1880 के आसपास लाहौर के माल रोड पर एक अंग्रेज, सर जॉन लारेंस की एक आदमकद मूर्ति स्थापित की गयी थी। जॉन लारेंस पंजाब का पहला गवर्नर था और 1864 से 69 तक ब्रिटिश इंडिया का गवर्नर जनरल रहा। मूर्ति के दायें हाथ में एक कलम और बायें में एक […]
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दुनिया की कुल जनसंख्या में लगभग चार अरब लोगों को सामाजिक न्याय नहीं मिलता। टास्क फोर्स ऑफ जस्टिस की एक आख्या में यह भी खुलासा हुआ है कि दुनिया के दो तिहाई लोग न्याय से वंचित हैं। पढ़ें, यह विश्लेषण। सामाजिक न्याय का विचार प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष मानव-समानता से जुड़ा हुआ है। […]
यदि कृषि योग्य भूमि का दायरा निरन्तर इसी प्रकार घटता रहा तो भारत की एक अरब चालीस करोड़ आबादी को एक दिन भुखमरी का शिकार बनना पड़ेगा और तब दुनिया में कोई ऐसा देश नहीं है, जो भारत जैसे विशाल देश को खाद्यान्न के संकट से उबारने में समर्थ हो […]
भारत के मनीषियों को मालूम था कि लोकतंत्र के वर्तमान संस्करण के कारण खतरे पैदा हो सकते हैं, इसलिए सत्ता की राजनीति में न पड़कर उन्होंने देश में सामाजिक आन्दोलन खड़ा किया और अपने प्रयासों से ग्रामस्वराज्य की बुनियाद खड़ी की थी। भारतीय लोकतंत्र एक निर्णायक दौर से गुजर रहा […]
देश में इतिहास को अपने मुताबिक बदलने की कवायदें जारी हैं. इतिहास बहुत निर्मम मूल्यांकनकर्ता है. किसी भी तथ्य को ऐतिहासिक तथ्य के रूप में स्वीकृति तब तक प्रदान नहीं की जाती, जब तक उक्त घटना या प्रकरण की पुष्टि सूचना के किसी अन्य स्त्रोत से नहीं कर ली जाती. […]
एनसीईआरटी के पाठ्यक्रम में इतिहास की किताबों से मुगल साम्राज्य से संबंधित पाठों को हटा दिया गया है। महात्मा गांधी और गोडसे से जुड़ी कई बातों को हटाया गया है, जिसमें हत्या के बाद आरएसएस पर बैन वाली बात भी शामिल है। इसके अलावा हिंदी की किताब से महाकवि निराला […]
लोहिया निरंतर आध्यात्मिकता और नैतिकता के बीच, श्रेय और प्रेय के बीच पुल बनाने के प्रयास में लगे रहे। वे मानते थे कि आध्यात्मिकता शाश्वत है लेकिन हर युवा को, हर समाज को, हर व्यक्ति को अपनी नैतिकता स्वयं खोजनी पड़ती है। वे भारतीय समाज को बार-बार जड़ इसलिए कहते […]
गांधी अपने जीवन के हर आयाम में अहिंसक होने की कोशिश करते थे। ये कोशिश उन्हें बहुत ही विनम्र और साहसी बनाती थी। वे किसी को भी मृत्युदंड दिए जाने के विषय में बहुत विनम्रता से विचार करते हैं। वे भगत सिंह ही नहीं, किसी भी व्यक्ति को मृत्युदंड दिए […]
गणेश शंकर विद्यार्थी ने न केवल ‘प्रताप’ वरन स्वतंत्रता आन्दोलन के दौर की पत्रकारिता के मूल्यों, देश की जनाकांक्षाओं से उसकी प्रतिबद्धता, समाज और जीवन के हर क्षेत्र में अपनी स्वप्नशील भावी दृष्टि का परिचय और संकल्प व्यक्त कर दिया था। भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के ऐतिहासिक जन-संघर्ष में ‘आजाद पत्रकारिता’ […]
सरकार के प्रोत्साहन और नीतियों ने ऑनलाइन बाजार को मजबूती दी है. हमारे पास-पड़ोस के भाइयों के रोजगार बड़ी तेजी से टूट रहे हैं, बल्कि ऐसे कह सकते हैं कि हम सब खुद ऑनलाइन के मोहजाल में फंसकर अपने रोजगार को तोड़ रहे हैं. जिसकी दुकान लगातार कमजोर हो रही […]