जोशीमठ हम हिमालय की सुरक्षा नहीं कर पा रहे हैं, जबकि हिमालय राष्ट्र की जीवनशक्ति है। सिंधु से लेकर ब्रह्मपुत्र तक नदियां हिमनदों से ही निकलती हैं और ये हिमनद ग्लोबल वार्मिंग तथा ग्रीन हाउस गैसों के प्रभाव से पिघलकर पीछे हटते जा रहे हैं। चिंतनशील भारतीय आज इसलिए स्तब्ध […]
Writers
सत्ता के लिए साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के इस दौर में यह बात ध्यान देने की है कि देश के संवैधानिक ढांचे को बचाने और हाशिए के लोगों की मदद करने वालों की कोशिशों से साम्प्रदायिक और क्षेत्रीय सीमाएं टूट रही हैं। यह मुल्क के भविष्य के लिए अच्छा संकेत है। जोशीमठ […]
जोशीमठ का भू-धंसाव हाल की सबसे बड़ी पर्यावरणीय दुर्घटनाओं में से एक है। भूगर्भ वैज्ञानिकों और पर्यावरण विशेषज्ञों की चेतावनियों को दरकिनार करके जोशीमठ को एक आधुनिक शहर बनाने की होड़ लगी हुई है। बीते कुछ वर्षों में यहाँ होटल्स, माल्स और सड़कों के अलावा अब चार लेन वाली चर्चित […]
भारत-चीन सीमा के निकट देश का अंतिम शहर जोशीमठ तबाही के कगार पर है। कुछ समय से जोशीमठ के अलकनन्दा नदी की ओर फिसलने की गति अचानक तेज हो गयी है। अभी भी सरकारों की प्राथमिकता जोशीमठ को बचाने की नहीं, बल्कि कॉमन सिविल कोड और धर्मान्तरण कानून बनाने की […]
दरकते हुए जोशीमठ ने एक बार फिर साबित किया है कि हम जिसे विकास कहकर खुद को छलावा देते हैं, दरअसल वह बेहद बेरहम विनाश है। ऐसा नहीं है कि ऐसी त्रासदियों के पूर्व संकेत न मिले हों, लेकिन मौजूदा लोकतंत्र के सभी स्तंभों ने उन्हें लगातार अनसुना और अनदेखा […]
विकास के नाम पर सरकार और सरकारी मशीनरी के संरक्षण में देश के पूंजीपति देश की पर्यावरण संपदा के लुटेरे बन गये हैं। तथाकथित विकास का यह विध्वंसक रथ जिधर भी जाता है, प्रकृति और पर्यावरण का विनाश करता जाता है। विकास के नाम पर विनाश का ताजातरीन उदाहरण उत्तराखंड […]
हम अक्सर भूल जाते हैं कि आग हमें प्रकाश दे सकती है, तो जला भी सकती है। सम्यक् विवेक एवं सद्बु़द्धि से ही सूचना प्रौद्योगिकी का भी उद्देश्यपूर्ण सदुपयोग किया जा सकता है। समाज को इस दिशा में विचार करना होगा। समाज का एक हिस्सा यह मानता है कि मानव-समाज-राष्ट्र […]
कुछ लोगों का कहना है कि 1971 के बाद से गफ़ूर विरोध आधारित आंदोलन के लिए आरएसएस से हाथ मिलाने तक जेपी पर मक्खियाँ भिनक रहीं थीं. आइये, इतिहास के उस दौर पर एक नजर डालें. शरारत, झूठ और अज्ञान मिलकर शैतानियत पैदा करते हैं. इसके बदले सच, हमदर्दी और […]
देश अपनी नौजवान, किन्तु बेरोजगार पीढ़ी की पीड़ाओं से कराह रहा है। जब आदमी बेरोजगार हो जायेगा, तब उसकी जेब में पैसे कहां से आएंगे? उसकी आर्थिक जरूरतों की पूर्ति कैसे होगी? इस प्रश्न का उत्तर न लोकतंत्र के पास है, न विज्ञान और टेक्नॉलॉजी के पास है और न […]
राम मनोहर लोहिया की दृष्टि में यों तो हरेक देश का अपना इतिहास होता है, इतिहास की राजनीतिक, साहित्यिक और दूसरे तरह की कई घटनाएं होती हैं। इतिहास की घटनाओं की एक लम्बी जंजीर होती है, उनको लेकर ही कोई सभ्यता और संस्कृति बनती है। उनका दिमाग पर असर रहता […]