बहुत से लोग बाबा से सवाल पूछते थे कि अहिंसा क्या मानव तक ही सीमित है। बाबा कहते थे कि मनुष्य को अपनी चित्तशुद्धि के लिए मांसाहार छोड़ देना चाहिए।
अगर आप दुनिया में शांति चाहते हैं, तो प्राणियों का आहार आपको छोड़ना पड़ेगा। यह कहते हुए बाब कहा करते थे कि जब हम जयजगत कहते हैं, तो उसमें बेचारे प्राणियों का भी समावेश है। नहीं तो गाय बोलेगी कि तुम्हारे जयजगत में मेरा क्या हाल है? बहुत से लोग बाबा से सवाल पूछते थे कि अहिंसा क्या मानव तक ही सीमित है। बाबा कहते थे कि मनुष्य को अपनी चित्तशुद्धि के लिए मांसाहार छोड़ देना चाहिए। बाबा का पूरा विश्वास था कि अगर दुनिया शांति चाहती है, तो प्राणी आहार से मुक्ति आवश्यक है। भारत के विचार की यह देन है। सेवाग्राम में आयोजित शांति परिषद में बाबा ने संदेश भेजा था कि हम आपस में प्यार से रहें और उधर प्राणियों को भी खाते रहें, तो शांति नहीं स्थापित होने वाली है। मांसाहार का परित्याग अपने देश की खास कमाई होगी।
क्या हम संस्था वाले हिम्मत के साथ कह सकते हैं कि हमारे जितने सेवक, साथी, कार्यकर्ता हैं, सब मछली,अंडा आदि से मुक्त हैं? अब यह आउटडेटेड होने वाला है। आगे चलने वाला नहीं है। समाज में जनसंख्या बढ़ रही है। बाबा का मानना था कि एक मांसाहारी व्यक्ति बैल को खायेगा। यानी बैल अनाज को खायेगा और हम बैल को खायेंगे। खेत का अनाज न खाकर, अनाज खाने वाले को खायेंगे, तो एक मनुष्य के आहार के लिए दो एकड़ की जगह चार एकड़ जमीन खर्च होगी।
क्या हम संस्था वाले हिम्मत के साथ कह सकते हैं कि हमारे जितने सेवक, साथी, कार्यकर्ता हैं, सब मछली,अंडा आदि से मुक्त हैं? अब यह आउटडेटेड होने वाला है। आगे चलने वाला नहीं है। समाज में जनसंख्या बढ़ रही है। बाबा का मानना था कि एक मांसाहारी व्यक्ति बैल को खायेगा। यानी बैल अनाज को खायेगा और हम बैल को खायेंगे। खेत का अनाज न खाकर, अनाज खाने वाले को खायेंगे, तो एक मनुष्य के आहार के लिए दो एकड़ की जगह चार एकड़ जमीन खर्च होगी। उत्तरोत्तर जमीन कम ही पड़ने वाली है, इस वास्ते अगर समाज को जीवित रहना है, तो मांसाहार छोड़ना पड़ेगा। आजकल मांसाहार परित्याग को डबल इंजिन लग गया है ,एक आध्यात्मिक दृष्टि और दूसरी जीवित रहने की दृष्टि। आध्यात्मिक आधार मिल जाने से यह जल्दी संभव हो सकेगा। -रमेश भइया