूर्ण करने के लिए गांव-गांव घूम रहा हूं। जिनके पास जमीन नहीं है, उनके पास कैसे जमीन पहुंचे, यही हमारी मुख्य चिंता बनी हुई है। बाबा तो समझाते भी थे कि यदि शरीर का वजन ज्यादा बढ़ गया हो, तो उसका वजन कम करना, उस पर दया करना या प्रेम करना ही पड़ेगा। इसी तरह जिसका वजन घट गया हो, उसकी हड्डियों पर कुछ मांस चढ़ा देना हमारा मुख्य कर्तव्य हो जाता है। उंगलियों वाली समानता के बारे में बाबा कहते थे कि हमारी पांचों उंगलियां बिल्कुल समान न होते हुए भी एक दूसरे के सहकार से रहती हैं और लाखों काम कर देती हैं। पांचों समान नहीं हैं, इसका अर्थ यह भी नहीं कि एक उंगली एक इंच की हो और दूसरी एक फिट की। यानी अगर समानता नहीं है, तो अत्यधिक विषमता भी नहीं चाहिए। पांचों उंगलियों की अलग अलग शक्तियां हैं। उन सारी शक्तियों का विकास होना जरूरी है। इसी को पंचायत धर्म कहते हैं।
पांचों उंगलियों की अलग अलग शक्तियां हैं। उन सारी शक्तियों का विकास होना जरूरी है। इसी को पंचायत धर्म कहते हैं।
बाबा से दिल्ली वालों की ओर से संदेश मांगा गया तो बाबा ने कहा कि मैं भिक्षा नहीं, हक मांगने और दीक्षा देने आ रहा हूं। बाबा कोई मठ, मंदिर, आश्रम के लिए जमीन मांगने नहीं निकले थे, बल्कि दरिद्र नारायण की ओर से उसका हक मांग रहे थे। बाबा की चिंता यह थी कि समाज के बड़े भारी भारी मसले हमारे सामने हैं, लेकिन उनमें से किसी एक का हल तो हम उस अहिंसक तरीके से निकालें, जो हमें गांधीजी ने सिखाया है और हिंदुस्तान की सभ्यता के अनुकूल है।
बाबा यह जो कुछ भी कर रहे थे, उसका हेतु त्रिविध परिवर्तन (प्रथम हृदय परिवर्तन, दूसरा जीवन परिवर्तन और बाद में समाज रचना में परिवर्तन) लाना ही था। ऐसा तिहरा इंकलाब समाज में लाने की बात बाबा के मन में थी। अश्वमेध यज्ञ के घोड़े की तरह मैं भी घूम रहा हूं। महाभारत में राजसूय यज्ञ का वर्णन है। यह मेरा प्रजासूय यज्ञ है। इसमें प्रजा का अभिषेक होना है। ऐसा राज जहां मजदूर, किसान, बाल्मीकि आदि सभी समझें कि हमारे लिए भी कुछ हुआ है। ऐसे समाज का ही नाम सर्वोदय है। उसी से प्रेरणा लेकर बाबा दिन रात पैदल घूम रहा है। -रमेश भइया