नौ दिवसीय शांति सद्भावना यात्रा सामूहिक संकल्प के साथ सम्पन्न
साझा संस्कृति मंच एवं एनएपीएम के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित 9 दिवसीय शांति सद्भावना यात्रा का शांति, सद्भावना, प्रेम और भाईचारे के संदेश के साथ भव्य समापन 5 नवंबर, शनिवार को सारनाथ, वाराणसी में हुआ. इसके पूर्व संदहा से सारनाथ तक ग्रामवासियों ने पदयात्रियों का जोरदार स्वागत एवं अभिनंदन किया। सारनाथ में बुद्ध मंदिर के समक्ष औपचारिक समापन सभा में लोगों को संकल्प दिलाया गया कि समाज को नफरत नहीं, बल्कि प्रेम और आपसी मेलजोल की जरूरत है, इसलिए हम आपसी मेलजोल बढाने की दिशा में दृढ़ संकल्पित होकर प्रयास करेंगे. यात्रा संयोजक नंदलाल मास्टर ने बताया कि 9 दिनों की यह पदयात्रा वाराणसी के कुल आठों विकास खण्डों से होते हुए लगभग 100 गांवों से गुजरी, इस दौरान जनवादी गीत, नाटक, संवाद, कंदील मार्च, मशाल जुलूस और जनसभा आदि का आयोजन किया गया.
संदीप पांडे के नेतृत्व में निकली शांति सद्भावना यात्रा
इस सभा के बाद विद्या आश्रम परिसर में ‘भारतीय लोक परम्परा में न्याय, शांति एवं सद्भावना’ विषयक संगोष्ठी को संबोधित करते हुए मैग्सेसे अवार्डी डॉ संदीप पाण्डेय ने कहा कि समाज में अशांति और नफरत फैलाने वाले लोकप्रिय नहीं हैं। सत्य और धर्म उनके साथ नहीं हैं, लेकिन वे संगठित और सक्रिय हैं तथा हमारी निष्क्रियता का लाभ उठा रहे हैं. हमें इंसान के बजाय भीड़ और वोट बैंक बनाने में उनका फायदा है। एक-दूसरे के बारे में वैमनस्य, भ्रम और भय फैलाया जा रहा है। बहुत चालाकी से अधकचरे झूठ को सच बनाया जा रहा है। नयी टेक्नोलॉजी और सोशल मीडिया का गन्दा इस्तेमाल हो रहा है। ऐसे में हमे सचेत होकर रहना है, सत्य को जानना है और समाज मे मिलजुल कर रहने की परंपरा का निर्वहन करना है। वरिष्ठ समाजवादी चितंक विजय नारायण ने कहा कि तेजी से बढ़ रही असामाजिकता और अशांति के बुरे परिणामों को समझने की जरूरत है। अब हमारा गांव, गांव के लोगों का नहीं रहा, पहले छोटी-बड़ी समस्याओं का निस्तारण आपस में मिल बैठकर कर लिया जाता था, लेकिन अब हम हर छोटे-बड़े विवाद में कोर्ट-कचहरी और थाना-पुलिस की मार-जलालत झेलने को अभिशप्त हैं, अगर हमें दवाई, पढ़ाई, रोजगार की जरूरत है तो उसी की बात करनी होगी, आपसी वैमनस्य की नहीं।
वरिष्ठ इतिहासकार डॉ मोहम्मद आरिफ ने कहा कि भारत की खासियत विविधता में एकता है। विभिन्न धर्मों, जातियों और पंथों के लोग यहाँ एक साथ रहते हैं। भारत का संविधान अपने नागरिकों को समानता और स्वतंत्रता की गारंटी देता है। शांति और सद्भाव सुनिश्चित रहें, इसके लिए कई कानून बनाए गए हैं। बनारस की बात करें, तो सैकड़ों सालों से अलग-अलग तरीकों से पूजा-पाठ, शादी-ब्याह से लेकर अंतिम कर्म करने वाले लोग तक बहुत प्यार से एक ही गाँव-मुहल्ले में रहते आए हैं। सभी तरह के धर्मों, जातियों एवं विचारों से भरा-पूरा बनारस, दुनिया भर के लोगों को कैसे जुटाकर रखता है, ये आश्चर्य और कौतूहल का विषय है, नफरत और बांटने की राजनीति को बनारस को नकारना ही होगा, तभी यहाँ की गंगा जमुनी तहजीब की परम्परा बची रहेगी। साझा संस्कृति मंच के पूर्व अध्यक्ष डॉ नीति भाई ने पदयात्रियों को बधाई देते हुए कहा कि यह बहुत ही उपयोगी अभियान रहा, जिसके परिणाम सुखद होंगे।
झारखंड से आये इप्टा से जुड़े वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्त्ता शैलन्द्र ने कहा कि आज से कुछ वर्ष पहले तक अख़बार, टीवी आदि में गरीब की रोजी-रोटी की बात होती थी, मजदूरों, किसानों की परेशानियों की चर्चा होती थी, छात्रों की पढ़ाई और युवाओं के रोजगार की चिंता दिखती थी। मगर आज इन चैनलों की कुल चर्चा सिर्फ ये पार्टी या वो पार्टी तक सीमित होकर रह गयी है। मार-झगड़ा और चीन-पाकिस्तान करने में ही सब फंसे हुए हैं। मीडिया और सत्ता की इस रस्साकसी में समाज पिस रहा है।
सामाजिक कार्यकर्ता अरविन्द मूर्ति ने कहा कि पढ़ाई, दवाई, काम-धंधे की जगह हमारा गाँव-घर दिन रात ‘हिन्दू-मुसलमान’ के टकराव की बात सुन रहा है। लोगों में चिड़चिड़ापन, तनाव और गुस्सा बढ़ रहा है। हिन्दू-मुसलमान की गैर जरूरी बहस में फँसाकर मंहगाई की बात अनदेखी की जा रही है। नौकरी की मांग को अगड़ा-पिछड़ा, आरक्षण समर्थक और विरोधी के खांचे में बांटकर आपस मे ही लड़ा दिया जा रहा है. यह स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण है. समाज को सचेत होना ही होगा। जिला पंचायत सदस्य अनीता प्रकाश ने समाज में मिलजुल कर रहने और नफरत को नकारने का सबसे आह्वान किया।
संगोष्ठी के दौरान सभी पदयात्रियों का माल्यार्पण कर अभिनंदन किया गया। सांस्कृतिक दल प्रेरणा कला मंच की टीम ने जनवादी गीत और नाटक प्रस्तुत किये। अध्यक्षीय संबोधन में उत्तर प्रदेश सर्वोदय मंडल के अध्यक्ष रामधीरज ने कहा कि समाज में विद्यालय-चिकित्सालय, कार्यालय- देवालय तक में हो रहा भेदभाव और हिंसा एक बड़ी चुनौती है। घर से खेत तक और सड़क से ऑफिस तक चंहुओर फैली इस अफरातफरी के समय में शांति-सद्भाव की बात करने की अधिक जरूरत है. संगोष्ठी का संचालन फादर आनंद और अध्यक्षता रामधीरज ने की, धन्यवाद ज्ञापन अनीता ने किया.
कार्यक्रम में मुख्य रूप से संदीप पाण्डेय, सरिता प्रकाश, अरविंद मूर्ति, थेरो भंते, रंजू सिंह, महेन्द्र राठौर, विनोद, रामबचन, अनिल, सुजीत, सूबेदार, सुरेंद्र, कन्हैया, सतीश सिंह, फादर जयंत, विजेता, रुखसाना, सोनी, नीति, मैत्री, पूनम, इन्दु, एकता, रवि शेखर, धनंजय, मुकेश, विनय सिंह, प्रदीप सिंह, रामधीरज, डॉ आरिफ, रामजनम, राजकुमार पटेल, कमलेश, हौसिला, प्रियंका और पूनम रंजीत समेत सैकड़ों लोगों की भागीदारी रही।
– फादर आनंद