संक्रामक विषाणु बन गयी है सोशल मीडिया ट्रोल आर्मी

सोशल मीडिया ट्रोलिंग कल्चर को सत्ता का संरक्षण मिला हुआ है। विपक्ष को नेस्तनाबूत करने के उद्देश्य से लोकतान्त्रिक मूल्यों को ताख पर रखकर यह अभियान चलाया जा रहा है। प्रधानमंत्री की फोटो लगाकर जहाँ हज़ारों फेक आईडीज़ इस अभियान में शामिल हैं, वहीं सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स अपने मानदंडों में भी पूरी तरह भेदभाव करते हैं। कहीं न कहीं लिंचिंग की घट रही घटनाओं में शामिल अपराधियों को भी इसी कल्चर से शह मिल रही है।

आजकल सोशल मीडिया का जमाना है. आज की दुनिया में प्रायः कोई भी इससे अछूता नहीं है। आज अपने देश की भी एक बड़ी आबादी सोशल मीडिया पर अपनी मौजूदगी दर्ज करा रही है। सोशल मीडिया ने जहां एक तरफ लोगों के लिए मनोरंजन, शिक्षा व रोजगार के बेहतरीन रास्ते खोले हैं और उन्हें अपने विचार रखने एवं समूची दुनिया के लोगों से जुड़ने के लिए कई अच्छे प्लेटफॉर्म्स उपलब्ध कराये हैं, वहीं दूसरी ओर इसके कुछ नकारात्मक पक्ष भी हैं। सोशल मीडिया के दुरुपयोग ने एक नए कल्चर को जन्म दिया है, जिसे ट्रोलिंग कल्चर कहा जाता है।

इंटरनेट के परिप्रेक्ष्य में यूँ तो ट्रोलिंग का सामान्य अर्थ इन आभासी प्लेटफॉर्म्स पर सार्वजनिक तौर पर हास परिहास से है, परंतु आजकल इसका विकृत और भयावह स्वरूप भी देखने को मिल रहा है, जिसमें ट्रोलिंग के अंतर्गत किसी का मजाक उड़ाने से लेकर उसे गाली देने, बॉडी शेमिंग और उसके चरित्र हनन तक की घटनाएं देखने को मिलती हैं।

प्रश्न यह है कि ये ट्रोलर आखिर कौन लोग होते हैं? और ट्रोलिंग के पीछे इनका मकसद क्या होता है? दरअसल ट्रोलर हममें से ही कुछ लोग होते हैं। या यूं कहें कि हम खुद भी कभी न कभी जाने-अनजाने ट्रोलर की भूमिका में आ बैठते हैं। जब हम किसी पब्लिक फिगर के काम-काज को लेकर या उनके किसी निजी मामले में बेवजह हस्तक्षेप कर सिर्फ अपने मनोरंजन के लिए सोशल मीडिया पर उनका मखौल उड़ाते हैं, तब दरअसल हम ट्रोलर ही होते हैं। अक्सर ये ट्रोलर फेक एकाउंट बनाकर लोगों को परेशान करते हैं, जहां वे आभासी दुनिया में अदृश्य होने का फायदा उठाते हैं। इन दिनों ट्रोलिंग, संक्रामक रोग की तरह एक समस्या बन चुकी है।
अधिकतर लोग ट्रोलिंग अक्सर मौज-मस्ती के लिए करते हैं। वहीं कुछ लोग हीन भावना के चलते, नफरत के कारण या समाज मे अटेंशन पाने के लिए भी ऐसा करते देखे जाते हैं। कई बार ट्रोलिंग किसी बड़ी साजिश के तहत भी अंजाम दी जाती है। मसलन इन दिनों राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति और स्वार्थसिद्धि हेतु विभिन्न राजनैतिक पार्टियों द्वारा ट्रोलिंग को एक टूल की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है, जिसके अंतर्गत किसी व्यक्ति विशेष या संस्था के विरुद्ध पूरी की पूरी एक ट्रोल आर्मी खड़ी कर दी जाती है। यह काम अक्सर हजारों फेक एकाउंट्स के जरिये करवाया जाता है। इनका उद्देश्य जहां मुख्य चर्चा से लोगों का ध्यान हटाना और मुद्दे को भटकाना होता है, वहीं गलत जानकारी फैलाकर आम लोगों को भड़काना भी होता है। संविधान में नागरिकों को अपना पक्ष रखने की स्वतंत्रता है, इसी का फायदा उठाते हुए ट्रोलर्स की यह फ़ौज सत्ता के संरक्षण में अक्सर देशहित से जुड़े मुद्दों पर एक तरफ सोशल मीडिया के ज़रिए लोगों का ब्रेन वाश करती है, तो दूसरी तरफ जनविरोधी कार्यो में भी संलग्न होती है। हाल के कुछ वर्षों में इसमें तेजी से इजाफा हुआ है, जिसके अंतर्गत सामाजिक कार्यकर्ताओं, नेताओं और पत्रकारों आदि के खिलाफ साजिशें रची जा रही हैं तथा देश व समाज विरोधी ताकतों के समर्थन में खुलकर एजेंडा चलाया जा रहा है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को कंट्रोल करने और उन्हें अपने पक्ष में इस्तेमाल करने की यह प्रवृत्ति अब आम हो चली है।

राजनीति में सोशल मीडिया के हस्तक्षेप से जहां एक ओर ध्रुवीकरण को बढ़ावा मिला है, वहीं दूसरी ओर जनता की मानसिकता में भी गजब का बदलाव देखने मिला है। ट्रोलिंग कल्चर ने गाली गलौज, धमकी , बॉडी शेमिंग जैसी चीजों को एकदम नॉर्मलाइज़ कर दिया है, जिसके दूरगामी परिणाम समाज के लिए काफी घातक सिद्ध हो सकते हैं।

ट्रोलिंग के दुष्प्रभाव से सिनेमा और खेल जगत से लेकर आम इंसान तक आज हर कोई प्रभावित है। ट्रोलर्स का सबसे आसान शिकार महिलाएं बनती हैं। देखा जाता है कि महिलाओं को सोशल मीडिया पर अपने विचार रखने की सजा अक्सर उन्हें ट्रोल करके दी जाती है। यहाँ पितृसत्तात्मक मानसिकता का असर साफ देखा जा सकता है। इसी के चलते कई बार ट्रोलिंग, साइबर बुलिंग का रूप ले लेती है, जिसमें महिलाओं के चिरित्र हनन की कोशिशें की जाती हैं, उनको बलात्कार और हत्या की धमकियां तक दी जाती हैं। प्रायः पुरुषों को ट्रोल करने के लिए भी उनके घरों की महिलाओं और बच्चों पर शाब्दिक हमले किये जाते हैं। ये घटनाएं बताती है कि एक समाज के तौर हम अभी भी कितने पिछड़े और अशिक्षित हैं।

गौरतलब है कि ट्रोलिंग ने बच्चों और महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर डाला है। 12-13 साल के किशोर-किशोरियां इंस्टाग्राम, फेसबुक आदि पर ट्रोलिंग का शिकार होकर आज अपने रंग-रूप और क्रियाकलाप को लेकर हीनभावना से ग्रस्त हो रहे हैं, अपना आत्म विश्वास खो रहे हैं, यहाँ तक कि डिप्रेशन में आकर उनमें आत्महत्या करने तक की प्रवृत्ति देखी जा रही है।

ट्रोलिंग कल्चर ने देश में जातिवाद, साम्प्रदायिकता और हिंसा की खाई को और गहरा तो किया ही है, देश के नागरिकों की सुरक्षा और स्वास्थ्य पर भी प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया है। चाहे वह दिशा रवि हो या नूपुर शर्मा, विराट कोहली हो या सफूरा जरगर; ऐसे तमाम उदाहरण समाज मे मौजूद हैं। निश्चित तौर पर नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ किसी भी प्रकार का समझौता नही किया जा सकता। ट्रोलिंग को पूर्णतः समाप्त करना तो अभी दूर की कौड़ी प्रतीत होती है, मगर ऐसे कानूनों और नियमों की शरण अवश्य ली जा सकती है, जो जनता की सुरक्षा और हितों को बनाए रखने में सहयोग करें।

-ऋतु निरंजन

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

दिल थाम के रखिए

Mon Dec 5 , 2022
स्वास्थ्य अखबारों में पढ़ें या समाचार देखें तो आजकल लगभग हर किसी के दूर या करीब के रिश्तों में अचानक मरने की दुखद खबरें मिलने लगी हैं। अचानक हृदय रोग विशेषज्ञों के पास मरीजों की लाइन भी बढ़ने के खबरें हैं, जो सोचने को मजबूर कर रही हैं, एक भयावह […]

You May Like

क्या हम आपकी कोई सहायता कर सकते है?