विनोबा रेखांकित करते हैं कि विज्ञान, सत्ता-संपत्ति और स्वार्थ के हाथों बिक गया है। गांव को स्वावलंबी बनाने के लिए आजादी के बाद बहुतेरे प्रयास किये गये। खादी, ग्रामोद्योग, गोपालन आदि ग्रामोपयोगी विद्याओं का प्रचार प्रसार किया गया, लेकिन बाजार के सामने खादी और ग्रामोद्योग के विचार नतमस्तक हो गये। […]

पराग चोलकर का कहना है कि विनोबा ने गांधी के विचार और लक्ष्य को आगे बढ़ाया पर इतिहासकारों ने उनके योगदान को पर्याप्त महत्व नहीं दिया. साथ ही विनोबा पर सत्याग्रह को छोड़ने का आरोप भी लगता है- विशेषकर इमरजेंसी और जेपी के संपूर्ण क्रांति आंदोलन के संदर्भ में. लेकिन […]

सोशल मीडिया ट्रोलिंग कल्चर को सत्ता का संरक्षण मिला हुआ है। विपक्ष को नेस्तनाबूत करने के उद्देश्य से लोकतान्त्रिक मूल्यों को ताख पर रखकर यह अभियान चलाया जा रहा है। प्रधानमंत्री की फोटो लगाकर जहाँ हज़ारों फेक आईडीज़ इस अभियान में शामिल हैं, वहीं सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स अपने मानदंडों में […]

मेरे लिए ईश्वर सत्य और प्रेम है, ईश्वर सदाचार एवं नैतिकता है। ईश्वर निर्भयता है। ईश्वर प्रकाश और जीवन-स्रोत है और साथ ही वह इन सबसे ऊपर और परे भी है। ईश्वर अन्तरात्मा का स्वर (चेतना) है। वह हृदयों का खोजकर्ता है। वह हमें और हमारे हृदयों को हमसे बेहतर […]

अमरीका की आर्थिक मंदी पूरे विश्व में, खासकर भारत जैसे विकासशील देश में आर्थिक मंदी को उत्प्रेरित करने वाली ताकत क्यों और कैसे बन जाती है? यही नहीं, अमरीका की आज की मंदी अपनी ही 1929 की मंदी और 2008 के वित्तीय मेल्ट डाउन से कितनी भिन्न है? अमरीका की […]

इलेक्शन बांड स्कीम को तत्काल बंद करना अति आवश्यक है, क्योंकि अगर इसे तुरंत बंद नहीं किया गया तो देश में लोकतंत्र बिलकुल ख़त्म हो जाएगा. यह देश में लोकतंत्र की रक्षा करने और भ्रष्टाचार की गंगोत्री को मिटाने केलिए शुरू किया गया अभियान है। इसमें एडीआर \ सीएफडी \पीयूसीएल\ […]

नोटबंदी के छह साल बाद भी देश की अर्थव्यवस्था और आम आदमी की जेब पर नोटबंदी का कहर जारी है। कहा गया था कि नोटबंदी काले धन की अर्थव्यवस्था को समाप्त करेगी। यदि नोटबंदी काले धन की अर्थव्यवस्था को समाप्त करने में सफल भी होती तो क्या यह असंगठित क्षेत्र […]

किसी व्यक्ति के जीवन की महत्ता और अर्थवत्ता पर ही उसके नाम पर लगने वाले नारों की गुणवत्ता निर्भर करती है। इसलिए अक्सर जब गांधीजी के नाम पर नारे लगते हैं, तो लगता है कि इसके पीछे जरूर कुछ ठोस कारण होंगे, जो लोगों को प्रभावित करते हैं. कई बार […]

शान्ति ईश्वरीय वैभव है। सर्वकल्याणकारी मार्ग अथवा माध्यम है। ईश्वर अविभाज्य समग्रता रूप हैं। कुछ भी, कोई भी, उनकी परिधि से बाहर नहीं है। वे स्वयं सार्वभौमिक एकता निर्माता हैं। अतः शान्ति एकांगी नहीं हो सकती। सामान्य और अति सरल अर्थ में शान्ति को स्थिरता अथवा ठहराव की स्थिति स्वीकारा […]

आजादी के साथ-साथ भारत का बंटवारा एक ऐसा दर्द था, जो आज भी देशवासियों के मन में टीसता है। बंटवारा क्यों हुआ, उस समय के हालात कैसे थे, अंग्रेजों ने क्या चाल चली, जिन्ना-नेहरू की क्या भूमिका थी, अनेक सवाल पूछे जाते हैं। यद्यपि बंटवारे को स्वीकार क्यों किया गया, […]

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